चन्दन कुमार
नई दिल्ली। 14 मार्च 2024 को एक देश एक चुनाव को लेकर गठित उच्च स्तरीय समिति का रिपोर्ट आया ! इसमें कहा गया कि किसी ऐसे विषय पर रिपोर्ट बनाना, जो प्रत्येक नागरिक के जीवन को प्रभावित करता है और जिसपर दोनों पक्षों की राय दृढ़ता से व्यक्त की जाती है, यह बहुत ही कठिन कार्य है ! इस विषय पर भिन्न भिन्न राय की उचित सराहना के लिए, सभी हितधारकों के दृष्टिकोण को जानना महत्वपूर्ण था ! समिति को देश भर के विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले कई राजनीतिक दलों के नेताओ से मिलने और बात चित करने का अवसर मिला ! समिति ने उनके सहयोग को सहर्ष स्वीकार भी किया !
किसी भी जीवंत लोकतंत्र मे, नागरिक ही अंतिम मध्यस्थ होता है ! इसलिए समिति ने इस विशाल देश के सम्पूर्ण भौगोलिक विस्तार मे रहने वाले नागरिकों के विचार मांगे ! आजादी के बाद से हमारे देश ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओ के 400 से अधिक चुनाव देखे है ! हमारे देश मे चुनाव संचालन किसी भी तरह की आलोचना से कोसों परे रहा है ! ऐसे मे इसकी रूप रेखा का समय समय पर व्यापक आकलन जरूरी है !
इसमे कोई आश्चर्य कि बात नहीं है कि कुछ देशों ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए साथ साथ चुनाव कराए जाने के महत्व को समझा है ! इन देशों ने शासन के विभिन्न स्तरों के लिए अलग अलग चुनाव से बचने को लेकर अपनी कानूनी और प्रशासनिक रूप रेखा को विकसित कर लिया है ! आरंभिक दशकों मे भारतीय प्राधिकरणों द्वारा साथ साथ चुनाव करवाने के सफल प्रयास किये गए थे ! बदलते समय के साथ बाद मे यह व्यवस्था बाधित हो गई !
भारत सरकार द्वारा 2 सितंबर 2023 की गजट अधिसूचना से साथ साथ चुनाव प्रणाली (एक देश एक चुनाव) पर उच्च स्तरीय समिति का गठन ऐसे परीक्षण के लिए आधार तैयार करता है ! समिति ने अपने गठन से 191 दिनों तक इस विषय पर काम किया ! इस दौरान 47 राजनीतिक दलों से भी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई ! जिसमें केवल 15 राजनीतिक दलों को छोड़कर शेष 32 दलों ने न केवल साथ साथ चुनाव प्रणाली का समर्थन किया बल्कि सीमित संसाधनों की बचत सामाजिक तालमेल बनाए रखने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए यह विकल्प अपनाए जाने की जोरदार वकालत भी किया !
साथ–साथ चुनावों से जुड़े संवैधानिक और कानूनी मुद्दों का परीक्षण करते हुए समिति ने वैकल्पिक रूप रेखा का भी सुझाव दिया ! समिति ने भारत और विदेशों मे साथ साथ चुनावों पर व्यापक कानूनी दस्तावेज का अध्ययन किया ! उसने भारतीय विधि आयोग, राष्ट्रीय संविधान समीक्षा आयोग, विधि और न्याय की विभागीय संसदीय स्थाई समिति, नीति आयोग और भारतीय निर्वाचन आयोग जैसे विशेषज्ञ संस्थाओ के निष्कर्षों पर मनन किया ! समिति ने पाया कि सभी रिपोर्ट साथ साथ चुनाव का समर्थन करती है और इसके पक्ष मे अनेक तर्क भी प्रस्तुत किये !