आनंद अकेला की रिपोर्ट
सिंगरौली। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए अब सिंगरौली जिला कोर्ट के सभी कार्य वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जारी रखने के निर्देश जारी किए गए हैं।
प्रमुख जनसंपर्क अधिकारी लोक अभियोजन मध्यप्रदेश मौसमी तिवारी ने इस आशय की जानकारी देते हुए बताया कि गत छह अप्रैल को माननीय सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली ने दिनांक सुमोटो रिट (सिविल)क्रमांक 05/2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान कोर्ट के कामकाज को विडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से किए जाने के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये है। ये दिशा-निर्देश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के द्वारा सुप्रीम कोर्ट को प्रदत्त शक्तियों के तहत जारी किये गये है। वे सभी उपाय जो इस कोर्ट (सुप्रीम कोर्ट) और सभी हायकोर्ट के द्वारा न्यायालय परिसर के भीतर सभी स्टेक होल्डर्स की शारीरिक उपस्थिति की आवश्यकता को कम करने के लिए और कोर्ट के कामकाज को सोशल डिस्टेंसिंग दिशा-निर्देशों के अनुरूप सुरक्षित करने के लिए और सर्वोत्तम लोक स्वास्थ्य कार्यप्रणाली के लिए किये गये है या किये जाऐंगे वे विधिपूर्ण माने जाऐंगे। भारत का सर्वोच्च न्यायालय और सभी हाईकोर्ट विडियो कान्फ्रेंसिंग के उपयोग द्वारा न्यायिक प्रणाली की सुदृढ. कार्यपद्धति को सुनिश्चित करने के लिए अपेक्षित उपायों को अपनाने हेतु अधिकृत है, और प्रत्येक राज्य में न्यायिक प्रणाली की विशिष्टता और गतिशील विकसित लोक स्वास्थ्य अवस्था से संगत रहते हुए, प्रत्येक उच्च न्यायालय को विडियो कान्फ्रेंसिंग तकनीक के उपयुक्त अस्थायी पारगमन साधनों को निर्धारित करने के लिए अधिकृत किया जाता है। संबंधित न्यायालय यह सुनिश्चित करने के लिए एक हेल्पलाइन मेनटेन करेगी कि फीड (भरण) की श्रवणता और गुणवत्ता के संबंध में कार्यवाही के दौरान या उसकी समाप्ति के तुरंत पश्चात शिकायत की जा सकेगी इसमें असफल रहने पर बाद में कोई शिकायत ग्रहण नहीं की जाएगी। प्रत्येक राज्य में जिला न्यायालय संबंधित उच्च न्यायालय द्वारा वीडियो कान्फ्रेंस के लिए विहित प्रक्रिया को अपनाएगी। न्यायालय सम्यक रूप से अधिसूचित करेगी और ऐसे पक्षकार जो विडियो कान्फ्रेंसिंग के साधन या पहुंच नहीं रखते है उन्हें वीसी की सुविधा उपलब्ध कराएगी। यदि आवश्यक हो, समुचित प्रकरणों में न्यायालय न्यायमित्र की नियुक्ति कर सकती है और ऐसे अधिवक्ता को वीसी की सुविधा उपलब्ध करा सकती है। जब तक उच्च न्यायालयों द्वारा समुचित नियम नहीं बनाए जाते हैं तब तक वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से विचारण के प्रक्रम या अपीलीय प्रक्रम पर तर्क सुनवाई की व्यवस्था की जाएगी। दोनों पक्षकारों की सहमति के बिना किसी भी केस में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से साक्ष्य अभिलिखित नहीं की जाएगी। यदि न्यायालय कक्ष में साक्ष्य अभिलिखित किया जाना आवश्यक हो तो पीठासीन अधिकारी कोर्ट में दो व्यक्तियों के मध्य समुचित दूरी बनाये रखना सुनिश्चित करेंगे। पीठासीन अधिकारी को न्यायालय कक्ष में किसी व्यक्ति के प्रवेश और उस स्थान-बिंदू को जहां से अधिवक्तागण द्वारा तर्क सुनाए जाते हैं, निर्बंधित करने की शक्ति होगी। कोई भी पीठासीन अधिकारी किसी प्रकरण के पक्षकार का प्रवेश तब तक निर्बंधित नहीं करेगा जब तक कि ऐसा पक्षकार किसी संक्रमित बीमारी से ग्रसित न हो। हालांकि, जहां वादकर्ताओं की संख्या अधिक है वहां पीठासीन अधिकारी को संख्या निर्बंधित करने की शक्ति होगी। जहां संख्या निर्बंधित करना संभव न हो वहां पीठासीन अधिकारी स्वविवेकानुसारकार्यवाहियों को स्थगित करेगा।
उपरोक्त दिशा-निर्देश न्याय प्रदान करने की प्रतिबद्धता को अग्रसर करने के लिए जारी किये गये है। इस आदेश के पैरा सात में उल्लेखित है कि ये दिशा-निर्देश आगामी आदेशों तक क्रियाशील रहेंगे। इस मेटर को चार सप्ताह पश्चात सूचीबद्ध किये जाने का भी उल्लेख पैरा 8 में है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त दिशा-निर्देश के पालन में दिनांक सात अप्रैल को ही म.प्र. उच्च न्यायालय जबलपुर के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा मेमो जारी कर दिया गया है।
उक्त दिशानिर्देश के पालन को सुनिश्चित करने हेतु विभाग के संचालक पुरुषोत्तम शर्मा आईपीएस द्वारा समस्त जिला अभियोजन अधिकारियों को आदेशित किया जा रहा है। आगे उन्होंने यह बताया की वर्तमान में भी रिमांड कोर्ट एवम आवश्यक कानूनी मामलों में लगातार विभाग के अधिकारियों की रोटेशन में डयूटी लगाई जा रही है तथा पुलिस को भी लॉ एंड आर्डर संभालने हेतु कानूनी सलाह एवम प्रकरणो व एफआईआर के संबंध में उचित सलाह व सहयोग निरन्तर किया जा रहा है।इसकी सीधी मोनिटरिंग संचालनालय लोक अभियोजन भोपाल से की जा रही है।