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गिरीश नारायण पांडेय स्मृति : जब अटलजी बोले- ‘देखो! रायबरेली का शेर आ गया…’

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
29/03/25
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय, साहित्य
गिरीश नारायण पांडेय स्मृति : जब अटलजी बोले- ‘देखो! रायबरेली का शेर आ गया…’
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गौरव अवस्थी


नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ और भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री गिरीश नारायण पांडेय का बीते दिन निधन हो गया। 24 घंटे पहले उनकी धर्म पत्नी श्रीमती वीणा पाण्डेय की मृत्यु हुई थी। कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में वह संघ-जनसंघ की धुरी रहे। 1971 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी के रूप में भारतीय क्रांति दल से राजनारायण मैदान में थे। इंदिरा गांधी करीब एक लाख वोटों से चुनाव जीत गईं। राजनारायण ने इलेक्शन पिटीशन दायर की। भारतीय लोकतंत्र के अब तक सर्वाधिक चर्चित चुनावी केस में गिरीश नारायण पाण्डेय गवाह बने। रोकने की तमाम कोशिशों के बावजूद गिरीश जी ने गवाही दी और वह ‘हीरो’ बन गए। आपातकाल में 11 महीने की जेल भी काटी।

Girish Narayan Pandey

मंदिर आंदोलन में सक्रियता उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई और डीपीएम लालकृष्ण आडवाणी के नजदीक ले आई। नजदीकी का नमूना नीचे दिए प्रसंग से आप समझ सकते हैं। भाजपा ने उन्हें 1991 के वस चुनाव में सरेनी से टिकट दिया। 1991 में पहली बार विधायक बने थे। चुनाव में अटल बिहारी बाजपेई ने उनके पक्ष में लालगंज की गल्ला मंडी में चुनावी सभा को संबोधित की। राज्य में भाजपा को प्रचंड जीत मिली। कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। मंत्रिमंडल के लिए तब के सर संघचालक रज्जू भैया और लखनऊ के सांसद अटल बिहारी बाजपेई को ही मंत्रिमंडल बनाने की जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 1992 मंत्रिमंडल का फिर विस्तार हुआ। पांडेय जी को भी लखनऊ बुलाया गया।

15 अगस्त 1992 को अटल जी लखनऊ में वीवीआईपी गेस्ट हाउस में थे। गेस्ट हाउस में लालजी टंडन और कलराज मिश्र पहले से बैठे हुए थे। दोनों नेताओं से अटल जी कह रहे थे-‘ हमारे ऐसे कार्यक्रम लगाओ जहां नए चेहरे हमे दिये बार-बार हमें वही पुराने चेहरे दिखते हैं। कलराज जी ने कहा- देखिए, नए चेहरे गिरीश पांडेय जी आ गए। अटल जी गिरीश जी से बहुत आत्मीयता से मिले और बोले- आप तो आज गवर्नर साहब के यहां इनवाइट होंगे दावत पर। पांडेय जी ने ‘हां’ में सिर हिलाया। इस पर अटल जी ने कहा- शाम 4 बजे आइए, वहीं मिलते हैं।

शाम 4 बजे गवर्नर हाउस पहुंचे तो अटल जी वहां बैठे हुए थे। पहुंचते ही कंधे पर हाथ रखकर बोले-‘ देखो! रायबरेली का शेर आ गया। इन्होने ही इंदिरा जी के चुनाव को अवैध घोषित करा दिया था।’ फिर अटल जी गिरीश जी को एकांत में ले गए और कहा-‘ हम आपको कुछ बड़ी जिम्मेदारी देना चाहते हैं।’ इतना कहने के बाद उन्होंने कहा- कल शाम 4 बजे आप गवर्नर हाउस आ जाइए, मंत्रिपद की शपथ लेने। अटल जी ने गिरीश जी से यह भी पूछा-‘ यहां रुकोगे या घर जाओगे।’ गिरीश जी द्वारा घर जाने की बात कहे जाने पर उन्होंने कहा-‘ अभी यह किसी से बताना नहीं।’

गिरीश जी को कैबिनेट मंत्री बनाए जाने का किस्सा भी रोचक है। मंत्रिमंडल की सूची में गिरीश जी का नाम राज्यमंत्री के तौर पर शामिल था। एक अन्य नेता का नाम कैबिनेट मंत्री के तौर पर। सूची देखने के बाद अटलजी ने गिरीश जी के नाम के आगे लिखे राज्यमंत्री को पेन से काटकर कैबिनेट मंत्री लिख दिया और उन नेता के आगे राज्यमंत्री। दूसरे दिन गिरीश जी को गवर्नर हाउस में कैबिनेट मंत्री की शपथ ही दिलाई गई।

जिले में गिरीश जी की गिनती संत राजनेताओं में होती है। निरभिमानी और नीति-सिद्धांत के पक्के गिरीश जी के चित्र और चरित्र को सत्ता रत्ती भर प्रभावित नहीं कर पाई। उनका पूरा राजनीतिक जीवन बेदाग रहा। विरोधी भी कलंक लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। सरल इतने कि हर एक के साथ चल दिए। उनका स्वभाव ही था कि हर दल, जाति, धर्म के लोग गिरीश जी का दिल से सम्मान करते थे, दिखावे के लिए नहीं। आजीवन उनकी सवारी साइकिल ही रही। सादगी उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा रही।

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