नई दिल्ली: कतर की अदालत ने जिस तरह से आनन-फानन में भारतीय नौसेना के 8 रिटायर्ड अफसरों को कथित जासूसी के आरोपों में मौत की सजा सुनाई है, वह बहुत ही संदिग्ध है। यह मानने की कई वजहें हैं कि कतर का असली एजेंडा कुछ और है!
दरअसल, भारतीय नौसेना के आठों रिटायर्ड अधिकारी कतर की जिस अल-दहरा कंपनी के लिए काम करते थे, उसका मालिक रॉयल ओमान एयर फोर्स का रिटायर्ड अफसर था। जानकारी के मुताबिक कतर की खुफिया एजेंसी ने इजराइल के लिए कथित जासूसी करने के आरोपों में जब भारतीयों को पकड़ा था, उसके साथ कंपनी का मालिक भी गिरफ्तार किया गया था। लेकिन, पिछले साल नवंबर में ही उस कंपनी के मालिक को छोड़ दिया गया था।
कतर की करतूत की टाइमिंग है अहम
कतर में जिस समय 8 भारतीयों को मौत की सजा सुनाई गई है, उसकी टाइमिंग बहुत सारे सवाल खड़े कर रही है। इजराइल और फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास के बीच जो जंग चल रही है, उसमें अधिकतर मुस्लिम देशों का रवैया इजराइल को लेकर बहुत ही सख्त है। जबकि, हमास के खिलाफ भारत इजराइल के साथ मजबूती से खड़ा है।
खास बात ये है कि भारतीय नौसैनिकों को मौत की सजा देने के लिए कथित रूप से इजराइल के लिए ही जासूसी करने का दावा किया गया है। गौर करने वाली बात है कि इससे पहले कनाडा ने भारत के साथ राजनयिक रिश्तों को लेकर जिस तरह की अपरिपक्वता दिखाई और भारत ने जैसा जवाब दिया, उससे अमेरिका समेत पूरी दुनिया में खुद को ‘चौधरी’ समझने वाले देशों को बहुत जोर का झटका लगा है।
मुसलमानों का नया खलीफा बनने की चाहत!
एक तथ्य ये है कि कतर ने पिछले कुछ वर्षों में खुद को इस्लाम के उभरते हुए खलीफा के तौर पर पेश करने की चाहत दिखाई है! यह आतंकवाद की पैरवी करने वाले जाकिर नाइक जैसे भारत के दुश्मनों की भी मेजबानी करता है। तो तालिबान से लेकर हमास तक के आतंकी आका कतर में बेझिझक डेरा डालते रहे हैं। कतर की इस छवि के चलते सऊदी अरब और यूएई जैसे अरब देश भी कई बार उससे कन्नी काटते नजर आते हैं। जबकि, भारत के साथ इन देशों की मित्रता परवान चढ़ रही है। यह वही कतर है जो नूपुर शर्मा विवाद जैसे भारत के आंतरिक मामलों में भी छाती पीटने में सबसे अगली कतार में खड़ा हो जाता है।
जबकि, तथ्य यह है कि 8 लाख से ज्यादा भारतीय कतर में काम करते हैं। भारत उससे रोजाना 14,000 बैरल तेल आयात करता है और यह देश का 7वां सबसे बड़ा तेल निर्यातक है। यही नहीं कतर के अमेरिका के साथ भी महत्वपूर्ण सामरिक रिश्ते हैं और वह उसका एक प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी भी है।
कतर को पूरा अंदाजा है कि भारत की सैन्य ताकत उससे कई गुना विशाल है। तथ्य यह भी है कि भारत ने इजराइल पर हमास के आतंकवादियों के क्रूर हमले का विरोध किया है, तो गाजा में मानवीय सहायता पहुंचाने भी आगे रहा है। फिलिस्तीन की स्वतंत्रता को लेकर इसका स्टैंड नहीं बदला है और ना ही आतंकवाद से समझौता करने का सवाल पैदा होता है।
कतर की असल मंशा क्या है?
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उसने जिस तरह से 8 भारतीयों को मौत की सजा सुनाई गई है, कतर के लिए जल्दबाजी में उसकी तामील करना क्या इतना आसान है? फिर कतर ने भारत के साथ जो मौजूदा राजनयिक हालात बनाए हैं, उसके पीछे की असल मंशा क्या हो सकती है?
एक तो ये हो सकता है कि हमास के विरोध में इजराइल के साथ खड़े होने की वजह से वह भारत के खिलाफ अपनी खीझ दिखाकर खुद को इस्लाम का नया खलीफा की तरह पेश करने की कोशिश में है। हो सकता है कि इसी वजह से भारतीय नागरिकों को इजराइल के लिए कथित जासूसी करने का बहाना बनाया जा रहा हो!
जबकि, भारत ने पहले ही इजराइल, हमास और फिलिस्तीन पर अपना स्टैंड पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है। भारत हमास की ओर से इजराइली नागरिकों के साथ की गई क्रूरता का विरोध कर रहा है। अगर कतर भारत से यही उम्मीद कर रहा था तो वह भारत सरकार पहले ही साफ कर चुकी है।
दूसरा, कतर की इस गुस्ताखी की एक वजह ये हो सकी है कि वह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे को शायद संदिग्ध नजरों से देख रहा हो। हो सकता है कि वह इससे चिढ़ा हुआ है कि उसके महत्वपूर्ण सहयोगी, चीन, तुर्की और पाकिस्तान को इससे दूर क्यों रखा गया है?
तीसरा, एक महत्वपूर्ण वजह ये हो सकती है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अपनी राजनयिक सक्रियता से खाड़ी देशों में भी भारत के खिलाफ इकट्ठा किए जाने वाले फंड को रोकने में काफी कामयाबी हासिल की है। पाकिस्तान में भी भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते राजनयिक प्रभाव की वजह से खलबली मची हुई है।
धर्म के नाम पर राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को पनाह देने के डर से हो सकता है कि कतर खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा हो और उसने दबाव की राजनीति के तहत भारतीयों पर इजराइल के लिए जासूसी करने के आरोप मढ़ दिए हों!
आखिरी संभावना ये भी हो सकती है कि कतर खुद ही एक मोहरा हो! क्योंकि, कनाडा वाले मामले में भारत ने जिस तरह से कड़ी प्रतिक्रिया दिखाई है, उससे यूरोप तो क्या अरब देशों से लेकर अमेरिका और बाकी देश भी हिले हुए हैं। पाकिस्तान तो पहले से ही भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते कद को लेकर छाती पीट रहा है।
हालांकि, भारत के पास कतर के अदालत के फैसले को चुनौती देने के कानूनी विकल्प मौजूद हैं। यह मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी ले जाने के लिए फिट है। कतर को अंदाजा जरूर होगा कि जिस आनन-फानन में सजा का ऐलान किया गया है, अगर गलती से जल्दबाजी में उसपर तामील किया गया तो उसके नतीजे दूरगामी हो सकते हैं। भारी संख्या में भारतीयों की मौजूदगी के रहते कतर के लिए इतनी बड़ी गलती करना आसान नहीं है।
भारतीयों को मोहरा बनाकर कोई डील करना चाहता है कतर?
इसलिए, इस बात की पूरी संभावना है कि 8 भारतीय नौसैनिकों को कतर सिर्फ मोहरे के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है और इसकी एवज में वह भारत से कोई न कोई डील करना चाहता है! क्योंकि, कतर को ही नहीं, उसके रहनुमाओं को भी पता है कि अपने नागरिकों की सुरक्षित रिहाई के लिए भारत किसी भी स्तर पर जा सकता है।