हरिद्वार l उत्तराखंड संस्कृत अकादमी में आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय संस्कृत शोध सम्मेलन के समापन समारोह में पतंजलि विवि के प्रतिकुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल ने कहा कि अकादमी के कार्यक्रमों के माध्यम से उत्तराखंड ही नहीं अपितु देश-विदेश के संस्कृत प्रेमियों का संगम होता है। उन्होंने कहा कि वेद भारतीय संस्कृति के मूलधार हैं वेदों का ज्ञान ही ईश्वरीय ज्ञान है। वेदों के माध्याम से हमें ज्ञात होता है कि हमारा रहन सहन, खान-पान, आचार-विचार कैसे होना चहिए। वस्तुतः वेद-वेदांग हमारे जीवन को सुव्यवस्थित, सस्ंकारित, संचालित करने वाले ग्रंथ हैं।
विशिष्टि अतिथि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. राधेश्याम चतुर्वेदी ने कहा कि सांसारिक बंधनों से मुक्त परमतत्व को जानने के लिए हमारे ऋषि, महाऋषियों ने वेदों का आश्रय लिया। वेद-वेदागों के बिना मनुष्य अधूरा है। अध्यक्षता करते हुए गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के पूर्व कुलपति डा. हरिगोपाल शास्त्री ने कहा कि सभी प्रकार के विद्याओं का मूल वेद हैं। वेद आरंभ काल से ही मनुष्यों के लिए प्ररेणा का स्रोत हैं।
सम्मेलन के मुख्य संयोजक उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के सचिव गिरीश कुमार अवस्थी ने बताया कि उत्तराखंड के साथ गुजरात, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आदि 12 राज्यों के 60 से अधिक प्रतिभागियों द्वारा शोधपत्रों का वाचन किया गया। अकादमी के कोषाध्यक्ष कन्हैयाराम सार्की ने कहा कि उत्तराखंड राज्य के समस्त 13 जनपदों में आयोजित ऑनलाइन संस्कृत गान प्रतियोगिता (कनिष्ठ वर्ग)में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार एवं दो प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किए गए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रकाशचन्द्र पंत द्वारा किया गया।
खबर इनपुट एजेंसी से