गौरव अवस्थी
सारी दुनिया को कर्म योग के लिए प्रेरित करने वाले स्वामी विवेकानंद को पाश्चात्य जगत ने ‘साइक्लोनिक हिंदू’ (आंधी उत्पन्न करने वाले हिंदू) की उपाधि दी थी। हिंदू धर्म का यह ‘साइक्लोन’ 121 वर्ष पहले आज ही के दिन शांत हुआ था।
स्वामी विवेकानंद ऐसे वक्त में 12 जनवरी 1863 को मां भुवनेश्वरी देवी के गर्भ से प्रकट हुए थे जब हिंदू धर्म चारों ओर से संकटों से घिरा हुआ था। पिता दुर्गा चरण दत्त कलकत्ता (अब कोलकाता) के नामी वकील थे। उनके जन्म के विषय में चर्चित है कि मां भुवनेश्वरी ने एक सपना देखा कि तुषार धवल कर्पूरगौरं कैलाशपति उनके सामने खड़े हैं और धीरे-धीरे दृश्य बदला। देवाधिदेव शंकर ने शिशु का रूप धारण करते माता की गोद में शरण ली। यह सपना देखते ही माता की आंख खुल गई। कुछ महीनों बाद मां भुवनेश्वरी ने एक शिशु को जन्म दिया। जिसका नाम उन्होंने नरेंद्र रखा। कहा जाता है कि अति चंचल निर्भय और विचारशील बालक नरेंद्र नाथ को भौंहों के बीच में एक दिव्य ज्योतिपिंड का दर्शन होता था। सोते समय आंख बंद करते ही यह ज्योति समस्त शरीर में फैल जाती थी।
मात्र 17 वर्ष की अवस्था में नरेंद्र नाथ को परमहंस रामकृष्ण देव के प्रथम दर्शन हुए। 23 वर्ष के होते होते नरेंद्रनाथ ने पारिवारिक संबंधों का त्याग करके रामकृष्ण मठ में निवास करना शुरू कर दिया। नरेंद्रनाथ को स्वामी विवेकानंद बनाने वाले रामकृष्ण परमहंस ही थे। वह 1888 में दंड-कमंडल लेकर तीर्थ यात्रा पर निकले। समस्त भारत की यात्रा करते हुए उन्होंने भारत और हिंदू धर्म का परिचय प्राप्त किया। 31 मई 1893 को स्वामी विवेकानंद शिकागो में होने वाली धर्म सभा में भाग लेने के लिए भारतवर्ष से प्रस्थान किए। उन्होंने 11, 19 और 29 सितंबर 1893 को धर्म सभा के विभिन्न विभिन्न शहरों में आयोजित हुए अधिवेशन में अपने ओजस्वी विचारों से पाश्चात्य जगत को अचंभित कर दिया था।
उनकी ओजस्विता का ही फल था कि इंग्लैंड और अमेरिका के तमाम निवासी उनके शिष्य बन गए। इनमें भगिनी निवेदिता का नाम प्रमुख तौर पर लिया जाता है। भगिनी निवेदिता का असली नाम मार्गारेट ई. नोबल था। 4 वर्ष तक स्वामी विवेकानंद ने पश्चिम के अनेक देशों का भ्रमण करते हुए वेदांत का प्रचार किया और अनेक मठ भी स्थापित किए। धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद के भाषणों को उस समय के प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘लंदन डेली क्रॉनिकल’, ‘न्यूयार्क हेराल्ड’ प्रमुखता और विस्तार से प्रकाशित किया करते थे।
लेखक प्रचक्षस द्वारा 1951 में लिखी गई किताब ‘आलोक पथ’ में प्रकाशित निबंध के अनुसार, न्यूयॉर्क हेराल्ड ने लिखा-‘शिकागो धर्म सब महासभा में विवेकानंद ही सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं। उनका भाषण सुनकर ऐसा लगता है कि धर्म मार्ग में इस प्रकार के समुन्नत राष्ट्र में हमारे धर्म प्रचारकों को भेजना बुद्धिहीनता मात्र है।’ दी प्रेस आफ अमेरिका ने स्वामी जी के विषय में लिखा था कि हिंदू दर्शन एवं विज्ञान में सुपंडित उपस्थित सभासदों में प्रचारक स्वामी विवेकानंद अग्रगण्य हैं। प्रत्येक ईसाई चर्च के पादरी प्रचारक गण सभी उपस्थित थे परंतु स्वामी जी की भाषण पटुता की आंधी में उनके द्वारा कहे जाने योग्य सभी विषय उड़ गए।
बोस्टन ईवनिंग ट्रैंसक्रिप्ट ने लिखा कि स्वामीजी वस्तुतः महापुरुष, उदार, सरल एवं ज्ञानी हैं । हमारे देश के धुरंधर विद्वानों से गुणगौरव में कहीं उच्च हैं। ‘लंडन डेली क्रॉनिकल’ ने स्वामी जी के विषय में लिखा-‘लोकप्रिय हिंदू सन्यासी विवेकानंद के अंग प्रत्यंग में बुद्धदेव के चिर परिचित मुख का दृश्य अति स्पष्ट है। वाणिज्य द्वारा प्राप्त हमारी समृद्धि, हमारे रक्त पिपासापूर्ण युद्ध तथा धर्म मत आदि के विषय में हमारी असहिष्णुता की तीव्र आलोचना करके स्वामी जी ने कहा-‘इस मूल्य में बेचारे हिंदू तुम्हारी खोखली आडंबर पूर्ण सभ्यता के अनुरागी न बनेंगे।’
शिकागो धर्म सभा के तत्वाधान में हुई विज्ञान सभा के सभापति मिस्टर स्नेल स्वामी विवेकानंद के भाषण से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने विज्ञान सभा में ही कहा- ‘भारतवर्ष ने स्वामी जी को भेजा है इसलिए अमेरिका धन्यवाद दे रहा है..यदि संभव हो तो स्वामी जी की तरह और भी कुछ आदर्श पुरुषों को भेजने के लिए अमेरिका प्रार्थना कर रहा है।’ धर्म सभाओं में स्वामी विवेकानंद ने 27 सितंबर को दिए अपने अंतिम भाषण में जोर देकर कहा था कि आज सभी झंडों पर लिख दो- युद्ध नहीं सहायता। ध्वंस नहीं सामंजस्य और शांति। अपनी इन्हीं विशेषताओं से पाश्चात्य जगत ने भारत के इस सन्यासी स्वामी विवेकानंद को ‘साइक्लोनिक हिंदू’ की उपाधि दी थी।
ऐसे कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद को मोक्ष दिवस पर शत-शत नमन!