नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सीएसडीएस-लोकनीति प्री पोल सर्वे के नतीजे आए हैं। इनसे कई संकेत मिल रहे हैं। एक संकेत चुनाव से जुड़े मुद्दों के बारे में भी मिल रहा है। सर्वे के नतीजों से यह सामने आया है कि चुनाव में तीन सबसे बड़े मुद्दे बेरोजगारी, महंगाई और विकास हैं। राम मंदिर, हिंंदुत्व जैसे मुद्दे जनता की नजर में गौण हैं।
चुनाव में क्या हैं प्रमुख मुद्दे?
लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के चुनाव पूर्व सर्वे में लोगों से उन मुद्दों की पहचान करने के लिए कहा गया जो उन्हें लगता है कि चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण है। सूची में तीन सबसे बड़े मुद्दे सामने आए- बेरोजगारी, महंगाई और विकास। जहां विकास की बात करने वाले उत्तरदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर हो सकता है, वहीं बेरोजगारी और महंगाई पर मतदाताओं की चिंता पार्टी के लिए खतरे का संकेत हो सकती है।
महंगाई का क्या है हाल
लोकसभा चुनाव से पहले खाना और घर बनाना महंगा हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च में शाकाहारी थाली की कीमत 7% बढ़कर 27.3 रुपये हो गई है जबकि मार्च 2023 में यह 25.5 रुपये थी। क्रिसिल रेटिंग एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि में मांसाहारी थाली की कीमत 59.2 रुपये से 7% कम होकर 54.9 रुपये हो गई। इस बीच सीमेंट कंपनियों ने भी सीमेंट के दाम बढ़ा दिये हैं जिसके कारण घर बनाना महंगा हो गया है। सीमेंट की 50 किलोग्राम की बोरी के दाम 10-40 रुपये तक बढ़ गए हैं। उत्तर भारत में सीमेंट के दाम 10-15 रुपये प्रति बोरी बढ़ गए हैं। मध्य भारत में यह रेट 30-40 रुपये प्रति बोरी बढ़ा है। वही, पश्चिम भारत में यह रेट 20 रुपये प्रति बोरी बढ़ा है। दिल्ली के बाजार में प्रमुख खाद्य पदार्थों के रिटेल प्राइज कुछ इस प्रकार हैं।
बेरोजगारी पर क्या कहती है आईएलओ की रिपोर्ट
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एंप्लॉयमेंट इंडिया रिपोर्ट, 2024 बताती है कि भारत की लगभग 83% बेरोजगार वर्कफोर्स 30 साल से कम उम्र के हैं। 2019 की स्टडी के साथ वर्तमान रिजल्ट की तुलना करें तो 2019 में 11% से बढ़कर 2024 के सर्वे में 27% उत्तरदाता बेरोजगारी को सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा मानते हैं।
भारत में शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है। पिछले 22 साल में माध्यमिक या उससे ऊपर की शिक्षा प्राप्त बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ी है। साल 2000 में सभी बेरोजगारों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी 54.2 प्रतिशत थी, जो 2022 में बढ़कर 65.7 प्रतिशत हो गई। माध्यमिक स्तर या उससे ऊपर शिक्षित बेरोजगार युवाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 76.7 प्रतिशत और पुरुषों की 62.2 प्रतिशत है। भारत में बेरोजगारी पर क्या कहती है।
विकास के संकेत
आंकड़ों की बात करें वर्ल्ड GDP रैंकिंग में भारत पांचवें नंबर पर है। भारत का लक्ष्य अगले तीन साल में 5 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है। ऐसे में भारत को 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए प्रति वर्ष केवल 6% की दर से बढ़ने की जरूरत है।
2010 से 2022 के दौरान भारत की रियल जीडीपी औसतन 5.9% की दर से बढ़ी है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से वास्तविक जीडीपी बढ़ने की रफ्तार 5.7% रही है। ऐसे में साफ जाहिर है कि तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को जो रफ्तार चाहिए, वह पिछले दो दशक में नहीं रही है। भारत तुलनात्मक रूप से विकास में कमजोर रहा है। यहां तक कि 2013 और 2022 के बीच इसकी समग्र जीडीपी रैंकिंग में सुधार भी 5.7% की औसत वार्षिक वृद्धि के कारण हुआ है, जो बहुत ज्यादा नहीं है।
भाजपा के प्रमुख फैसले
अपने दूसरे कार्यकाल में, भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने कई महत्वपूर्ण संवैधानिक परिवर्तन किए और परियोजनाएं शुरू कीं। इस संदर्भ में, आर्टिकल 370 को निरस्त करना, G-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी और समान नागरिक संहिता की योजना प्रमुख रूप से सामने आती है। CSDS-Lokniti pre poll study इस बात पर प्रकाश डालती है कि भारतीय मतदाताओं ने मौजूदा सरकार के इन कार्यों और इरादों को कैसे समझा।
केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को रद्द कर दिया। सर्वे में सामने आया कि 34% मतदाता इसे एक सकारात्मक कदम के रूप में देखते हैं, जबकि 16% इस फैसले का समर्थन करते हैं लेकिन इसे लागू करने के तरीके पर सवाल उठाते हैं। हालांकि, 8% मतदाता अभी भी अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से असहमत हैं। दूसरी ओर, 20% मतदाताओं को आर्टिकल 370 के बारे में जानकारी नहीं है। वहीं, 22% ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।