नई दिल्ली: चीन ने 2019 में कनाडा में हुए चुनाव में एक चार्टर्ड बस के लिए पैसों की व्यवस्था की। इस बस में चीनी प्राइवेट हाई स्कूल के छात्रों को लिबरल पार्टी के एक उम्मीदवार हान दोंग की मदद के लिए लाया गया था, ताकि वो अपनी पार्टी से उम्मीदवारी हासिल कर सकें। इन छात्रों को बाध्य किया गया कि अगर उन्होंने हान दोंग का समर्थन नहीं किया तो उनका छात्र वीजा मुश्किल में पड़ सकता है और चीन में रहने वाले उनके परिजनों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। ये रिपोर्ट कनाडा सरकार की खुफिया एजेंसी कनाडाई सिक्योरिटी इंटेलिजेंस सर्विस ने बीते अप्रैल में दी थी।
इसमें यह खुलासा किया गया था कि चीनी सरकार ने गुप्त रूप से और धोखा देकर 2019 और 2022 के चुनावों में हस्तक्षेप किया था। यह भी कहा कि ऑनलाइन और सोशल मीडिया में ये मिला कि चीनी मूल के कनाडाई नागरिकों को कंजर्वेटिव पार्टी के (पूर्व) नेता एरिन ओ टूले का समर्थन ना करने के लिए कहा गया था। टूले का आरोप था कि चुनाव में फैलाई गई भ्रामक जानकारियों का उनके चुनाव अभियान पर असर पड़ा और इस कारण 2021 के चुनाव में उनकी पार्टी ने करीब नौ सीटें गंवा दीं। इस कारण उन्हें पार्टी के नेता के तौर पर अपना पद छोड़ना पड़ा।
इन चुनावों में पीएम जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी को बहुमत मिला था। 2019 के चुनावों में चीन ने एक लाख 84 हजार अमेरिकी डॉलर एक अज्ञात उम्मीदवार के कार्यकर्ता को दिए थे। इसके अलावा हस्तक्षेप की कोशिश में दूसरों को भी पैसे दिए गए। अब भारत में लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में भाजपा के कई बड़े नेताओं ने भी चुनाव में विदेशी दखल की बात कही है। आइए- समझते हैं कि चुनाव में विदेशी दखल क्या होता है और किस तरह से दुनिया भर में ऐसे मामले सामने आए हैं। एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं।
54 साल में सबसे खुराफाती रहा है अमेरिका
हांगकांग यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिक्स एंड पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में असिस्टेंट प्रोफेसर डोव एच लेविन की 2020 में एक किताब आई, जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया। यह किताब थी-Meddling in the Ballot Box: The Causes and Effects of Partisan Electoral Interventions। यह किताब 1946 से लेकर वर्ष 2000 तक के पूरी दुनिया में चुनावों में विदेशी दखल पर हुए एक अध्ययन पर आधारित है। इसके मुताबिक, यह कहा गया है कि 54 साल के दौरान अमेरिका ने कई देशों में चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा दखल दिया है। नीचे दिए ग्राफिक से समझते हैं कि किन देशों के चुनाव में किसने सबसे ज्यादा दखल दिया था।
दुनिया के हर 9 में से 1 चुनाव में अमेरिका-रूस ने दिया दखल
लेविन ने अपनी किताब किताब ‘मेडलिंग इन द बैलेट बॉक्स: द कॉजेज एंड इफेक्ट्स ऑफ पार्टिजन इलेक्टोरल इंटरवेंशन’ में लिखा है 1946 से वर्ष 2000 के दौरान 938 चुनावों का परीक्षण किया गया। इनमें से 81 चुनावों में अमेरिका, जबकि 36 चुनावों में रूस ने दखल दिया। दोनों के आंकड़े अगर मिला दिए जाएं तो अमेरिका और रूस ने 938 में से 117 चुनावों में हस्तक्षेप किया। यानी हर 9 चुनाव में से 1 चुनाव में ये दोनों देश दखल देते रहे हैं। यह स्टडी 148 देशों में करीब 1 लाख लोगों पर की गई थी।
सरकार बदलवाने में चीन और रूस झूठ का लेते हैं सहारा
एक जर्मन पॉलिटिकल साइंटिस्ट और अलायंस 90 द ग्रींस पार्टी की सदस्य अन्ना लुहरमैन की 2019 में एक स्टडी आई। यह स्टडी वैराइटीज ऑफ डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट, स्वीडन में प्रकाशित हुई। इसमें कहा गया है कि 2019 में हर देश ने कहा है कि मुख्य राजनीतिक मुद्दों को लेकर सबसे ज्यादा झूठ बोले गए। सबसे ज्यादा झूठ फैलाने में चीन और रूस माहिर हैं। चीन ने ताइवान तो रूस ने लातविया के चुनावों में यही किया। बहरीन, कतर और हंगरी, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, स्विट्जरलैंड और उरुग्वे जैसे देशों में झूठे अफवाहों के आधार पर चुनावों को प्रभावित किया गया।
ये दो थ्योरी से समझिए चुनावों में दखल देने के तरीके
दक्षिण एशियाई यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. देवनाथ पाठक के अनुसार, 2012 में एक स्टडी आई, जिसमें दूसरे देशों के चुनावों में दखल को दो कैटेगरी में बांटा गया। पार्टिजन इंटरवेंशन और प्रॉसेस इंटरवेंशन। यह थ्योरी कॉर्सटैंज और मैरीनोव ने दी थी। पार्टिजन इंटरवेंशन थ्योरी के मुताबिक विदेशी ताकतें जिस देश में दखल देती हैं, उस देश के किसी एक पार्टी का समर्थन करती हैं और उसके चुनाव जितवाने में मदद करती हैं। वहीं, प्रॉसेस ऑफ इंटरवेंशन थ्योरी के तहत विदेशी ताकतें लोकतांत्रिक नियमों का समर्थन करती हैं, चाहे जो भी जीते।
रूसी खुफिया एजेंटों ने फेसबुक का लिया था सहारा
2018 में अमेरिकी सीनेट ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि 2016 में डोनाल्ड ट्रंप को जितवाने के लिए रूसी खुफिया एजेंटों ने फेसबुक विज्ञापनों का इस्तेमाल चुनावों को प्रभावित किया था। रूसी खुफिया एजेंट दुनिया में विरोधियों की हत्याएं करने में माहिर तो माने जाते ही हैं, मगर वो विरोधी देशों में चुनावों को भी प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। ‘मेडलिंग इन द बैलेट बॉक्स: द कॉजेज एंड इफेक्ट्स ऑफ पार्टिजन इलेक्टोरल इंटरवेंशन’ के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने टिकटॉक को बैन करने या उसे बेचने का दबाव बनाने के एक बिल पर दस्तखत किए थे। अमेरिकी संसद का यह मानना था कि चीन की सत्तारूढ़ कम्यूनिस्ट पार्टी ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और मतदाताओं को प्रभावित किया था।
कनाडा ने भारत पर लगाए थे आरोप, जांच में चीन निकला
कनाडा ने भी अपने यहां के चुनावों में विदेशी दखल की बात उठने पर जांच कराई थी, जिसमें कहा गया था कि रूस, चीन, ईरान और पाकिस्तान जैसे देशों ने चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की थी। कनाडा ने भारत पर भी ये आरोप लगाए थे, मगर जांच में कोई प्रमाण नहीं मिले। वहीं, चीन के चुनाव में दखल देने के पर्याप्त सबूत मिले। ब्रिटेन ने भी इसी तरह की एक जांच कराई थी।
चीन की साइबर आर्मी चुनावों में बेड़ा कर रही गर्क
सेबेस्टियन व्हाइटमैन की किताब ‘द डिजिटल डिवाइड इन डेमोक्रेसी’ में कहा गया है कि माइक्रोसॉफ्ट ने भी अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि चीनी सरकार के समर्थन से चीन की साइबर आर्मी आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों, दक्षिण कोरिया और भारत के चुनावों को प्रभावित कर सकती है। उत्तर कोरिया की मदद से चीन दूसरे देशों में अपनी पसंद की सरकार बनवा रहा है। ताइवान में चीन ने यह प्रयोग करने की कोशिश की थी, मगर ताइवानी जनता ने चीन विरोधी राष्ट्रपति चुना है।
मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के चुनावों में भारत पर दखल के आरोप
ऐसा नहीं है कि चुनावों में दखल के आरोप सिर्फ अमेरिका, रूस या चीन पर ही लगते रहे हों। भारत पर भी मालदीव, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल के चुनावों में दखल देने के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि, ये आरोप कभी साबित नहीं हो पाए। ये आरोप भारत विरोधी नेताओं श्रीलंका में राजपक्षे, मालदीव में अब्दुल्ला यामीन और बांग्लादेश में खालिदा जिया लगाती रही हैं। यूरोपियन यूनियन ने भी बीते जून में यूरोपीय संसद के लिए होने वाले चुनावों में विदेशी दखल की आशंका को लेकर एक रिपोर्ट जताई थी।
रूस ने जब जर्मन नेता की चुनावों में की थी मदद
चुनावों में दखल देने के आरोप अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों पर शीतयुद्ध के जमाने से ही लगते रहे हैं। अमेरिका दक्षिण अमेरिका के देशों में तो रूस यूरोप के देशों में अपनी पसंद की सरकारें बनवाते रहे हैं। रूस ने तो 1972 में पश्चिम जर्मनी के नेता की कॉन्फिडेंस वोट हासिल करने में मदद की थी।
शिवराज बोले-विदेशी ताकतें चाहती हैं बीजेपी सत्ता में न रहे
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जयपुर में राजस्थान भाजपा कार्यसमिति की बैठक में बोलते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राहुल गांधी पर भी निशाना साधते हुए कहा-हमारे विरोधी जिसमें यह सच है कि विदेशी ताकतें भी शामिल हैं। ये चाहते हैं कि हमारे देश में कैसे भी बीजेपी की सरकार ना रहे। जिस तेजी से भारत बढ़ रहा है, ये हमारे विरोधियों को रास नहीं आ रहा है। कई ताकतें बीजेपी को नुकसान पहुंचना चाहती है। हमें इसे लेकर सतर्क रहना होगा। उन्होंने कहा कि विदेशी ताकतें किसी भी कीमत पर सत्तारूढ़ पार्टी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं क्योंकि वे भारत की विकास दर से नाखुश हैं।
जब योगी ने कहा-विदेशी ताकतों ने किया सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार
लोकसभा चुनाव के बाद हाल ही में लखनऊ में हुई एक मंथन बैठक में विपक्षी दलों के जातिवाद पर प्रहार करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि चुनाव के दौरान समाज को जाति के नाम पर बांटा गया। इसके लिए विदेशी ताकतों के जरिए सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार किया गया। बड़े पैमाने पर षडयंत्र करके सामाजिक सौहार्द्र को चोट पहुंचाने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि सपा के लोगों ने राम-कृष्ण और शिव को भी कलंकित करने की कोशिश की।
विदेशी दखल रोकने के लिए मजबूत साइबर तंत्र बने
बीते जून को बीजेपी के उत्तर प्रदेश से उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज ने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार फिर से पीएम ना बने इसके लिए विदेशी ताकतों ने पैसा लगाया था। उन्होंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से इस बारे में बात की थी कि गृहमंत्री इसकी जांच करें। उन्होंने कहा कि यह सब साजिश के तहत किया गया और इसमें विदेशी साजिश शामिल थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि हाल के वर्षों में चुनावों में विदेशी दखल की बात बढ़ गई है। ये सिर्फ भारत की बात नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है। इसे रोकने के लिए मजबूत साइबर तंत्र का होना जरूरी है। क्योंकि, ज्यादातर दखल सोशल मीडिया के जरिए हो रही हैं।
भारत के चुनाव में चीन ने AI से दिया दखल: माइक्रोसॉफ्ट
बीते मई में लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विदेशी ताकतें भारत के आम चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशों में लगी हुई हैं लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो पाएंगी। पीएम मोदी ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में यह दावा किया था। इससे कुछ दिनों पहले माइक्रोसॉफ्ट की तरफ से कहा गया था कि चीन आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए भारत के चुनावों में हस्तक्षेप करने में लगा हुआ है।
चुनाव से पहले अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता की रिपोर्ट पर बरसे जयशंकर
पीएम मोदी के इस बयान को कहीं न कहीं अमेरिका की उस रिपोर्ट पर निशाना भी माना जा रहा है, जिसमें मानवाधिकार, भ्रष्टाचार के आरोपी विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के साथ सीएए समेत कई मुद्दों का जिक्र था। इस रिपोर्ट में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना की गई थी। पिछले दिनों विदेश मंत्रालय की तरफ से भी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) की साल 2024 की रिपोर्ट पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी। इस रिपोर्ट में भारत पर ‘धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के विशेष रूप से गंभीर उल्लंघनों में शामिल होने या उसे बर्दाश्त करने’ का आरोप लगाया गया था। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि पश्चिमी मीडिया खुद को भारतीय चुनाव प्रक्रिया में एक पॉलिटिकल एक्टर मानता है।