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भारत की ओर से ऑस्कर में भेजी गई फ़िल्म ‘छेल्लो शो’ की कहानी क्या है?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
21/09/22
in मुख्य खबर, सुनहरा संसार
भारत की ओर से ऑस्कर में भेजी गई फ़िल्म ‘छेल्लो शो’ की कहानी क्या है?
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नई दिल्ली : डायरेक्टर पान नलिन की गुजराती फ़िल्म ‘छेल्लो शो’ को भारत की ओर से 95वें ऑस्कर्स के लिए आधिकारिक रूप से भेजा गया है. ये एंट्री भारत की ओर से बेस्ट इंटरनेशनल फ़ीचर फ़िल्म कैटेगरी में की गई है. मंगलवार को फ़िल्म फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया के महासचिव सुपर्ण सेन ने इसका आधिकारिक एलान किया. जाने-माने कन्नड़ फ़िल्म डायरेक्टर टीएस नागाभरना की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने ‘छेल्लो शो’ फ़िल्म का चयन किया.

‘छेल्लो शो’ का वर्ल्ड प्रीमियर न्यूयॉर्क में होने वाले ट्रिबैका फ़िल्म फ़ेस्टिवल में किया गया. भारत में ये फ़िल्म 14 अक्टूबर को रिलीज़ की जाएगी.

अपनी फ़िल्म को आधिकारिक रूप से ऑस्कर्स में भेजे जाने को लेकर पान नलिन ने ट्वीट किया, “आज की रात ख़ास है! फ़िल्म फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया और ज्यूरी का आभार. ‘छेल्लो शो’ फ़िल्म में यकीन करने के लिए शुक्रिया. मैं अब फिर सांस ले सकता हूँ और मान सकता हूं कि सिनेमा मनोरंजन और प्रेरित करता है. ”

ये कहानी है एक नौ साल के बच्चे की जिसका नाम समय है. समय सिनेमा की जादुई दुनिया के प्रति आकर्षित होता है. सौराष्ट्र के चलाला गांव में बुनी गई इस कहानी में समय अपने पिता की चाय की दुकान पर उनके साथ काम करता है, ये चाय की दुकान रेलवे स्टेशन पर है. ये वो स्टेशन है जहां इक्का-दुक्का ट्रेन ही रुकती है, लिहाज़ा परिवार आर्थिक तंगी से जूझता है.

समय का मन पढ़ाई में नहीं लगता. वह अपने परिवार के साथ एक बार फ़िल्म देखने जाता है और यहीं फ़िल्म थिएटर की ओर उसकी रुचि बढ़ती है. यहां उसकी मुलाक़ात प्रोजेक्टर ऑपरेटर फ़ैज़ल से होती है. समय की मां अच्छा-खाना बनाती है और समय अपना खाना फ़ैज़ल को खिलाता है जिसके बदले में वह समय को प्रोजेक्टर वाले कमरे से फ़िल्में देखने देता है. ये प्रोजेक्टर का कमरा समय का पहला सिनेमा स्कूल बन जाता है.

समय के पिता (दीपेन रावल) चाहते हैं कि उनका बेटा ‘आदर्श’ बने और पढ़ाई पर ध्यान देकर परिवार की आर्थिक तंगी दूर करे. लेकिन नौ साल का समय स्कूल छोड़ कर प्रोजेक्टर कमरे से सिनेमा देखता है और अपने सिनेमा के प्यार और लगाव के कारण वह देसी जुगाड़ से एक प्रोजेक्टर बनाता है.

इस फ़िल्म के ज़रिए सिनेमा की दुनिया के बदलते परिदृश्य को दिखाया गया है. कैसे भारत में सिनेमा सेल्युलॉयड यानी पारंपरिक रील से डिजिटल की ओर बढ़ चुका है और कैसे देश से सिंगल स्क्रीन थियेटर ख़त्म हो रहे हैं और उनकी जगह मल्टीप्लेक्स सिनेमा हॉल ने ले ली है. फ़िल्म के डायरेक्टर नलिन के मुताबिक़ छेल्लो शो ‘सेमी-ऑटोबायोग्राफ़िकल फ़िल्म’ है जिसका मतलब है कि ये फ़िल्म कुछ हद तक उनके जीवन की कहानी पर आधारित है.

छेल्लो शो की तुलना 1998 में आई इटैलियन फिल्म ‘सिनेमा पैराडिसो’ से की जा रही है जिसमें आठ साल का बच्चा सेलवाटोर अपना सारा वक्त सिनेमा पैराडिसो नाम के थिएटर में बिताता है और अल्फ्रेडो नाम का प्रोजेक्टर ऑपरेटर उसे ऑपरेटर बूथ से फ़िल्में दिखाता है. इसके बदले सेलवाटोर ऑपरेटर की छोटे-छोटे कामों में मदद करता है. मसलन- रील बदलना, प्रोजेक्टर चलाना.

कौन हैं डायरेक्टर पान नलिन

पान नलिन अवॉर्ड-विनिंग फ़िल्मों के डायरेक्टर के तौर पर जाने जाते हैं. उन्होंने समसारा, वैली ऑफ़ फ़्लावर, एंग्री इंडियन गॉडेस और आयुर्वेद: आर्ट ऑफ़ बीइंग जैसी फिल्में बनाई हैं. पान नलिन ने सिनेमा की ट्रेनिंग नहीं ली. उन्होंने ये कला ख़ुद से सीखी. उन्होंने अहमदाबाद स्थित नेशनल स्कूल ऑफ़ डिज़ाइन से पढ़ाई की है.

अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए गए एक इंटरव्यू में पान ने कहा- ” ये फ़िल्म भारत की आत्मा को सेलिब्रेट करती है. ये कहानी एक लड़के की है जो सिनेमा की दुनिया में कुछ बड़ा करना चाहता है और कुछ भी उसे रोक नहीं सकता. इस फ़िल्म के ज़रिए संदेश है कि- आप अपने सपनों का पीछा करें और कामयाबी आपको मिल कर रहेगी. अहम बात ये है कि कहानी का नैरेटिव बेहद साधारण और ऑर्गेनिक तरीके से आगे बढ़ता है.

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