गौरव अवस्थी
नई दिल्ली: मैं इस समय केरल के वायनाड में हूं। वही वायनाड जहां लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद उपचुनाव हो रहा है। वायनाड का उपचुनाव इसलिए चर्चा में है कि कांग्रेस ने गांधी परिवार की दूसरी सशक्त वारिस प्रियंका गांधी को पहली बार अपना उम्मीदवार बनाया है। रायबरेली-अमेठी के बाद देश में वायनाड इकलौता लोकसभा क्षेत्र बन गया है, जहां गांधी परिवार का दूसरा सदस्य चुनाव मैदान में है।
प्रियंका गांधी को प्रत्याशी बनाए जाने से वायनाड लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव को लेकर मीडिया में भले ही खूब शोर हो पर यहां चुनाव बिना शोरगुल (noiceless) का है। सौ किलोमीटर से अधिक लंबे और तीन जिलों ( वायनाड, कोझिकोड और मल्लपापुरम) के सात विधानसभा क्षेत्रों ( कलपेट्टा, सुलतान बथेरी, मननथवाड़ी, थिरूवमबडी, इरानाड, नीलाम्बुर, वनडुर) में फैले इस लोकसभा क्षेत्र में दिन में बमुश्किल एक दो चुनाव प्रचार वाहन दिख जाएं तो बड़ी बात है। यहां सड़कों पर जुलूस दिखते हैं न नारे सुनाई पड़ते हैं। चुनावी सभाएं भी सिस्टमैटिक और संयमित।
वायनाड में चुनावी कैम्पेनिंग दोपहर बाद शुरू होने की परंपरा है। इसका सीधा सम्बन्ध आप कार्य संस्कृति से भी जोड़ सकते हैं। इसके पीछे की वज़ह रोजमर्रा के काम पहले प्रचार बाद में। हाँ, चाय बागान में काम करने वाले श्रमिकों से संपर्क के वास्ते पार्टी प्रचारक जरूर सुबह- सुबह पहुंच जाते हैं। पिछले दिनों सुलतान बथेरी विधानसभा क्षेत्र के दो गांवों-कुंबलेरी और अंपालावायल में कांग्रेस की चुनावी मीटिंग देखने का मौका मिला। इन मीटिंग को यहां फॅमिली मीटिंग कहा जाता है और य़ह गांव के सार्वजानिक स्थान के बजाये किसी के घर पर होती हैं। चाय-पानी का जिम्मा भी गृह स्वामी का। मीटिंग में न कोई मांग न कोई वायदे का दबाव।
शहरों और गांव-कस्बों में छोटी-बड़ी होर्डिंग्स जरूर दिखेंगी लेकिन चुनाव आयोग के नियमानुसार। सरकारी तो छोड़िए निजी भवनों पर भी चुनाव प्रचार की वॉल राइटिंग नजर नहीं आती। झंडे-बिल्ले भी यदा-कदा स्थानों पर। हर जगह वह भी नहीं। प्राकृतिक जीवन जैसी शांति यहां चुनाव के दौरान भी है। दो दिन के प्रवास में हमें कांग्रेस और बीजेपी के चार- पांच प्रचार वाहन ही नजर आए। इन प्रचार वाहनों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज भी कानफोड़ नहीं थी। सत्तासीन पार्टी सीपीआई की भी सारी गतिविधियां नियम-कायदों के अंदर ही। सभाओ-जुलूसो की वजह से यातायात प्रभावित नहीं होता। बाजार की चहल-पहल भी बरकरार। सामान्य दिनों की तरह जीवन शांत और गतिशील रहता है।
आमतौर पर राजनीतिक दलों की प्रचार गतिविधियां मतदाताओं को प्रभावित और वोटिंग बढ़ाने पर ही केंद्रित रहती हैं लेकिन यहां येन-केन-प्रकारेण वोटिंग बढ़ाने या वोट पाने का कोई प्रयास न प्रभाव और न ही स्वभाव। भारत में शायद केरल ही एक ऐसा शिक्षित राज्य ( साक्षरता दर 86%) है, जहां बिना प्रचार के औसतन 70 से 80% वोटिंग होती ही होती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में 73.54% और 2019 में वोटिंग का आंकड़ा 80% से अधिक था।
वर्ष 2009 में अस्तित्व में आए इस लोकसभा क्षेत्र में चार बार हुए चुनाव में कांग्रेस ही जीतती आ रही है। दो बार राहुल गांधी और दो बार एमआई शनावास चुने जा चुके हैं। उपचुनाव में यहां प्रियंका गांधी के अलावा बीजेपी ने पार्षद नव्या हरिदास और सीपीआई ने सत्यन मोक्केरी को मैदान में उतारा जरूर है पर हवा कांग्रेस के ही पक्ष में नजर आ रही है। वायनाड के लोग प्रियंका गांधी की पालिटिक्स में दमदार एंट्री को जैसे बेताब हैं।
ऑटो ड्राइवर नासिर कहते हैं कि प्रियंका को राहुल गांधी से ज्यादा वोट मिलेंगे। वह तो प्रतिशत भी घोषित कर देते हैं-70%। राहुल गांधी को 2019 के पहले चुनाव में 64% और 2024 के हालिया चुनाव में 59% वोट मिले थे। फल की दुकान लगाए वहीद कहते हैं कि प्रियंका को महिलाएं और युवतियाँ बहुत पसंद कर रहे हैं। फिर वह दादी इंदिरा गांधी की तरह मजबूत दिखती भी हैं और होंगी भी। एक महिला सरकारी कर्मचारी कहती हैं-‘ यहां मेडिकल कॉलेज नहीं है। नया हाईवे भी चाहते हैं क्योंकि रात में मैसूर का राजमार्ग बंद कर दिया जाता है। य़ह बड़ी और पुरानी समस्या है।’ कांग्रेस कार्यकर्ता प्रियंका गांधी के 5 लाख वोटों से अधिक से जीत के दावे कर रहे हैं।
बीजेपी को भी इस बार अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद इसलिए है कि 2024 के आम चुनाव में उसके वोट प्रतिशत में करीब 7 % की वृद्धि हुई है लेकिन वायनाड का जातीय और धार्मिक समीकरण बीजेपी के लक्ष्य में बड़ा रोड़ा है। यहां 41 प्रतिशत मुस्लिम और 14 प्रतिशत ईसाई वोटर हैं। बाकी हिन्दू वोटर हैं लेकिन 9% अनुसूचित जनजाति और 6% अनुसूचित जाति के वोटों में सेंध बीजेपी के लिए अभी दूर की कौड़ी दिखती है। अब य़ह देखने वाली बात होगी कि उपचुनाव के रिजल्ट कांग्रेस कार्यकर्ताओं के दावे पर खरे उतरेंगे या कोई नई तस्वीर सामने आएगी।