गौरव अवस्थी
भारत की आजादी के लिए सशस्त्र क्रांति के सूत्रधार अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद कब और कहां पैदा हुए? इन सवालों के जवाब से आजाद आज भी आजाद हैं| उनका अभी तक न तो जन्म स्थान निश्चित हो पाया है और न ही जन्म तिथि| प्रामाणिक जानकारी के अभाव में यह अब भी असंभव बना हुआ है| यही कारण है कि भाबरा( मध्य प्रदेश), भौंती (कानपुर) और बदरका ( उन्नाव) के लोग उन्हें अपना मानकर प्रतिवर्ष मेला और जलसा आयोजित करके अपने दावे को मजबूत करते रहते हैं| बदरका का भव्य आजाद स्मारक अपने इस दावे को वर्ष प्रतिवर्ष और मजबूत करता ही जा रहा है|
आजाद से जुड़े अनेक मिथकों पर पिछले वर्ष एक नई किताब आई-‘चंद्रशेखर आजाद मिथक बनाम यथार्थ’| पुस्तक के प्रथम दो अध्याय जन्म स्थान और जन्मतिथि पर ही केंद्रित हैं| किताब का शीर्षक उम्मीद जगाता है कि आजाद के जन्मस्थान और जन्मतिथि का निर्धारण निश्चित हो गया होगा लेकिन किताब के लेखक आईपीएस अधिकारी प्रताप गोपेंद्र की गहन खोज भी निर्णायक मुकाम पर नहीं पहुंचा पाती| यह पुस्तक ब्रिटिश हुकूमत के सरकारी अभिलेखों, अखबारी कतरनों, आजाद के साथियों के संस्मरणों और सुनी सुनाई बातों के ईद गिर्द ही घूमती है| इस पुस्तक में उन्हीं सब बातों की चर्चा है जो पहले विभिन्न संस्मरणात्मक पुस्तकों और अभिलेखों में पढ़े जा चुके हैं| हां, पुस्तक की एक खासियत यह है कि आजाद के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें और उपलब्ध आधेअधूरे प्रमाण एक ही छतरी (पुस्तक) के नीचे मिल जाते हैं| इससे और कुछ नहीं तो आपको अपना मत निर्धारित करने में मदद जरूर मिलती है|
कोई आजाद का जन्म स्थान भाबरा मानता है तो कोई बदरका| किसी को भरोसा है कि आजाद का जन्म लखनऊ के काकोरी के पास ईटगांव में हुआ था और कोई ब्रिटिश हुकूमत के दौरान चले मुकदमों में खुद आजाद द्वारा लिखाए गए तथ्यों को ही प्रमाण मानकर उनका जन्म बनारस के बैजनाथ मोहल्ले का मानता है| कुछ विद्वान और आजाद के अधिकतर साथी आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भाबरा में ही मानते हैं| प्रामाणिक जानकारी के अभाव में आज तक यह तक तय कर पाना मुश्किल है कि आजाद के पिता कहां के रहने वाले थे? कई इतिहासकार उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी को भौंती-प्रतापपुर (कानपुर) का मानते हैं और कोई कोई उन्हें बदरका का| कहीं-कहीं उनके पिता का नाम पंडित बैजनाथ या स्वतंत्र शर्मा भी मिलता है|
प्रताप गोपेंद्र अपनी पुस्तक में कई तरह के हवाले देते हैं लेकिन उनकी फाइनल फाइंडिंग आजाद के परिवार के वर्षों तक निकट रहे मनोहर लाल त्रिवेदी की सूचनाओं पर ही आधारित है| पुस्तक का अंश है-‘ इस प्रकार हम देखते हैं कि श्री मनोहर लाल त्रिवेदी के अलावा श्री सीताराम तिवारी तथा स्वर्गीय जगरानी देवी के संपर्क में इतने दिन कोई नहीं रहा| श्री सदाशिव और मास्टर रुद्र नारायण ने आजाद के पुरखों पर कुछ नहीं लिखा है| ऐसे में हमें श्री मनोहर लाल त्रिवेदी की बातों को प्रमाणिक मानना चाहिए’| पुस्तक में श्री गोपेंद्र यह हवाला-‘ श्री मन्मथनाथ गुप्त ने लिखा है- श्री चंद्रशेखर आजाद अत्यंत विराट मिथकों के खंडहर के नीचे- जो प्रतिवर्ष बढ़ता ही गया है- में इतने दब चुके हैं कि असली आजाद को सामने रखना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है’ देकर पाठक के सामने विरोधाभासी उद्धरण प्रस्तुत कर देते हैं| इससे पाठक स्पष्ट होने के बजाय सूचनाओं के फेर में फिर फंस जाता है|
यही हाल आजाद की जन्म तिथि को लेकर भी है| उनकी जन्म तिथि का भी निर्धारण कर पाना इतिहासकारों के लिए इसलिए मुश्किल है कि आजादी के दीवाने आजाद ने ब्रिटिश फौजों से बचने के लिए अपनी सही जानकारी कभी बताई या दर्ज कराई ही नहीं| हालांकि लेखक प्रताप गोपेंद्र अपने एक अध्याय में आजाद की जन्म तिथि मां स्व. जगरानी देवी द्वारा झांसी प्रवास के दौरान भगवान दास माहौर को बताई गई हिंदी तिथि (सावन सुदी दूज सोमवार) के आधार पर 23 जुलाई 1906 मानने पर ही जोर देते हैं| इसके प्रमाण में अपनी वह खोज पुस्तक में प्रस्तुत करते हैं जो उन्होंने गूगल पर प्रोकेरला (prokerala.com) के माध्यम से जुटाई है| इस पुस्तक में ऐसी खोज का एक चार्ट भी प्रकाशित किया गया है| हालांकि उन्नाव वाले आजाद की जन्मतिथि 7 जनवरी मानते हैं| इसके लिए उनके अपने तर्क और आधार हैं| बदरका में आजाद की जयंती मनाने की परंपरा 1943 से चली आ रही है| यह आज भी कायम है और वृहत मेले का रूप ले चुकी है| इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रताप गोपेंद्र की पुस्तक नए तथ्यों की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट करती है लेकिन असल सवाल फिर वहीं अटक जाता है कि आखिर चंद्रशेखर आजाद का जन्म कहां का माना जाए और उनकी जन्मतिथि क्या है?
यह तो सभी को पता है कि 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) में ब्रिटिश हुकूमत के हाथ आने के पहले चंद्रशेखर आजाद ने कनपटी पर गोली मार कर अपना प्राणांत करके अपने उस प्रण को पूरा किया था, जो अक्सर वह अपने साथियों के समक्ष इन शब्दों में व्यक्त किया करते थे-‘मेरी रिवाल्वर में आठ गोली हैं| एक मैगजीन अतिरिक्त| 15 गोली अंग्रेज आततायियों पर दागूंगा और सोलहवीं खुद पर|’ इसे उन्होंने आखिरी सांस में पूरा भी किया|
उनकी शहादत के 93 साल बीत चुके हैं| 7 वर्षों बाद हम सब चंद्रशेखर आजाद की शहादत की शताब्दी मना रहे होंगे| ऐसे में अहम सवाल यही है कि आजाद भारत की सरकारें आज तक आजाद का जन्मस्थान और जन्म तारीख प्रमाणित करने की कोशिश तक क्यों शुरू नहीं कर पाईं? जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के रहस्योद्घाटन के लिए आयोग पर आयोग बन सकते हैं तो चंद्रशेखर आजाद की जन्मतिथि और जन्मस्थान पता करने के लिए क्यों नहीं?
केवल ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले..’ से ही शहीदों के प्रति श्रद्धा प्रकट नहीं की जा सकती| आजाद के जीवन से जुड़े सही तथ्यों को जानना आजाद भारत के हर नागरिक का अधिकार है और सरकारों का कर्तव्य| इसलिए बलिदान की इस बेला पर हर देश प्रेमी और आजाद के अनुयायी को अपना अधिकार पाने के लिए सरकार से यह सवाल जरूर पूछने या करने का कर्तव्य निभाना ही चाहिए ताकि शहादत की शताब्दी तक सही तथ्य सामने अवश्य आ जाएं|