हिंदू परंपराओं और रीति-रिवाजों अनुसार, महिलाएं वट सावित्री व्रत अपने अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। हर साल यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है। इसी दिन शनि जयंती मनाने की भी परंपरा है। इस बार खास बात यह है कि इस दिन सूर्यग्रहण भी लग रहा है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करके और उसके चारों ओर परिक्रमा लगाकर यह व्रत किया जाता है और पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती है। कुछ महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत भी करती हैं। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व, कथा और अन्य खास बातें…
वट सावित्री व्रत का महत्व
बड़ अमावस्या यानी वट सावित्री व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत में से एक है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लेकर आईं थीं। इसलिए इस व्रत को बेहद खास माना जाता है और महिलाएं सावित्री जैसा अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए इस व्रत को पूरी श्रृद्धा और आस्था से करती हैं। वहीं ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार बदगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास होता है। इसलिए इस पेड़ की पूजा करने से तीनों देवों की कृपा से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि का आरंभ : 9 जून 2021, दोपहर 01:57 बजे
अमावस्या तिथि समाप्ति : 10 जून 2021, शाम 04:22 बजे
पंचांग के अनुसार, सूर्योदय के वक्त अमावस्या तिथि 10 जून को है, इसलिए व्रत रखना 10 जून को ही शुभ माना जाएगा।
इस वजह से नाम पड़ा वट सावित्री व्रत
मान्यता है कि पतिव्रता सावित्री ने अपने पति के प्राण वापस लाने के लिए बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर कठोर तपस्या की थी। इसलिए इसे वट सावित्री व्रत कहा जाने लगा। इस दिन वटवृक्ष को जल से सींचकर उसमें हल्दी लगाकर कच्चा सूत लपेटते हुए उसकी परिक्रमा की जाती है। साथ ही शुभ वस्तुएं भी अर्पित की जाती हैं।
वट सावित्री व्रत की पूजाविधि
महिलाएं इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर लें और सूर्य को अर्घ्य दें व व्रत करने का संकल्प लें। फिर नए वस्त्र पहनकर, सोलह श्रृंगार करें। इसके बाद पूजन की सारी सामग्री को एक टोकरी में सही से रख लें। फिर वट (बरगद) वृक्ष के नीचे सफाई करने के बाद वहां गंगाजल छिड़ककर उस स्थान को पवित्र कर लें। सभी सामग्री रखने के बाद स्थान ग्रहण करें। इसके बाद सबसे पहले सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को वहां स्थापित करें। फिर अन्य सामग्री जैसे धूप, दीप, रोली, भिगोए चने, सिंदूर आदि से पूजन करें। इसके बाद धागे को पेड़ में लपेटते हुए जितना संभव हो सके 5, 11, 21, 51 या फिर 108 बार बदगद के पेड़ की परिक्रमा करें।
खबर इनपुट एजेंसी से