मुंबई : तीन दिन पहले जब शरद पवार ने एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का ऐलान तो हर कोई हैरान रह गया. इसी दौरान पवार ने एक और अहम ऐलान करते हुए कमेटी का गठन भी कर दिया और कहा कि ये कमेटी बैठेगी, मिलेगी और यह तय करेगी कि नया अध्यक्ष कौन बनेगा. तमाम नेताओं ने उस समय पवार से अपना इस्तीफा वापस लेने को कहा लेकिन उन्होंने दो टूक कह दिया कि वह इस्तीफा वापस नहीं लेंगे. लेकिन आज वहीं कमेटी ने नया अध्यक्ष चुनने की बजाय एक लाइन का प्रस्ताव पारित कर दिया कि हम आपका इस्तीफा नामंजूर करते हैं. साफ था कि कमेटी पहले से एजेंडा तय करके आई थी और पवार का इस्तीफा नामंजूर होना ही था. इस बीच पवार ने कमेटी के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए कुछ दिन का समय मांगा है.
इस्तीफे के मायने
इस इस्तीफे को लेकर राजनीतिक विश्लेषक अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं. जब हाल ही में चुनाव आयोग ने एनसीपी से राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा छिना था तो शायद उसके बाद पवार सोचने लग गए थे कि अब राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहने का कोई औचित्य नहीं है. इस्तीफे के बाद जिस तरह पवार को विपक्षी दलों ने कॉल करके मनाने की कोशिश की, उससे साफ हो गया कि उनका कद आज भी राष्ट्रीय स्तर पर कितना बड़ा है. ऐसे समय में जब नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं, ऐसे में शरद पवार का रूतबा देखते हुए उनकी भूमिका और भी अहम हो जाती है और यही बात पार्टी नेता उन्हें बता रहे थे.
एक तीर से कई निशाने
जब उन्होंने इस्तीफे का यह फैसला लिया था तो पार्टी के बांकी नेताओं से बात नहीं की थी और परिवार के केवल चार लोगों बेटी सुप्रिया सुले, दामाद सदानंद सुले, भतीजे अजित पवार और उनकी पत्नी प्रतिभा पवार को इसके बारे में पता था. महाराष्ट्र में अजित पवार को शरद पवार का उत्तराधिकारी माना जाता है. इस्तीफे से पहले इस तरह की खबरें थी कि अजित पवार बगावत कर सकते हैं और एनसीपी के कई विधायक बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. दूसरी बात ये थी कि एनसीपी का नेशनल पार्टी का दर्जा इलेक्शन कमीशन ने वापस ले लिया था. इसका असर पवार पर पड़ रहा था. पवार इस समय 83 साल के हो गए हैं.
ऐसी स्थितियों में अगर वह पद पर बने रहते और पार्टी में फूट पड़ती तो शिवसेना वाली हालत हो सकती थी, जिससे पवार की इमेज पर भी फर्क पड़ता. अब इस्तीफा देने के बाद असर ये हुआ कि पार्टी के सभी नेता एकजुट हो गए और स्टेज पर ही कहने लगे कि इस्तीफा वापस लीजिए, दूसरा, इसके जरिए उन्होंने दिखा दिया कि वही पार्टी के असली किंग हैं बाकी कोई और नेता पर पार्टी वर्कर एकमत होने के लिए तैयार नहीं हैं.
इस्तीफे के ऐलान से क्या हुआ हासिल
अब पार्टी के पवार के पास इस्तीफा नामंजूर करने की कई वजहे हैं. पवार के इस्तीफे से एक और बात साफ हो गई कि लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले वहीं भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ राष्ट्रीय विपक्ष को एकजुट रखने की ताकत रखते हैं. पवार इस समय महाविकास अघाड़ी के मुखिया भी हैं. यानि पवार ने पार्टी में सभावित फूट, विपक्ष को संदेश को संदेश देने के अलावा उत्तराधिकार की बहस पर भी विराम लगा दिया.
- एनसीपी में शिवसेना जैसा संभावित विद्रोह शांत हो गया.
- पवार के इस्तीफे के ऐलान से साफ हो गया कि एनसीपी का कैडर और वफादार मतदाता किसके साथ खड़े हैं.
- यह बात साबित हो गई कि महा विकास अघाड़ी में एनसीपी का वर्चस्व सबसे अधिक है.
मानेंगे पवार?
ऐसी स्थिति में जब पवार को लेकर एनसीपी के सभी नेता एकजुट हैं और पार्टी कार्यकर्ता मानने को तैयार नहीं है, देखना दिलचस्प होगा कि शरद पवार का अगला कदम क्या होगा. कमेटी उन्हें फैसला मानने के लिए बाध्य करेगी और इसके सदस्य पवार के घर मुलाकात करने जाएंगे.
अब पार्टी के नेता पवार से कह सकते हैं कि जब चुनाव के लिए एक साल से भी कम समय बचा है ऐसे समय में नए अध्यक्ष का चुनाव करना काफी कठिन काम होगा क्योंकि उसके (नए अध्यक्ष) निर्णय को कार्यकर्ता कितना मानेंगे इस पर भी संशय होगा. पवार से पार्टी नेता कह सकते हैं कि आप पार्टी नेता बने रहें और अंदरूनी तौर पर जो बदलाव करने हैं वो करें. सूत्रों की मानें तो शरद पवार कोर कमेटी का फैसला मान लेंगे.