नई दिल्ली: मोदी 3.0 के हाल वैसे नहीं हैं, जैसे 2.0 के थे. लोकसभा में बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई. 2019 में उसके 303 सांसद थे. अब 240 हैं. लेकिन अपने साथियों के दम पर वह सरकार बना पाई है.
लेकिन उच्च सदन यानी राज्यसभा में वह बहुमत से तीन सीटें कम है. साल 2019 में विपक्ष ने लैंड रिफॉर्म बिल, ट्रिपल तलाक बिल का रास्ता राज्यसभा में रोक दिया था. मोदी सरकार ट्रिपल तलाक बिल बीजेडी, YSRCP, BRS, AIADMK जैसी अपनी दोस्ताना विपक्षी पार्टियों की मदद से पास करवा पाई थी. लेकिन अब हालात बदल गए हैं.
ओडिशा में नवीन पटनायक सरकार को बीजेपी ने सत्ता से उखाड़ फेंका. जानकारी के मुताबिक, बीजेडी ने अपने राज्यसभा सांसदों को साफ निर्देश दिया है कि वे विपक्ष के साथ रहें. जबकि मुमकिन है कि जगन मोहन रेड्डी की YSRCP भी आंध्र प्रदेश में एनडीए गठबंधन से शिकस्त खाने के बाद यही रास्ता अपनाएगा. अन्नामलाई के उदय के बीच AIADMK और बीजेपी की दोस्ती में भी खटास आ गई है. वहीं तेलंगाना के पूर्व सीएम के चंद्रशेखर राव भी बीजेपी से खफा-खफा हैं, ऐसे में वह शायद ही राज्यसभा में उसे समर्थन दें. तो अब सवाल उठता है कि बीजेपी मोदी 3.0 में जरूरी बिल पास कैसे कराएगी?
राज्यसभा का गणित क्या है?
अभी एनडीए राज्यसभा में बहुमत से तीन सीटें दूर है. इस साल की शुरुआत में 56 राज्यसभा सीटों पर चुनाव हुआ था, जिसमें बीजेपी को 30 सीटें हासिल हुई थीं. वह 100 के आंकड़े के और करीब पहुंच गई थी. फिलहाल राज्यसभा में उसके 97 और एनडीए के 118 सांसद हैं.
राज्यसभा में कुल 245 सीटें हैं और बहुमत का आंकड़ा 123 है. पांच सीटें फिलहाल खाली हैं. इनमें से 4 जम्मू-कश्मीर से हैं, जहां राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है. एक सीट नामांकन वाली श्रेणी की है. लिहाजा राज्यसभा में मौजूदा स्थिति ये है कि उसमें 240 सांसद हैं और बहुमत का आंकड़ा 121 है.
लोकसभा में 303 से घटकर बीजेपी सांसदों की संख्या 240 पहुंच गई है और कांग्रेस की 52 से बढ़कर 99 हो गई है. लेकिन बावजूद इसके राज्यसभा के गणित में कोई बदलाव नहीं होगा.
कभी थे दोस्त, अब क्यों नहीं देंगे साथ?
हमेशा यह माना जाता रहा है कि बीजेपी राज्यों में विपक्षी पार्टियों के साथ दोस्ताना तरीके से मुकाबला करती है. लेकिन इस बार मामला अलग है. बीजेपी ओडिशा में जीत चुकी है. बीजेडी का सूपड़ा साफ हो चुका है. लेकिन चुनाव के दौरान जो पर्सनल अटैक किए गए उसे ना तो पटनायक भूले हैं और ना ही के. चंद्रशेखर राव.
दरअसल जब चुनावी कैंपेन अपने चरम पर था तो एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें पटनायक के सहयोगी वीके पांडियन उनका कांपता हाथ छिपा रहे थे. बीजेपी नेताओं ने भी वह वीडियो शेयर किया था. इतना ही नहीं पीएम मोदी ने भी एक रैली में कहा था कि वह पटनायक के गिरते स्वास्थ्य की जांच कराएंगे. उन्होंने दो बातें कही थीं. पहली ये कि पटनायक राज्य को संभालने के लिए पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं और गिरते स्वास्थ्य के पीछे साजिश को जिम्मेदार ठहराया. भले ही चुनाव खत्म हो गए. लेकिन पटनायक ना भूले हैं और ना ही उन्होंने इसके लिए बीजेपी को माफ किया है.
इसके अलावा बीआरएस के साथ भी बीजेपी के रिश्ते बिगड़े हुए हैं क्योंकि दिल्ली शराब घोटाला मामले में ईडी और सीबीआई ने बीआरएस के कई शीर्ष नेताओं के खिलाफ जांच की है. पूर्व सीएम की बेटी के कविता को भी सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था. इसे केसीआर ने खुद पर निजी हमला माना.
बीजेपी का क्या कहना है?
वहीं इस मामले में बीजेपी ने खुलकर तो कुछ नहीं कहा. लेकिन सूत्रों के मुताबिक बीजेपी इसी खास चिंता नहीं कर रही है. एक मंत्री के हवाले से सूत्रों ने कहा, ‘यह कुछ ही सीटों की बात है. आपने देखा होगा कि इमरजेंसी के रेजॉल्यूशन पर भी कई इंडी अलायंस की पार्टियों ने हमें समर्थन दिया. हम इसे लेकर चिंता में नहीं हैं. हमें जब जरूरत होगी, हम इस खाई को पाट लेंगे.’
सरकारी सूत्रों का कहना है कि कुछ विपक्षी दलों, खासकर तृणमूल कांग्रेस के साथ पर्दे के पीछे की बातचीत कभी खत्म नहीं हुई. तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि 100 दिन की वर्क स्कीम के तहत केंद्र पर उसका 7,000 करोड़ रुपये बकाया है. यह मामला ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत आता है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जहां टीएमसी के शीर्ष नेताओं के गिरिराज सिंह के साथ रिश्ते ज्यादा बेहतर नहीं थे. लेकिन वर्तमान कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ उनके रिश्ते गर्मजोशी काफी बेहतर हैं.