देहरादून: उत्तराखंड नए इनोवेशन और स्टार्टअप के लिए एक बड़ा केंद्र बनता जा रहा है. ऐसे ही दो स्टार्टअप उत्तराखंड से शुरू हुए हैं, जिन्होंने स्पेस टेक्नोलॉजी और मेडिकल इनोवेशन में नई क्रांति लाई है. वर्ष 2018 में उत्तराखंड में पहली दफा स्टार्टअप पॉलिसी को इंट्रोड्यूस किया गया. इसके तहत उत्तराखंड के ऐसे आईडिया मेकर्स युवाओं को आमंत्रित किया गया, जिनके आइडिया में दम था. जो समाज की जरूरतों को अपने यूनिक कॉन्सेप्ट के माध्यम से पूरा कर सकते थे. तब से लेकर अब तक उत्तराखंड में 144 स्टार्टअप फर्म को पंजीकृत किया गया है.
राहुल को मिला 2.5 मिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट: इन स्टार्टअप को बेहतर माहौल देने के लिए 13 इंकुबेटर सेंटर भी बनाए गए हैं. इन्हीं 144 स्टार्टअप में से कुछ ऐसे बेहतरीन स्टार्टअप भी है, जो अपने-अपने क्षेत्र में नया रेवोल्यूशन लेकर आए हैं. ऐसा ही एक स्टार्टअप कोटद्वार निवासी राहुल रावत ने शुरू किया है. जिन्होंने स्पेस टेक्नोलॉजी में एक नए आइडिया पर काम शुरू किया और उनके आइडिया कॉन्सेप्ट की इंपॉर्टेंट को देखते हुए, उन्हें 2.5 मिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट मिला है. उनके आइडिया में ऐसी क्या खास बातें हैं आइए आपको बताते हैं.
दिगंतरा स्पेस टेक्नोलॉजी का कॉन्सेप्ट: धरती का मैप तो गूगल सेटेलाइट बनाती है, लेकिन उस सैटेलाइट के लिए अंतरिक्ष का मैप बनाने का आइडिया उत्तराखंड से आया है. कोटद्वार के राहुल रावत ने उत्तराखंड में स्टार्टअप पॉलिसी के तहत अपने यूनिक कॉन्सेप्ट को इंट्रोड्यूस किया. दरअसल राहुल रावत की कंपनी दिगंतरा स्पेस टेक्नोलॉजी का कॉन्सेप्ट है, जो अंतरिक्ष में पाथ फाइंडर का काम करता है. राहुल रावत बताते हैं हमें धरती पर एक जगह से दूसरी जगह पर जाने के लिए गूगल मैप की जरूरत पड़ती है. इस गूगल मैप को जिस सैटेलाइट की मदद से तैयार किया जाता है, उस सैटेलाइट को उसकी जगह पहुंचने के लिए भी एक रास्ते की जरूरत पड़ती है. इसी रास्ते का मैप बनाने का काम उनकी कंपनी करती है.
स्पेस में पाथ फाइंडिंग: राहुल बताते हैं कि स्पेस में पाथ फाइंडिंग का काम बेहद मुश्किल होता जा रहा है और धीरे-धीरे आने वाले भविष्य में अंतरिक्ष में फैलने वाले कचरे की संख्या काफी ज्यादा हो जाएगी. इस वजह से अंतरिक्ष में होने वाले किसी भी प्रकार के ऑपरेशन में कठिनाइयां आती है और हमें स्पेस में अपने अंतरिक्ष यानों को उड़ाने के लिए एक सुरक्षित रास्ते की जरूरत होती है. इसी रास्ते को ढूंढने का काम उनकी कंपनी कर रही है.
19वीं सदी से स्पेस ऑपरेशन की शुरुआत: जब भी कोई देश कोई बड़ा स्पेस ऑपरेशन करता है या फिर अंतरिक्ष यान को छोड़ता है तो, उसके सामने सबसे बड़ा चैलेंज अंतरिक्ष में फैले कूड़े यानी स्पेस गार्बेज का होता है. अंतरिक्ष में 19वीं शताब्दी के शुरू से ही लगातार स्पेस ऑपरेशन किए जा रहे हैं. अंतरिक्ष में मानव निर्मित अपशिष्ट के अलावा अन्य प्रकार की भी अपशिष्ट उपलब्ध है, लिहाजा उन्हें ट्रैक करना और इन्हें ट्रैक करते हुए एक सुरक्षित मार्ग प्रदर्शित करना बेहद महत्वपूर्ण है. ताकि करोड़ों की लागत से बनाए जा रहे स्पेसशिप का नुकसान ना हो. साथ ही स्पेसशिप में किसी भी तरह की दुर्घटना ना हो, इसके लिए इस कूड़े को ट्रैक करना बेहद जरूरी है.
स्पेस में रास्ता दिखाती है राहुल की कंपनी: 19वीं सदी के शुरुआत से लेकर अब तक स्पेस टेक्नोलॉजी ने काफी इजाफा हुआ है. अब स्पेस ऑपरेशन की संख्या पहले के मुकाबले काफी बढ़ गई है, लिहाजा अंतरिक्ष में फैल रहे कूड़े की मात्रा भी लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में स्पेस मैप को तैयार करना बेहद जरूरी है. राहुल ने बताया कि 30 जून 2022 को उन्होंने दुनिया का सबसे छोटा स्पेस वेदर सेंसर लॉन्च किया. जिससे स्पेस में मौजूद रेडिएशन, स्पेस वेदर को मॉनिटर किया जाएगा और उसकी मॉनिटरिंग के जरिए अन्य तरह के टूल्स तैयार किए जाएंगे. राहुल बताते हैं कि उनकी कंपनी मुख्यत 21 देश में जाने वाले सेटेलाइट्स को रास्ता दिखाने का काम करते हैं. साथ ही स्पेस नेविगेशन के लिए उनकी कंपनी द्वारा मैप तैयार किया जा रहा है. यानी किसी भी देश को स्पेस में सैटेलाइट लॉन्च करना है तो इनकी कंपनी उन्हें रास्ता बताएगी कि कहां से सैटेलाइट लॉन्च करना है और कैसे करना है ? साथ ही यह भी निर्धारित किया जाता है कि किस स्पीड में आगे बढ़ना है. राहुल रावत बताते हैं कि जहां पश्चिमी देश धरती का नक्शा बनाने में भारत से आगे हैं तो, अब भारत अंतरिक्ष का नक्शा बनाने में पश्चिमी देशों से आगे है. धरती के लोअर ऑर्बिट का उनके द्वारा मैप तैयार किया जा रहा है.
पोर्टेबल ECG डिवाइस से क्रांति: इसी तरह से उत्तराखंड से स्टार्टअप शुरू करने वाले एक और आइडिया मेकर रजत जैन मेडिकल सेक्टर में नया कॉन्सेप्ट ले कर आए हैं. उन्होंने पोर्टेबल ईसीजी डिवाइस बनाई है, जिसने बड़े-बड़े अस्पतालों का खर्चा कम कर दिया है. आज भी सुदूर ग्रामीण इलाकों में बड़े अस्पतालों की कमी है. जहां दिल की परेशानियों से जुड़े महत्वपूर्ण टेस्ट ईसीजी कराने के लिए मरीजों को बड़े अस्पताल का रुख करना पड़ता है. ऐसे में सनफॉक्स टेक्नोलॉजी की एक छोटे से डिवाइस ने पूरी तस्वीर ही बदल कर रख दी है.