- काशी नागरी प्रचारिणी सभा के मुख्य द्वार पर जन्मशती वर्ष पर 1969 में स्थापित की गई थी आचार्य द्विवेदी की कांस्य प्रतिमा l
- प्रदेश के मुख्यमंत्री संपूर्णानंद और सभा के सभापति पंडित कमलापति त्रिपाठी की मौजूदगी में हुआ था अनावरण l
वाराणसी। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने 52 साल पहले काशी नागरी प्रचारिणी सभा के मुख्य द्वार पर वर्ष 1969 में जन्मशती पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की मूर्ति का अनावरण किया था। इस स्थान पर खंडित शिलालेख तो अभी भी लगा हुआ है लेकिन आचार्य जी की मूर्ति गायब है। कोई बताने वाला भी नहीं है कि वह आखिर गई कहां?
सुमित्रानंदन पंत की 44वी पुण्यतिथि 28 दिसंबर को है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से जन्मशती वर्ष (1900) पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की कांस्य प्रतिमा स्थापित कराई गई थी। अनावरण समारोह के मुख्य अतिथि सुमित्रानंदन पंत जी ही थे। उस वक्त सभा के संरक्षक संपूर्णानंद, सभापति पंडित कमलापति त्रिपाठी और प्रधानमंत्री शिवप्रसाद मिश्र “रूद्र” थे।
सुमित्रानंदन पंत के अनावरण का खंडित शिलालेख तो अभी भी नागरी प्रचारिणी सभा के मुख्य द्वार पर लगा हुआ है लेकिन आचार्य द्विवेदी की कांस्य प्रतिमा गायब है। वाराणसी शहर के साहित्यकार प्रोफेसर वाचस्पति बताते हैं कि सभा के कर्मचारी यह बताने से कतरा रहे हैं कि मूर्ति कहां गई? उनका कहना है कि उस स्थान पर यह सूचना ही चस्पा कर दी जाए कि मूर्ति फलां जगह सुरक्षित रखी है। तब भी साहित्यकारों में किसी भ्रम की स्थिति ना पनपे और आचार्य द्विवेदी एवं सुमित्रानंदन पंत जी का मान भी बचा रहे।
1893 में स्थापित हुई थी नागरी प्रचारिणी सभा
काशी नागरी प्रचारिणी सभा का इतिहास 128 साल पुराना है। बाबू श्यामसुंदर दास ने सभा की स्थापना की थी। सभा और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के बीच भी खास रिश्ता रहा है। आचार्य द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका का 18 वर्षों तक संपादन किया, वह सभा के अनुमोदन के बाद ही इंडियन प्रेस प्रयागराज से वर्ष 1900 प्रकाशित होनी शुरू हुई थी। सभा ने 1933 में आचार्य द्विवेदी के सम्मान में “द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ” भेंट किया था। आचार्य द्विवेदी ने अपनी बहुमूल्य पुस्तकें, पत्र और संपादित लेखों की प्रतियां सभा को ही सौंप दी थी।
पंतजी का जीवन परिचय
20 मई 1900 को अल्मोड़ा में जन्मे सुमित्रानंदन पंत ने 28 दिसंबर 1977 को अंतिम सांस ली थी। उनके पिता गंगादत्त पंत थे। जन्म के 6 घंटे बाद ही उनकी मां का निधन हो गया था। उनका लालन-पालन दादी ने किया। उनके बचपन का नाम गोसाईदत्त पंत था लेकिन उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन कर लिया। बाल्यकाल से ही कविता लिखने वाले पंत जी ने हिंदी साहित्य को अमूल्य कृतियां दी हैं। वीणा, पल्लव आदि उनके महत्वपूर्ण काव्य ग्रंथ है। वर्ष 1961 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।