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ऋषिकेश : भाजपा वीरभद्र मंडल के  बूथ संख्या 87 में दीनदयाल उपाध्याय जयंती पर कार्यक्रम आयोजित कर दी गयी श्रद्धांजली, किये पंडित जी याद  

Manoj Rautela by Manoj Rautela
25/09/21
in उत्तराखंड, कुमायूं, गढ़वाल, घर संसार, देहरादून, समाचार, साहित्य, हरिद्वार
ऋषिकेश : भाजपा वीरभद्र मंडल के  बूथ संख्या 87 में दीनदयाल उपाध्याय जयंती पर कार्यक्रम आयोजित कर दी गयी श्रद्धांजली, किये पंडित जी याद  
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मनोज रौतेला की रिपोर्ट:

ऋषिकेश : भारतीय जनता पार्टी वीरभद्र मंडल में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर उनके चित्र पर पुष्पर अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गयी. इसके अंतर्गत मंडल अध्यक्ष अरविंद चौधरी के निर्देशानुसार बूथ संख्या 87 की बूथ अध्यक्ष सुंदरी कंडाल द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें बूथ की पूरी कमेटी के पदाधिकारी और अन्य बहुत सारे सदस्यों ने प्रतिभाग किया.

वीरभद्र  मंडल की महामंत्री व् मीरा नगर की तेज तर्रार भाजपा पार्षद व उम्दा वक्ता सुंदरी कंडवाल ने कहा “जनहित में वर्तमान में ऐतिहासिक फैसले लिए जा रहे हैं जिससे भारतवर्ष बुलंदियों को छू रहा है. हम सभी संकल्प करते हैं हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के मार्ग बताए गए मार्ग का अनुसरण करें और अंतिम छोर तक भारतीय जनता पार्टी सरकार द्वारा योजनाओं की जो शुरुआत की गई है उनको पहुंचाएं. सभी कार्यकर्ता राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत होने चाहिए. जिस प्रकार मोदी जी ने धारा 370 , जनधन खाते, तीन तलाक, राम मंदिर निर्माण जैसे ऐतिहासिक फैसलों से भारतीय जनता पार्टी के प्रति लोगों का विश्वास और बढ़ा है. उन्होंने विशवास ब्यक्त किया कि उत्तराखंड में आगामी  2022 में विधानसभा चुनाव में 60 प्लस सीटें जीतने का जो संगठन का संकल्प है उसे हम इन्हीं कार्यकर्ताओं के बल पर पार करने जा रहे हैं. लोगों का विश्वास भारतीय जनता पार्टी के प्रति दिनों दिन बढ़ता जा रहा है.”

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बारे में जानकारी: पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म 25 सितम्बर 1916 को हुआ था, और निधन 11 फरवरी 1968 को हुआ था. वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिंतक (चिन्तक) और संगठनकर्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे।उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववादनामक विचारधारा दी। वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में कई लेख लिखे, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को जयपुर के निकट धानक्या गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो नगला चंद्रभान (फरह, मथुरा) के निवासी थे। उनकी माता का नाम रामप्यारी था, जो धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। पिता रेलवे में जलेसर रोड स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर थे। रेल की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर ही बीतता था। कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे।

दो वर्ष बाद दीनदयाल के भाई ने जन्म लिया, जिसका नाम शिवदयाल रखा गया। पिता भगवती प्रसाद ने बच्चों को ननिहाल भेज दिया। उस समय उपाध्याय जी के नाना चुन्नीलाल शुक्ल धानक्या (जयपुर, राज०) में स्टेशन मास्टर थे। नाना का परिवार बहुत बड़ा था। दीनदयाल अपने ममेरे भाइयों के साथ बड़े हुए। नाना का गाँव आगरा जिले में फतेहपुर सीकरी के पास ‘गुड़ की मँढई’ था। दीनदयाल अभी 3 वर्ष के भी नहीं हुये थे, कि उनके पिता का देहांत हो गया। पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक बीमार रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग लग गया। 8 अगस्त 1924 को उनका भी देहावसान हो गया। उस समय दीनदयाल 7 वर्ष के थे। 1926 में नाना चुन्नीलाल भी नहीं रहे। 1931 में पालन करने वाली मामी का निधन हो गया। 18 नवम्बर 1934 को अनुज शिवदयाल ने भी उपाध्याय जी का साथ सदा के लिए छोड़कर दुनिया से विदा ले ली। 1935 में स्नेहमयी नानी भी स्वर्ग सिधार गयीं। 19 वर्ष की अवस्था तक उपाध्याय जी ने मृत्यु-दर्शन से गहन साक्षात्कार कर लिया था।

8वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उपाध्याय जी ने कल्याण हाईस्कूल, सीकर, राजस्थान से दसवीं की परीक्षा में बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1937 में पिलानी से इंटरमीडिएट की परीक्षा में पुनः बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1939 में कानपुर के सनातन धर्म कालेज से बी०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। अंगरेजी से एम०ए० करने के लिए सेंट जॉन्स कालेज, आगरा में प्रवेश लिया और पूर्वार्द्ध में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुये। बीमार बहन रामादेवी की शुश्रूषा में लगे रहने के कारण उत्तरार्द्ध न कर सके।बहन की मृत्यु ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। मामाजी के बहुत आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक परीक्षा दी, उत्तीर्ण भी हुये किन्तु अंगरेज सरकार की नौकरी नहीं की। 1941 में प्रयाग से बी०टी० की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी०ए० और बी०टी० करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की।

1937 में जब वह कानपुर से बी०ए० कर थे, अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये। संघ के संस्थापक डॉ० हेडगेवार का सान्निध्य कानपुर में ही मिला। उपाध्याय जी ने पढ़ाई पूरी होने के बाद संघ का दो वर्षों का प्रशिक्षण पूर्ण किया और संघ के जीवनव्रती प्रचारक हो गये। आजीवन संघ के प्रचारक रहे। संघ के माध्यम से ही उपाध्याय जी राजनीति में आये। 21 अक्टूबर 1951 को डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना हुई। गुरुजी (गोलवलकर जी) की प्रेरणा इसमें निहित थी। 1952 में इसका प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ। उपाध्याय जी इस दल के महामंत्री बने। इस अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में से 7 उपाध्याय जी ने प्रस्तुत किये। डॉ० मुखर्जी ने उनकी कार्यकुशलता और क्षमता से प्रभावित होकर कहा- “यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूँ।”

1967 तक उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के महामंत्री रहे। 1967 में कालीकट अधिवेशन में उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वह मात्र 43 दिन जनसंघ के अध्यक्ष रहे। 10/11 फरवरी 1968 की रात्रि में मुगलसराय स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई। 11 फरवरी को प्रातः पौने चार बजे सहायक स्टेशन मास्टर को खंभा नं० 1276 के पास कंकड़ पर पड़ी हुई लाश की सूचना मिली। शव प्लेटफार्म पर रखा गया तो लोगों की भीड़ में से चिल्लाया- “अरे, यह तो भारतीय संघ के अध्यक्ष दीन दयाल उपाध्याय हैं।” पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गयी ?

इस अवसर पर जो उपस्थित रहे, उनमें कुंवर सिंह बिष्ट, विनीता, सलमान, रेखा रावत, संगीता रावत, रामेश्वरी रावत, सुमन देवी, ललिता देवी, मनीराम, विधाता सेमवाल, मोतीलाल ठकुरी, स्मिता सिंह और अन्य स्थानीय लोग उपस्थित रहे.

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