पं श्रीराम शर्मा आचार्य
हम विचार करते रहते हैं कि कलुषित चूने जैसा, लोगों को खा डालने वाला; दीवार पोतने के काम आने वाला; जहाँ भी डाल दें, वहीं खाली जमीन बना देने वाला बेकार का चूना कपड़े पर डाल दें तो कपड़े को जला दें। मेरा ऐसे चूने जैसा निकृष्ट जीवन यदि हल्दी के साथ मिल गया होता तो रोली बन गया होता। रोली, जिसे हम रोज मस्तक में लगाते हैं और इन्हीं भावनाओं में बहते हुए चले जाते हैं और हमारी उपासना न जाने क्या से क्या हमें दे जाती है?
मित्रो! जब मैं पूजा पाठ करता हूँ, तो इतना हलका फील करता हूँ कि आप जानते नहीं। भावनाओं के प्रवाह, भावनाओं की तरंगें मेरे अंदर बहती रहती हैं। ऐसा मालूम पड़ता है कि मेरा सारे का सारा मस्तिष्क भाव विभोर होता हुआ चला जाता है। मेरा भगवान् हँसता हुआ जाता है और मैं भगवान् की गोदी में बैठा बैठा पूजा करता रहता हूँ। जब मैं कर्मकाण्ड में बैठा रहता हूँ, तो उसमें भावनाओं का सम्मिश्रण होने के बाद क्या मजा आता है? यही पूजा करने की विधि मैं आपको सिखाने वाला था।
मित्रो! उपासना अगला वाला हिस्सा नाम जप के बाद शुरू होता है। इसमें नाम जप के साथ साथ ध्यान का समावेश होता है। ‘धी’ मन की एकाग्रता का प्रतीक है। मस्तिष्क में न जाने कितनी धारायें बहती रहती हैं, कितने कंपन बहते रहते हैं। इसके भीतर जितने प्रशांत प्रवाह बहते हैं, उनका यदि एकीकरण कर लिया जाये, तो न जाने क्या से क्या चमत्कार उत्पन्न हो जाये।
मित्रो! मेरी माला के हर मोती में मेरा राम बैठा हुआ है। उसके हर मनके को मैं घुमाता रहता हूँ और अपने मन की विचारणा को बनाता रहता हूँ। अपने मन के पहिए को घुमाता रहता हूँ और कहता रहता हूँ कि रे मन के पहिए। लौट, सारे संसार का प्रवाह इस तरह से उलटा पुलटा बह रहा है। मुझे माला वाले प्रवाह की ओर लौट जाने दें। मुझे अपना रास्ता बनाने दे। मुझे अपने ढंग से विचार करने दें और मुझे वहाँ चलने दें, जहाँ मेरा प्रियतम मुझे आज्ञा देता है। इसीलिए पूजा के सारे के सारे उपक्रम मेरे सामने खड़े हो जाते हैं।
हैं तो वे निर्जीव, पर बड़ा अद्भुत शिक्षण करते हैं। मेरे सामने बहुत उपदेश करते हैं। वे सात ऋषियों के तरीके से बैठे रहते हैं। पत्थर का भगवान् बैठा रहता है, मुस्कराता रहता है। मेरे सामने कागज की तस्वीर वाला भगवान् बैठा रहता है और जाने क्या क्या सिखाता रहता है और यह भगवान्! जिसका पूजन करने के लिए हमने फूल रख लिये थे, चंदन रख लिया था, चावल रख लिये थे, रोली रख ली थी, उनको भी मैं देखता रहता हूँ, जाने कैसी कैसी भावनायें आती रहती हैं।
मित्रो! एक हल्दी का टुकड़ा और एक चूने का टुकड़ा है। चूने का टुकड़ा अगर खा लिया जाये तो दिमाग फट जाये और हल्दी? हल्दी, जो साग, दाल में काम आती है, कपड़े में लगा ले, तो वह खराब हो जाये। लेकिन हल्दी और चूने को मिला देते हैं तो रोली बन जाती है। रंग बदल जाता है। मैं विचार करता रहता हूँ कि चूने जैसे निकम्मे प्राण को अपने प्रियतम की हल्दी के साथ घुला मिला दें, ताकि वह रोली बन जाये। और वह रोली भगवान के ऊपर लगा लूँ और अपने ऊपर लगा लूँ, तो मैं धन्य हो जाऊँगा। निहाल हो जाऊँगा। श्री कहलाऊँगा ‘‘श्री’’ कहते हैं रोली को। चूना और हल्दी मिलकर श्री बन जाते हैं, पवित्र लक्ष्मी बन जाते हैं। उसे हम देवता पर चढ़ाते हैं।