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सिंधु जल संधि को लेकर भारत के पास क्या है आगे का रास्ता?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
25/05/25
in अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, समाचार
सिंधु जल संधि को लेकर भारत के पास क्या है आगे का रास्ता?
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नई दिल्ली। पाकिस्तान ने इस महीने की शुरुआत में संकेत दिया था कि वह सिंधु जल संधि पर चर्चा करने को तैयार है। इस संधि को भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद स्थगित कर दिया था। पहलगाम के बाद में यह संधि नए सिरे से सुर्खियों में आई है। प्रधानमंत्री ने इस बात को कई बार दोहराया है कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं। भारत ने जनवरी 2023 में पाकिस्तान को इसकी शर्तों पर फिर से बातचीत करने के लिए एक नोटिस जारी किया था।

सिंधु जल संधि तकरीबन 65 सालों से चली आ रही है। इसके तहत इंडस रिवर सिस्टम को शेयर किया जाता है। भारत के लिए पूर्वी नदियां सतलुज, व्यास और रावी व पाकिस्तान के लिए पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम और चिनाब नदी हैं। भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों के कुछ वर्गों ने दावा किया है कि यह संधि उनके देश के लिए सही नहीं है और दूसरे के लिए बहुत उदार है। जब इस पर साइन किए गए थे तो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे पाकिस्तान के लिए शांति की कीमत बताया था। अब भारत के अंदर इसे पूरी तरह से खत्म करने की मांग की जा रही है, जबकि पाकिस्तान ने दावा किया है कि उसकी जल आपूर्ति में किसी भी तरह की बाधा को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस पूरे शोर-शराबे के बीच संधि के बारे में बहुत कुछ अभी भी इसके समर्थकों और विरोधियों दोनों के लिए ही समझ से बाहर है। मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के सीनियर फेलो उत्तम कुमार सिन्हा संधि की शर्तों और इसे स्थगित रखने का क्या मतलब है। इसके बारे में इंडियन एक्सप्रेस से खुलकर बात की।

1960 में साइन की गई सिंधु जल संधि का भारत के लिए क्या मतलब है?

सिंधु जल संधि पर दोनों देशों ने साइन किए थे। उस वक्त से लेकर अब तक बहुत कुछ बदल गया है। ईमानदारी से कहा जाए तो इस को ध्यान में रखते हुए संधि पर फिर से बातचीत करने की जरूरत है। इस संधि के हिसाब से पाकिस्तान को ज्यादा पानी मिला। ‘पश्चिमी नदियों’ में पानी का औसत वार्षिक प्रवाह पूर्वी नदियों से चार गुना ज्यादा है। लेकिन यहां पर दो बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। भारत को पूर्वी नदियों के पानी का खास इस्तेमाल चाहिए था। इसे संधि ने हमारे लिए सुरक्षित कर दिया। भारत ने तब से इन नदियों पर बांध और अन्य वॉटर प्रोजेक्ट बनाए हैं। इनमें भाखड़ा नांगल बांध और राजस्थान नहर परियोजना शामिल है। इसको अब इंदिरा गांधी नहर कहा जाता है। इस नहर से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की सिंचाई में मदद मिली है।

बदले में पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों से पानी के प्रवाह का एक बड़ा हिस्सा मिला, लेकिन भारत को इन नदियों पर कुछ इस्तेमाल जैसे घरेलू इस्तेमाल, खेती के इस्तेमाल और हाईड्रो इलेक्ट्रिक पावर का अधिकार था। हमने इसका पूरा इस्तेमाल नहीं किया। साथ ही, भारत को पश्चिमी नदियों पर 3.6 मिलियन एकड़ फीट (MAF) तक जल इकट्ठा करने का अधिकारा है। सलाल और बगलिहार बांधों पर केवल लगभग .7 MAF की कैपेसिटी हासिल की गई है। पकलदुल बांध के पूरा होने के साथ स्टोरेज कैपेसिटी को .8 एमएएफ तक बढ़ाने की प्लानिंग है। यह भी याद रखना चाहिए कि संधि पर सिविल इंजीनियरों ने बातचीत की थी, राजनेताओं और राजनयिकों ने नहीं।

सिंधु जल संधि को स्थगित रखने का क्या मतलब है?

पाकिस्तान में कुछ वर्गों ने भारत पर जो आरोप लगाया है उसके बिल्कुल उलट संधि को स्थगित रखने का मतलब पाकिस्तान का पानी रोकना नहीं है। इसका मतलब है कि भारत पश्चिमी नदियों पर संधि के प्रावधान पर फोकस करेगा। भारत के पास पाकिस्तान में पानी के बहाव को रोकने के लिए स्टोरेज कैपेसिटी नहीं है। लेकिन वह मौजूदा बांधों से सेडिमेंट फ्लशिंग ऑपरेशन कर सकता है।

इसके पीछे एक रणनीतिक इरादा भी है। संधि को निलंबित करने से पाकिस्तान को यह कड़ा संकेत मिलता है कि अब पहले जैसा काम संभव नहीं है। अब तक भारत एक बहुत ही जिम्मेदार अपर रिपेरियन देश रहा है और उसने जो भी हाईड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट शुरू किया है, वह संधि में बताए गए सही प्रोसेस से गुजरा है। अब नई दिल्ली यह साफ कर रही है कि अगर संधि को आगे बढ़ाना है तो नई शर्तों की जरूरत है।

जब सिंधु जल संधि पर बातचीत होगी तो भारत को किन बदलावों की मांग करनी चाहिए?

इसमें दो बातें बहुत ही ज्यादा जरूरी है। पहला तो है कि शिकायत के लिए एक तंत्र बनाना चाहिए। संधि के अनुच्छेद IX में एक थ्री लेवल मैकेनिज्म बनाया गया है। इसके तहत विवादों को सबसे पहले भारत और पाकिस्तान के इंडस कमिश्नर के लेवल पर उठाया जाता है। फिर विश्व बैंक द्वारा नियुक्त न्यूट्रल एक्सपर्ट के सामने मुद्दे को उठाया जाता है और फिर यह मामला सीओए के सामने उठाया जाता है।

लंबे समय से पाकिस्तान इस थ्री लेवल मैकेनिज्म का इस्तेमाल भारत द्वारा बांधों और हाईड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट में देरी करने के लिए करता रहा है। पाकिस्तान ने भारतीय प्रोजेक्ट को रोकने के लिए संधि के अनुच्छेद IX का बार-बार गलत इस्तेमाल किया है। इसमें पहला तो सलाल बांध पर आपत्ति जताना, बगलिहार को न्यूट्रल एक्सपर्ट के पास ले जाना, 1987 से तुलबुल नौवहन प्रोजेक्ट को रोकना और किशनगंगा प्रोजेक्ट को मध्यस्थता के लिए मजबूर करना शामिल है।

पाकिस्तान हमेशा अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता चाहता है। मैंने पहले बताया था कि संधि पर सिविल इंजीनियरों ने बातचीत की थी। इसकी शुरुआती सुनवाई में भारत ने आठ इंजीनियर भेजे थे। पाकिस्तान ने दो इंजीनियर और 176 वकील भेजे थे। इस्लामाबाद की कोशिश इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाने और भारत को अपनी ऊपरी स्थिति का गलत इस्तेमाल करने के तौर पर पेश करने की रही है।

दूसरी बात यह है कि संधि में इस बारे में बहुत साफ निर्देश दिए गए हैं कि भारत बांध बनाते समय क्या कर सकता है और क्या नहीं। तब से बांध बनाने की तकनीक में बहुत तरक्की हुई है। भारत को फिर से बातचीत करनी चाहिए और इन तत्वों को संधि में शामिल करना चाहिए।

चीन के हस्तक्षेप से इस मुद्दे पर भारत को परेशान होना चाहिए?

सैटेलाइट इमेजरी के मुताबिक, चीन अभी सिंधु नदी पर बांध नहीं बना रहा है। पाकिस्तान के उलट हाईली स्किल्ड डेम बिल्डर है। सिंधु नदी पर बांध बनाना केवल भारत को परेशान करने के लिए, बीजिंग के लिए संभव नहीं है। हालांकि, चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर सुपर डैम बनाने की कोशिश में है। इसके बारे में नई दिल्ली ने बार-बार चिंता जाहिर की है।

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