कलियुग में जीवन के संघर्ष से पार लगने का सहारा ‘राम’ नाम ही है। तुलसीदास जी रामायण में लिखते हैं- “राम भरोसो राम बल, राम नाम बिस्वास। सुमिरत सुभ मंगल कुसल, मांगत तुलसीदास।” इसका अर्थ है तुलसीदास अपने प्रभु श्रीराम से प्रार्थना करते हैं कि मेरा एक मात्र सहारा राम ही रहे। राम ही का बल रहे और राम के स्मरण मात्र से ही शुभ, मंगल और कुशल की प्राप्ति हो जाए। संपूर्ण संसार का भरोसा राम प बना रहे। रामायण को पढ़कर या श्रीराम के जीवन को जानकर हम मर्यादा पुरुर्षोत्तम राम के जीवन के बारे में काफी कुछ जानने का मौका मिलता है। रामायण की ऐसी काफी अद्भुत घटनाएं हैं, जिसके बारे में लोग जानना चाहते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं रामायण से जुड़ीं ऐसी ही 5 घटनाएं।
11,000 वर्षों तक अयोध्या में था राम राज्य
भगवान राम के विषय में कहा जाता है कि भगवान राम ने अयोध्या में 11,000 वर्षों तक शासन किया था। कुछ पौराणिक कहानियों में यह भी माना जाता है कि त्रेतायुग में लोगों की आयु काफी लम्बी होती थी और भगवान राम की आयु भी काफी लम्बी थी। भगवान राम जब वनवास के लिए गए थे, तो उनकी आयु 25 वर्ष थी और जब श्रीराम वापस लौटे तो राम की आयु 39 वर्ष थी। पौराणिक कहानियों के अनुसार श्रीराम ने 30 साल और 6 महीने तक अयोध्या में शासन किया था और जब राम की आयु 70 साल थी, तो उन्होंने अयोध्या राज्य को छोड़ दिया था। ऐसे में माना जाता है कि इसके बाद भी अयोध्या में मर्यादा श्रीराम की सुशासन की व्यवस्था 11 हजार सालों तक कायम रही थी, इसलिए इस अर्थ में कहा जाता है कि राम ने अयोध्या पर 11 वर्षों तक शासन किया था।
श्रीराम के जन्म के बाद क्या रखा गया गया था उनका नाम
श्रीराम का जब जन्म हुआ था, तो उनके जन्म के समय श्रीराम का नाम दशरथ राघव रखा गया था। इसक बाद नामकरण संस्कार के समय श्रीराम का नाम रघु राजवंश के गुरु महर्षि वशिष्ठ ने राम रख दिया। जब राजा दशरथ ने महर्षि वशिष्ठ से राम नाम का अर्थ पूछा, तो महर्षि वशिष्ठ ने बताया राम नाम का अर्थ बताया, पूरे ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व अर्थात स्वयं ब्रह्म।
श्रीराम की बहन शांता को कौशल्या की बहन को सौंप दिया गया था
श्रीराम की बहन का नाम शांता था। दक्षिण भारत की रामायण के अनुसार श्रीराम की बहन शांता को राजा दशरथ ने अंगदेश के राजा रोमपद को सौंप दिया था। असल में राजा रोमपद की शादी रानी कौशल्या की बहन से हुई थी। दोनों दम्पति निसंतान थे, जब राजा रोमपद अपनी रानी के साथ अयोध्या आए, तो उन्होंने अपने दुख का कारण राजा दशरथ को बताया, ये सुनकर देवी कौशल्या और राजा दशरथ बहुत दुखी हुए और उन्होंने अपनी कन्या शांता को राजा रोमपद को सौंप दिया।
सीता के धरती में समाने के बाद राम ने ले ली थी जल समाधि
रामायण में इस प्रसंग का वर्णन भी मिलता है कि सीता माता भूमि माता की बेटी थी और जब सीता अयोध्या वापस लौटी, तो अपने जीवन के दुखांत बताते-बताते देवी सीता रो पड़ीं और धरती में समा गईं। माता सीता को धरती में समाया हुआ देखकर श्रीराम दुख की वजह से विलाप करने लगे और उन्होंने धरती माता से वापस सीता को लौटाने के लिए कहा लेकिन धरती की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला। इसके बाद सभी देवी-देवताओं और अयोध्या के वरिष्ठजनों ने भगवान राम को समझा-बुझाकर शांत कराकर प्रजा के लिए शासन व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिए कहा। भगवान राम ने 70 की उम्र तक शासन चलाया और इसके बाद राम ने सरयू नदी में जल समाधि लेकर पृथ्वीलोक का परित्याग किया था।
त्रेतायुग में इस तरह का जीवनयापन करते थे लोग
श्रीराम के राम राज्य के बारे में ईमानदारी और मर्यादा के अलावा भी और भी विशेषताएं थीं। जैसे, श्रीराम के राज्य में सभी लोगों को वेदों का ज्ञान था और लोग नैतिकता को सबसे ऊपर मानते थे। इसके अलावा भी कई तरह की ऐसी चीजें थीं, जिनका अविष्कार आधुनिक युग में माना जाता है। पानी पर विशेष तरह की नाव चला करती थी। दूर की चीजों को देखने के लिए दूरबीन हुआ करती थी। इसके अलावा लोग तांबे, पीतल और चांदी के बर्तनों का इस्तेमाल करते थे।