नई दिल्ली: नीतीश कुमार के लिए अब इससे अच्छी बात क्या होगी कि गिरिराज सिंह उनके लिए भारत रत्न दिये जाने की मांग करें. अभी अभी बिहार बीजेपी ने 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को एनडीए का नेता बनाये रखने के फैसले को मंजूरी दी है.
बिहार के बेगूसराय से आने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का बयान खास मायने इसलिए रखता है, क्योंकि वो नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी रहे हैं. नीतीश कुमार के नेतृत्व तक पर सवाल उठा चुके गिरिराज सिंह भी कह रहे हैं कि अगला बिहार चुनाव एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगा.
भारत रत्न दिये जाने की मांग के पीछे गिरिराज सिंह की दलील है कि नीतीश कुमार ने बिहार का बहुत विकास किया है. गिरिराज सिंह कहते हैं, नीतीश कुमार ने जिस तरह से बिहार की सेवा की है… और बिहार के विकास में अपना योगदान दिया है, उसे देखते हुए उनको निश्चित तौर पर भारत रत्न मिलना चाहिये. साथ ही, बीजेपी नेता ने ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे बीजेडी नेता नवीन पटनायक के लिए भी भारत रत्न देने की मांग की है.
- नीतीश कुमार ने 2024 की शुरुआत में ही अपनी आगे की राजनीति का पूरा रोड मैप तैयार कर लिया था. मिशन 2025 में भी मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनने के लिए तब उनका एनडीए में लौटना जरूरी हो गया था.
- लोकसभा चुनाव से पहले ही नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ दिया था. 2014 में अकेले लोकसभा चुनाव लड़कर और 2019 में महागठबंधन का प्रदर्शन देखने के बाद नीतीश कुमार को मालूम हो गया था कि बीजेपी से अलग होकर लोकसभा चुनाव में सीटें निकालना मुश्किल हो सकता है. ये ठीक है कि नीतीश कुमार 2019 जितनी सीटें नहीं जीत सके, लेकिन बीजेपी के बराबर 12 सीटें तो जीती ही.लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर ही आज की तारीख में नीतीश कुमार बीजेपी पर दबाव बना पा रहे हैं, क्योंकि केंद्र की एनडीए सरकार तो जेडीयू और टीडीपी की बैसाखी पर ही टिकी है.
- नीतीश कुमार अच्छी तरह जानते थे कि अगर महागठबंधन में रहे और तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने के लिए रास्ता नहीं बनाया तो लालू यादव जीना हराम कर देंगे – और 2025 के चुनाव में जेडीयू के लिए अपने दम पर खड़ा होना भी मुश्किल हो जाएगा.
- तेजस्वी यादव के लिए बिहार की कुर्सी छोड़ने के लिए नीतीश कुमार की एक ही शर्त थी, इंडिया ब्लॉक की तरफ से उनको प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया जाये. अगर ऐसा हुआ होता तो नीतीश कुमार बिहार की मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बारे में एक बार सोचते भी, लेकिन लालू यादव ने ऐसा होने नहीं दिया, और मौका निकाल कर वो चलते बने.
- एनडीए में आने के बाद भी नीतीश कुमार के लिए सब अच्छा अच्छा ही हो, जरूरी भी तो नहीं था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में एनडीए के नेतृत्व की बात बीजेपी संसदीय बोर्ड पर डालकर महाराष्ट्र फॉर्मूले का संकेत दे ही दिया था. लेकिन, फिलहाल तो नीतीश कुमार ने बिहार बीजेपी को मैनेज कर ही लिया है. अभी बीजेपी संसदीय बोर्ड का फैसला सामने नहीं आया है. ऐसे में आगे की राह उतनी आसान भी नहीं लगती है.
- जेडीयू में राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह जैसे नेता बीजेपी की भाषा वैसे ही बोल रहे हैं, जैसे कभी आरसीपी सिंह बोला करते थे. ललन सिंह को भी मालूम होगा ही कि नीतीश कुमार ने आरसीपी के साथ जो सलूक किया, उनके साथ भी हो सकता है – नीतीश कुमार को मौके की तलाश रहती है, और मौका मिलते ही अपने मन की कर भी लेते हैं.
- नीतीश कुमार सियासी मार्केट में बने रहना जानते हैं, और प्रेशर पॉलिटिक्स का बेहतरीन इस्तेमाल भी उनको आता है. अब अगर बीजेपी नीतीश कुमार को नेता मान रही है तो उसके पीछे नीतीश कुमार की राजनीति ही है, तभी तो गिरिराज सिंह जैसे नेता भी उनको भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं.