COP27 जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफ़सीसीसी) के दलों के सम्मेलन की 27 वीं बैठक है। इस वार्षिक बैठक सम्मेलन में 198 सदस्य जलवायु परिवर्तन पर ठोस कार्रवाई करने के लिए एक साथ आते हैं।
बैठक में, देश के प्रतिनिधि कई मुद्दों पर चर्चा करते हैं। जैसे: जलवायु परिवर्तन शमन यानी क्लाइमट चेंज मिटिगेशन, जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले पर्यावरणीय प्रभावों के प्रति अनुकूलन और विकासशील देशों का जीवाश्म ईंध यानी फ़ोसिल फ़्यूल से दूर जाने के प्रयास और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से लड़ना।
पहली संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता 1995 में बर्लिन, जर्मनी में आयोजित की गई थी। साल 2015 में आयोजित ऐतिहासिक COP21 बैठक में, देशों ने पेरिस समझौते को मंज़ूरी दी थी। यह एक ऐतिहासिक समझौता था। इसके तहत हर एक देश को पूर्व-औद्योगिक स्तरों यानी प्री-इंडस्ट्रीयल लेवल की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को “2 डिग्री सेल्सियस से नीचे” रखने के लिए अपनी प्रतिज्ञा पेश करनी थी। इस सामूहिक प्रयास में उत्सर्जन में कमी और अनुकूलन उपाय भी शामिल होनी चाहिए थी। उन्होंने ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का आकांक्षात्मक लक्ष्य भी तय किया।
COP27 कब और कहां आयोजित किया जाएगा?
COP27 ईजिप्ट के शर्म अल शेख में 6 से 18 नवंबर 2022 तक आयोजित किया जा रहा है।
COP27 क्यों ज़रूरी है?
COP27 जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक कार्रवाई के लिए एक मेक-या-ब्रेक मौक़ा है। दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर वार्मिंग बनाए रखने की राह पर पहले ही नहीं है, और पिछले एक साल की घटनाओं ने सफलता की राह को और भी कठिन बना दिया है। जलवायु परिवर्तन की वजह से विभिन्न आपदाओं में बढ़ोतरी देखी गई है। इन बढ़ते प्रभावों के साथ-साथ कोविड -19 और रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के निरंतर आर्थिक प्रभावों ने डीकार्बोनाइजेशन और जलवायु पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए बड़ी ठोकरें पैदा की हैं।
यह भी नज़र आ रहा है कि पेरिस समझौते की अहमियत ख़त्म होने के कगार पर है। अगर COP27 में जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और क्षति यानी लॉस एंड डैमेज से निपटने के लिए विकासशील देशों को समर्थन मिले तो COP27 कामयाब होगा। और यह कामयाबी जलवायु पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को जीवित रखने के लिए ज़रूरी है।
COP26 में क्या हुआ था?
COP26 यानी पार्टियों का 26वां सम्मेलन पिछले साल स्कॉटलैंड के ग्लासगो में हुआ था। इस सम्मेलन के अंत तक सभी देश ग्लासगो जलवायु समझौते तक पहुंचे। इस समझौते में अनबेटिड कोल पावर यानी कोयले को “फेज़ डाउन” करने और बेअसर फ़ोसिल फ़्यूल सब्सिडी को ख़त्म करने की प्रतिबद्धता शामिल थी। COP26 में पेरिस नियम पुस्तिका को भी फ़ाइनल किया गया। पेरिस समझौते को ये रूप मिलने से कार्बन उत्सर्जन के व्यापार का मार्ग मज़बूत हुआ। इसे आर्टिकल 6 यानी अनुच्छेद 6 के रूप में भी जाना जाता है।
COP26 में विकासशील देशों के लिए एक बड़ी निराशा एक वित्त सुविधा पर प्रगति की कमी थी जो जलवायु परिवर्तन के कारण स्थायी क्षति से लड़ने के लिए विकसित देशों से वित्तीय सहायता में तेजी लाएगी। ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट ने लॉस एंड डैमेज को संबोधित करने की आवश्यकता को मान्यता दी लेकिन वो सम्मेलन एक ठोस उपाय के बिना समाप्त हो गया जो देशों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकता था।
दक्षिण एशिया के लिए COP27 का क्या मतलब है?
दक्षिण एशियाई देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे सूखा, शक्तिशाली चक्रवात और अन्य आपदाओं से प्रभावित है। हिमालय जैसे नाज़ुक क्षेत्रों में अनिश्चित मानसून और बदलता जल चक्र ख़तरे का संकेत है। इस इलाक़े में जोखिम ज़्यादा है। साथ ही, दक्षिण एशिया जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले प्रवास और विस्थापन से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में से एक है।
चरम मौसम की घटनाओं पर 2021 के एक अध्ययन में पाया गया कि भारत दुनिया का सातवां सबसे अधिक प्रभावित देश था। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अधिक गंभीर और लगातार होते जा रहे हैं। सिर्फ़ 2022 में, कई चरम घटनाओं ने दक्षिण एशिया को प्रभावित किया है। पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ ने कम से कम 33 मिलियन लोगों को प्रभावित किया है और कम से कम 882 बिलियन रुपयों की क्षति हुई है। इस साल की शुरुआत में, बड़े पैमाने पर बाढ़ ने पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में सैकड़ों हजारों लोगों को विस्थापित किया और लाखों लोगों की आजीविका को भी बर्बाद कर दिया।
कुछ लोगों के लिए ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करना ज़िंदगी और मौत का सवाल है। कई लोग मौसम की चरम सीमाओं से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।उनके पास अनुकूलन के लिए आर्थिक संसाधनों की भी कमी है। ज़्यादातर विकासशील देशों की तरह, दक्षिण एशियाई देश भी न्यूनीकरण और अनुकूलन को बढ़ाने और पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिए विकसित देशों पर निर्भर हैं।
इस साल सितंबर में, भारत के केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने घोषणा की कि इस साल ईजिप्ट में COP27 में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला लॉस एंड डैमेज यानी नुकसान और क्षति चर्चा का एक प्रमुख बिंदु होगा। पाकिस्तान ने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि इस साल की जलवायु वार्ता में नुकसान और क्षति औपचारिक एजेंडे में होनी चाहिए। COP27 में, विकसित देशों पर वार्ता के दौरान नुकसान और क्षति के लिए समर्थन को प्राथमिकता देने के लिए कमज़ोर देशों का दबाव रहेगा।
साभार : thethirdpole.net