हरिद्वार: उत्तराखंड के हरिद्वार में कनखल है. कनखल हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है. ऐसी मान्यता है कि सावन में भगवान शिव कैलाश पर्वत से कनखल आ जाते हैं. यहीं पर भोलेनाथ एक महीने निवास करते हैं. यहां स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर सालों से श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र बना हुआ है. सावन में हर दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव और दक्षेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य प्रबंधक महंत रविंद्र पुरी महाराज कहते हैं कि हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक, भगवान शिव सावन में अपने ससुराल कनखल में निवास करते हैं. इसको लेकर एक कथा भी है. ब्रह्मा जी के मानस पुत्र प्रजापति राजा दक्ष ने कनखल में एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था. लेकिन बेटी सती और भगवान शिव को इस यज्ञ में निमंत्रण नहीं दिया, बावजूद इसके माता सती अपने मायके कनखल गईं. यहां माता सती ने देखा कि यज्ञ में सभी देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया गया है. लेकिन भगवान शिव के लिए कोई स्थान नहीं है. तब माता सती ने पिता राजा दक्ष से इसका कारण पूछा तो उन्होंने भगवान शिव के लिए बुरे शब्दों का इस्तेमाल किया.
भगवान शिव हो गए क्रोधित
भगवान शिव का अपमान होते देख माता सती यज्ञ कुंड की धधकती अग्नि में कूद पड़ीं और प्राण त्याग दिए. इसकी जानकारी भगवान शिव को मिली तो वे क्रोधित हो गए. उनकी क्रोधाग्नि से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया, मानो पूरा ब्रह्मांड समाप्त हो जाएगा. शिव ने वीरभद्र को प्रकट किया और कनखल भेजा. यहां वीरभद्र ने राजा दक्ष के सिर को धड़ से अलग कर दिया.
इस घटना से राजा दक्ष की राजधानी कनखल मे कोहराम मच गया. सभी देवी-देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे ब्रह्मांड को बचाने की प्रार्थना की. इस पर भगवान शिव स्वयं कनखल अपने ससुराल आए और राजा दक्ष के धड़ पर बकरे का सिर लगाकर उन्हें जीवन दान दिया. राजा दक्ष ने शिव का अपमान किए जाने पर उनसे क्षमा याचना की, तब जाकर विध्वंस रुका.
राजा दक्ष की पत्नी ने अपने दामाद भगवान शिव से अनुरोध किया कि श्रावण माह में वे एक महीना अपने ससुराल कनखल में ही वास करें. भगवान शिव ने अपनी सास की इस प्रार्थना को स्वीकार किया और तब से हर वर्ष श्रावण माह में भगवान शिव कनखल अपने ससुराल में ही निवास करते हैं.
कनखल में स्वयंभू शिवलिंग
राजा दक्ष को जीवन प्रदान करने के बाद स्वयंभू शिवलिंग के रूप में भगवान शिव कनखल में प्रकट हुए और उनका यह शिवालय दक्षेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ. मान्यता है कि यह शिवलिंग ब्रह्मांड का प्रथम स्वयंभू शिवलिंग है, जो भक्तों को अभय प्रदान करता है. सावन में कनखल में दक्षेश्वर महादेव मंदिर में जो भी भक्त भगवान शिव के शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करते हैं और बेलपत्र, पुष्प, तिल ,चावल, दूध, दही, शहद और पंचगव्य से पूजन अर्चन करते हैं, उनके सारे कष्ट दूर होते हैं. वे मोक्ष प्राप्त कर शिवलोक वासी हो जाते हैं.