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अनंत चतुर्दशी कब है? पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और इस दिन का महत्व जानें

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
05/09/22
in कला संस्कृति, धर्म दर्शन
अनंत चतुर्दशी कब है? पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और इस दिन का महत्व जानें

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भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है. इस दिन अनंत भगवान (भगवान विष्णु) की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है. इनमें चौदह गांठें होती हैं. अनंत चतुर्दशी तिथि का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है, इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है. अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणेश विसर्जन भी किया जाता है इसलिए इस पर्व का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है.

अनन्त चतुर्दशी 2022 शुभ मुहूर्त
अनन्त चतुर्दशी शुक्रवार, सितम्बर 9, 2022 को

अनन्त चतुर्दशी पूजा मुहूर्त – 06:03 सुबह से 06:07 शाम

अवधि – 12 घण्टे 04 मिनट्स

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 08, 2022 को 09:02 बजे शाम

चतुर्दशी तिथि समाप्त – सितम्बर 09, 2022 को 06:07 बजे शाम

अनंत चतुर्दशी पूजा विधि 

  • अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने का विधान है. यह पूजा दोपहर के समय की जाती है. जानें अनंत चतुर्दशी पूजा विधि…
  • अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें.
  • पूजा स्थल पर कलश की स्थापना करें.
  • कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें.
  • कुश से बने अनंत की जगह भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगा सकते हैं.
  • अब एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगायें. इसे भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने अर्पित करें.
  • अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें.
  • पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें.
  • पुरुषों को अनंत सूत्र दांये हाथ में और महिलाओं को उनके बांये हाथ में बांधनी चाहिए.
  • अनंत सूत्र बांधने के बाद ब्राह्मण को भोजन करायें और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें.

अनंत चतुर्दशी का महत्व
अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना जाताहै. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति यदि श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं. यह व्रत धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना के साथ किया जाता है.

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