नई दिल्ली : अमेरिका में बैंकिंग संकट (US Bank Crisis) और इसका यूरोप के बड़े बैंकों पर असर… ये मुद्दा सुर्खियों में है. इस बीच एक सवाल जो इन डूब चुके और डूबने की कगार पर पहुंच चुके बैंकों के ग्राहकों (Bank Customers) के मन में खड़ा हुआ है, वो ये है कि आखिर उनके पैसों का क्या होगा? अमेरिकी रेग्युलेटर्स और सरकार दोनों की ओर से कहा जा रहा है कि ग्राहकों का पैसा मारा नहीं जाएगा. लेकिन उनका पैसा कब और कैसे वापस होगा? इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं. आइए जानते हैं कि कब कोई बैंक दिवालिया (Bank Dafault) होता है और भारत में इसे लेकर क्या कानून हैं?
अमेरिका से लेकर यूरोप तक उथल-पुथल
सबसे पहले बात कर लेते हैं अमेरिका (US) और यूरोप के बैंकिंग क्राइसिस के बारे में, US में सिलिकॉन वैली बैंक (Silicon Valley Bank) के डूबने के कुछ ही दिन बात सिग्नेचर बैंक (Signature Bank) को बंद करने का ऐलान कर दिया गया. इसके अलावा फर्स्ट रिपब्लिक बैंक (First Republic Bank) समेत 6 से ज्यादा बैंक पर डूबने का खतरा बढ़ गया.
वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी First Republic समेत करीब आधा दर्जन बैंकों को अंडर रिव्यू में डाल दिया. अमेरिका में बैंकिंग सेक्टर में शुरू हुई सुनामी यूरोप के सबसे बड़े बैंकों में से एक क्रेडिट सुइस (Credit Suisse) के लिए भी खतरनाक साबित हुई. हालांकि, स्विस नेशनल बैंक की ओर से दी गई उधारी से इसके डूबने का खतरा कुछ हद तक टल गया.
इस स्थिति में दिवालिया होता है बैंक
अब सवाल की आखिर कोई बैंक दिवालिया कब होता है? तो बता दें किसी बैंक की लायबिलिटी उसके असेट्स से ज्यादा हो जाने और इस संकट से निपटने में उसके सक्षम न होने की स्थिति वह दिवालिया (Default) हो जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो बैंक की कमाई उसके खर्चों की तुलना में काफी कम हो जाती है और वह लगातार नुकसान झलता रहता है और इस संकट से उबरने में नाकाम होता है, तो फिर ऐसे बैंक को डूब हुआ माना जाता है और रेग्युलेटर्स इस बैंक को बंद करने का फैसला ले लेते हैं.
सरकारी और प्राइवेट लगभग सभी बैंकों में काफी हद तक ये प्रक्रिया समान ही होती है. किसी भी बैंक के डूबने की स्थिति में सबसे ज्यादा झटका उसमें अपनी गाढ़ी कमाई जमा करने वाले ग्राहकों को लगता है और वे हर हाल में अपने पैसों को निकालने की जुगत में लग जाते हैं. एकदम से भारी निकासी का असर बदहाल बैंक को और जल्दी डुबोने का काम करता है.
अमेरिका में बैंक डूबने पर क्या नियम?
अमेरिका में बैंकों के बंद होने के तुरंत बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन और फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (FDIC) ने भी ग्राहकों का जमा वापस दिलाने का भरोसा दिलाया है. लेकिन अगर FDIC के नियमों पर गौर करें तो अमेरिका में डिपॉजिटर्स को बैंक के डूबने की स्थिति में बैंक में 2.5 लाख डॉलर तक का डिपॉजिट इंश्योरेंस मिलता है. यानी ग्राहक अपने कुल जमा में से 2.5 लाख डॉलर तक का अमाउंट गारंटेड पा सकते हैं. इस इंश्योरेंस के बारे में बात करें, तो डिपॉजिट इंश्योरेंस बैंक में जमा पैसे का बीमा होता है, जो बैंक के डूबने की स्थिति में आपकी फंसी हुई रकम पर एक तय राशि रिकवर करने की सहूलियत देता है.
भारत में ग्राहकों को मिलती है इतनी रकम
भारत में भी बैंकों के डूबने की स्थिति में ग्राहकों के लिए डिपॉजिट इंश्योरेंस की सुविधा 60 के दशक से जारी है. देश में डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) रिजर्व बैंक के अधीन इस नियम के तहत ग्राहकों की जमा राशि पर इंश्योरेंस कवर देती है. हालांकि, भारत में 4 फरवरी 2020 से पहले बैंक जमा पर Deposit Insurance महज एक लाख रुपये का हुआ करता था. मतलब आपके बैंक में जमा भले ही 10 लाख से ज्यादा हो, लेकिन बैंक बंद होने या डूबने पर आपको गारंटेड 1 लाख ही वापस मिलेंगे.
मोदी सरकार ने इस नियम में बदलाव किया और डिपॉजिट इंश्योरेंस कवर को एक लाख से 5 लाख रुपये कर दिया. यानी डूबने वाले बैंक में अकाउंट रखने वाले ग्राहकों की 5 लाख रुपये तक की रकम इंश्योर्ड रहती है. जिस तारीख को बैंक का लाइसेंस रद्द किया जाता है या बैंक बंद करने का ऐलान कर दिया जाता है, तो उस तारीख में ग्राहक के अकाउंट में जो जमा और ब्याज होता है, उसमें से अधिकतम पांच लाख उसे मिल सकता है.
90 दिनों में मिलती है इंश्योर्ड रकम
Deposit Insurance सिस्टम में सेविंग्स अकाउंट, करेंट अकाउंट, रेकरिंग अकाउंट सहित हर तरह के डिपॉजिट शामिल होते हैं, जिनमें डाली गई राशि पर इंश्योरेंस कवर दिया जाता है. यहां सबसे खास बात यह है कि इस नियम के तहत किसी बैंक के डूबने पर इंश्योरेंस के तहत अकाउंट होल्डर्स को पैसा 90 दिन के भीतर मिल जाता है. यानी तय समय के अंदर ग्रोहकों को जमा राशि पर तय इंश्योर्ड राशि का पेमेंट कर दिया जाता है. इस प्रक्रिया पर गौर करें तो संकटग्रस्त बैंक को पहले 45 दिनों में इंश्योरेंस कॉरपोरेशन को सौंपा जाता है. रिजॉल्यूशन का इंतजार किए बिना 90 दिनों के अंदर प्रोसेस को पूरा कर लिया जाता है.
भारत में भी बैंकिंग सेक्टर में अमेरिका के ताजा हालातों के जैसे ही उथल-पुथल मच चुकी है और यस बैंक, लक्ष्मी निवास बैंक और पीएमसी इसके उदाहरण हैं. हालांकि, बैंक डूबने से बच गए थे. वहीं अमेरिका में दिवालिया हो चुके बैंकों का रिकॉर्ड लंबा है और अब तक तकरीबन 500 से ज्यादा बैंक डूब चुके हैं. इसमें सबसे ज्यादा 157 बैंक साल 2010 में डूबे थे.