विकाश शुक्ला/उमरिया। जिले में जलाशय निर्माण विकास और भ्रष्टाचार सिक्के के दो पहलू की तरह हैं। सरकार विकास के नाम पर करोड़ों का बजट आवंटित करती है, लेकिन सरकारी नुमाईंदे विकास को भ्रष्टाचार में तब्दील कर अपनी तिजोड़ी भरने में जुटे हैं। जिस तरह से उपयंत्री समेत अन्य अधिकारियों के काले कमाई का जरिया जिले में बना इक्कीस करोड़ की लागत का खोह जलाशय साबित हुआ, उससे एक रत्ती भर विकास की बूंद जनहित तक नहीं गिर पा रही। जलाशय अपने दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है, तो वहीं आदिवासी ग्रामीण मुआवजा के लिए। लेकिन इससे इतर रसूखदार अधिकारीयों ने अपने खेल के लिए तैयार किये इस मसौदे को भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। एसएससी फर्म ने इस कार्य को पूरा किया, और इस कार्य के मास्टरमाइंड उपयंत्री बी एम पयासी रहे। सूत्रों के मुताबिक उपयंत्री बी एम पयासी एसएससी फर्म के फायनेंसर भी बताए जा रहे हैं, जो की जांच का विषय है।
क्या है मामला :
करकेली जनपद अंतर्गत आने वाले पंचायत कल्दा के खोह में बिनौदा नदी पर जलाशय का निर्माण कार्य तक़रीबन 4 वर्ष पूर्व जल संसाधन विभाग उमरिया के द्वारा कराया गया। तकरीबन 21 करोड़ रुपये की लागत से बने इस जलाशय के उपयंत्री बी एम पयासी के देख-रेख में हुआ। वहीं इस कार्य को पूरा करने वाली ठेका कम्पनी एसएससी फर्म बताई गई। लेकिन यह जलाशय अपने निर्माण के पहली बरसात में का पानी रोकने की बजाय यह जलाशय ही बह गया। यही नहीं आज दिनांक तक इसके पानी का रिसाव ज्यों का त्यों हो रहा है। जबकि वेस्ट वेयर में पानी निकासी के लिए बनाए गए द्वार के पास सेफ्टी के नाम पर अनियमितता बरती गई। जलाशय में जहां से नहर में पानी निकासी के लिए चाभी लगाई गई वहां पर किसी तरह की सेफ्टी रेलिंग तक नहीं लगाई गई, जिसे खुला छोड़ दिया गया।
डाउन स्ट्रीम की बह गई थी मिट्टी –
वर्ष 2021 में निर्माण पूर्ण होने की पहली बारिश में खोह जलाशय के डाउन स्ट्रीम की मिट्टी बहने का मामला प्रकाश में आया था। जानकारी लगते ही तत्कालीन कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव खोह पहुंचने के साथ ही जलाशय के खस्ता हालत और गुणवत्ता की जांच के लिए विभाग के तत्कालीन कार्यपालन यंत्री को निर्देशित किया। लेकिन उपयंत्री बी एम पयासी के रसूख के आगे कलेक्टर के निर्देश को वरिष्ठ अधिकारियों ने दफ़न कर दिया। और आज तक खोह जलाशय के दुर्दशा की जांच पर आंच नहीं आई।
जलाशय के वाल निर्माण में बरती गई अनियमितता :
सरकार का उद्देश्य जलाशय निर्माण कर किसानों और पेयजल आपूर्ति के साथ ही इससे रोजगार के सुनहरे भविष्य की संभावना तलाशना बेशक होगा, लेकिन दीमक की तरह बैठे जिम्मेदार इसे कमाई कर अपने तिजोरी भरने का जरिया बना लेते हैं। जलाशय के वाल को देखने पर टेक्नीकल कमी दिखाई देती है, जहां 45 डिग्री के कोणनुमा बनाये जाने वाली वाल (दीवार) केवल कोरम पूरा करने के लिए खड़ी कर दी गई। जबकि सुरक्षा मानकों पर कोई सेफ्टी रेलिंग भी वेस्ट वेयर के मुहाने पर नहीं दिखाई देती।
संदेहास्पद प्रतीत हो रहा जलाशय निर्माण –
जानकारों के अनुसार जिस तरह से जलाशय का निर्माण किया गया है, उसका डिजाइन और सर्वे संदेहास्पद है। केनाल के किनारे ही वेस्ट वेयर का निर्माण किया गया। जबकि वेस्ट वेयर डाउन फाल की ओर निर्मित होना चाहिए। वहीं वेस्ट वेयर की हालत देखने पर महज कोरम पूरा करना ही दिखाई दे रहा है। जलाशय निर्माण और नहर निर्माण कार्य जिस तरह से हुए उससे प्रतीत होता है, कि भ्रष्टाचार को अंजाम देने का ख़ाका रणनीतिक तौर पर तैयार किया गया गया था। और एसएससी कन्स्ट्रक्शन फर्म के साथ मिलकर उपयंत्री बीएम पयासी ने तत्कालीन कार्यपालन यंत्री के साथ उक्त कारनामे किये। जिस तरह से कार्य हुआ उससे जलाशय निर्माण में से एक बड़े घोटाले की बू आ रही है।
उपयंत्री के कारनामों से हो रहा पानी रिसाव :
एक पक्की केनाल निर्माण के बाद भी दूसरी ओर कच्ची केनाल पहाड़ी को काटकर बनाई गई। ग्रामीणों का कहना है कि यदि इस पहाड़ को काटकर जलाशय का पानी नहीं निकाला गया होता तो यह बांध फूट सकता था। जलाशय के स्पिल से पानी नहीं निकलने की वजह से दूसरी ओर केनाल पहाड़ी काटकर बना दिया गया, जिसे तकरीबन 4 वर्षों बाद भी नहीं बनाया गया। जबकि वाल के निचले परत से जलाशय का पानी लगातार रिसाव हो रहा है। वाल निर्माण में तक़रीबन 45 डिग्री के कोण के अनुसार पत्थरों की पिचिंग होनी चाहिए, जबकि जलाशय में हुए पिचिंग की हालत नाजुक है। वहीं ग्रामीणों ने यह भी बताया कि वाल के नीचले हिस्से में काली मिट्टी की बजाय पत्थर युक्त मिट्टी यहीं आस-पास से निकालकर फिल कर दी गई।
गर्मी में सूख जाता है जलाशय :
वेस्ट वेयर से लेकर जल निकासी के लिए बने नहर तक का नजारा उपयंत्री के कार्यों की कलई खोलता है, जबकि जलाशय वाल (दीवार) के नीचे से पानी का रिसाव अनवरत जारी है, उपयंत्री ने अपने गलत कारनामों में पर्दा डालने के लिए कुछ दूर तक रिसाव युक्त जगहों से पानी निकलने वाले स्थान को बड़े बोल्डरों (पत्थरों) से ढंकवा दिया। लेकिन बावजूद इसके पानी के रिसाव के कारण नदी बह रही है। जहां नदी का बहना ही जलाशय के निर्माण की पोल खोल रही है। और यही वजह है, कि जलाशय का पानी बैशाख माह (अप्रैल-मई) के महीनों में सूख जाता है। जबकि बारिश के दिनों में यह जलाशय की क्षमता पानी को रोकने के लिए कम पड़ जाती है।
मुआवजा की राशि भी अधर में –
खोह जलाशय निर्माण में जिन काश्तकारों की भूमि अधिग्रहण की गई, उन काश्तकारों का आरोप है कि उन्हें इसका मुआवजा भी अभी तक नहीं मिला। 21 करोड़ के इस परियोजना में उपयंत्री समेत जल संसाधन विभाग के जिम्मेदारों ने तो अपनीं जेबें भरीं, लेकिन खेती से जीविकोपार्जन चलाने वाले काश्तकारों को दर-दर भटकने के लिए मजबूर भी किया। पीड़ित काश्तकारों का कहना है, कि उनके भूमि का मुआवजा अभी तक नहीं मिला, जबकि आदिवासी किसान इसकी गुहार कई बार लगा चुके हैं।
इन्होंने कहा –
मैं अभी विकास यात्रा में हूँ, आप मिलिएगा उसमें बैठकर आपसे बात करूंगा। –
बी.एम. पयासी, उपयंत्री, जल संसाधन विभाग उमरिया
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अक्टूबर में जॉइन किया हूँ, आपके द्वारा दी गई जानकारी संज्ञान में ली गई है, अनुविभागीय अधिकारी से चर्चा कर इंस्पेक्शन के बाद ही अवगत कराऊंगा। –
एस.के. सिंह, कार्यपालन यंत्री, जल संसाधन उमरिया