नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह खुली अदालतों में उच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए फैसलों को रद्द करने के मुद्दे पर नया नियम बनााएगा। यानी उच्चतम न्यायालय यह तय करेगा कि उच्च न्यायालयों को अपने पहले के आदेशों को बदलने का अधिकार है या नहीं। दरअसल, शीर्ष अदालत के सामने एक मामला सामने आया, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय ने एक पूर्व आईपीएस अधिकारी के खिलाफ धनशोधन के मामले को रद्द कर दिया था। लेकिन बाद में अपने आदेश में संशोधन कर मामले की फिर से सुनवाई की।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी एम.एस. जाफर सैट के खिलाफ धनशोधन के मामले की कार्यवाही को रद्द किया। यह मामला तमिलनाडु आवास बोर्ड के भूखंडों के आवंटन से जुड़ा था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 22 नवंबर तय की है। जाफर सैट ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके मामले पर कुछ ही दिनों के भीतर दोबारा सुनवाई हुई, जबकि पहले उनकी याचिका को मान्यता दी गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने पहले मद्रास उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट मांगी थी। 30 सितंबर को उच्च न्यायालय की रिपोर्ट की समीक्षा करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के दोबारा सुनवाई के फैसले को ‘बिल्कुल गलत’ करार दिया। मद्रास उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 21 अगस्त को सैट के खिलाफ कार्यवाही को इस आधार पर रद्द किया था कि सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) की ओर से दर्ज किया गया मुकदमा उच्च न्यायालय पहले ही रद्द कर चुका है। बाद में इस आदेश को रद्द कर दिया गया और मामले की फिर से सुनवाई की गई, जिसमें फैसला सुरक्षित रखा गया।
सैट के मुताबिक, 2011 में उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी, जिसमें उन पर तमिलनाडु आवास बोर्ड के भूखंडों का अवैध आवंटन करने का आरोप लगाया गया था। इस शिकायत के आधार पर डीवीएसी ने भ्रष्टाचार निरोधक के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। 23 मई 2019 को उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी को रद्द कर दिया था। इसके बाद 22 जून 2020 को ईडी ने उस मामले के आधार पर एक मामला दर्ज किया। हालांकि उच्च न्यायालय ने ईडी के मुकदमे को भी रद्द कर दिया था।