नई दिल्ली : रिटायरमेंट के बाद पेंशन का आनंद वे लोग पाते हैं, जो नौकरी के दौरान प्लान किए होते हैं। 60 साल की उम्र के बाद पेंशन गुजर-बसर का अहम जरिया बन जाता है. इसके हकदार लोगों को बुढ़ापे में अपनी ज्यादातर जरूरतों के लिए के लिए पेंशन के रूप में फंड मिल जाता है, हालांकि ये तभी संभव हो पाता है जब कोई शख्स अपनी पहली नौकरी से रिटायरमेंट प्लानिंग करके चलता हैं। इस तरह का प्लान समय पर कर लेने के बाद बुढ़ापे में भी इनकम का फ्लो बना रहता है। अगर आप रिटायरमेंट प्लानिंग करना चाहते हैं और उसके लिए बेहतर निवेश विकल्प की तलाश कर रहे हैं तो यह खबर आपके काम की है।
रिटायरमेंट प्लानिंग के लिए भारत में निवेशकों के बीच तीन विकल्प खासा लोकप्रिय हैं। जिनके नाम इस तरह से हैं- पब्लिक प्रॉविडेंट फंड यानी पीपीएफ (PPF), नेशनल पेंशन सिस्टम यानी एनपीएस (NPS) और एंप्लाई प्रॉविडेंट फंड यानी ईपीएफ (EPF)। निवेशक अपने वित्तीय लक्ष्यों और रिस्क लेने की क्षमता के आधार पर पीपीएफ, एनपीएस या ईपीएफ में निवेश कर सकते हैं। इन निवेश विकल्पों पर कंपाउंडिंग का लाभ मिलता है। बेहतर लाभ के लिए निवेशकों को पहली नौकरी से रिटायरमेंट प्लानिंग शुरूआत करने की सलाह दी जाती है। रिटायरमेंट प्लानिंग के लिए उपलब्ध पीपीएफ, एनपीएस, ईपीएफ, तीनों निवेश विकल्प की खूबियों के बारे में आइए जानते हैं।
पीपीएफ
पीपीएफ सरकार द्वारा डिज़ाइन किया गया है। फिलहाल इस स्कीम पर 7.1 फीसदी का ब्याज दिया जा रहा है। यह एक गारंटीड रिटर्न विकल्प है। जिसमें टैक्स-फ्री रिटर्न मिलता है। साथ ही EEE कैटेगरी की स्कीम होने के कारण इसमें एक वित्त वर्ष में 1.50 लाख रुपये तक की जमा रकम, इस पर मिलने वाले ब्याज और मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम पर टैक्स बेनिफिट मिलता है। अपनी सेविंग पर जोखिम न लेने वाले निवेशकों के लिए पीपीएफ एक आदर्श बेहतर विकल्प है। पीपीएफ 15 साल में मैच्योर होने वाली स्कीम है, ऐसे में एक बार इसमें निवेश करने के बाद निवेशक को 15 साल तक निवेश को जारी रखना पड़ता है। इस स्कीम की लॉक-इन पीरियड 15 साल की है। अगर निवेशक अपना पीपीएफ अकाउंट समय से पहले बंद करना चाहते हैं तो उसे ये परमिशन 5 साल बाद मिल सकती है, लेकिन इसके लिए कारण बताने होंगे। बीमारी या बच्चों की शिक्षा का हवाला देकर मैच्योरिटी से पहले निवेशक अपना पैसा निकाल सकते हैं। मैच्योरिटी से पहले पीपीएफ अकाउंट से पैसे निकालने पर निवेशक को ब्याज 1% काटकर पैसा वापस मिलेगा। अकाउंटहोल्डर के निधन की स्थिति में भी मैच्योरिटी से पहले खाते को बंद कराया जा सकता है। इस स्थिति में 5 साल का नियम लागू नहीं है।
ईपीएफ
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी ईपीएफओ (EPFO) ईपीएफ (EPF) अकाउंट को मैनेज करता है। ये रिटायरमेंट प्लान नौकरीपेशा वाले कर्मियों के लिए है। कर्मचारी और कंपनी, दोनों ईपीएफ अकाउंट में योगदान कर होता है। ईपीएफओ नियम के मुताबिक कर्मचारी के बेसिक सैलरी का 12 फीसदी हिस्सा इस अकाउंट में जाता है। वहीं कंपनी के 12 फीसदी योगदान में सिर्फ 3.67 फीसदी ईपीएफ अकाउंट में जमा किया जाता है। बाकी 8.33 फीसदी योगदान ईपीएस अकाउंट में जमा किया जाता है। ईपीएफओ ने 2023-24 के लिए EPF अकाउंट में जमा पैसे पर 8.25% ब्याज तय किया था। ईपीएफ अकाउंट सैलरी वाले कर्मचारियों के लिए अनिवार्य है। यह एक संतुलित दृष्टिकोण की पेशकश करते हुए, टैक्स बेनिफिट और कंपनी योगदान के साथ निश्चित रिटर्न प्रदान करता है।
एनपीएस
रिटायरमेंट की प्लानिंग कर रहे निवेशकों के लिए नेशनल पेंशन सिस्टम यानी NPS भी बेहतर विकल्प है। NPS पेंशन सिस्टम केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाती है. एनपीएस दो तरह के खाते प्रदान करता है- टियर I और टियर II। टियर I अनिवार्य रूप से रिटायरमेंट अकाउंट है, जबकि टियर II आपके PRAN से जुड़ा एक स्वैच्छिक बचत खाता है। टियर II निकासी के मामले में अधिक लचीलापन प्रदान करता है, टियर I खाते के विपरीत, आप किसी भी समय अपने टियर II खाते से निकासी कर सकते हैं। ये स्कीम मार्केट लिंक्ड होती है। NPS में कम से कम 20 साल निवेश करना जरूरी है। अकाउंट खुलने के बाद 60 साल की उम्र तक या मैच्योरिटी तक इसमें योगदान करना होता है। एनपीएस निवेशकों को रिटायरमेंट से पहले आंशिक निकासी की परमिशन मिलती है।
आप एनपीएस खाते से कुल जमा राशि का 25 फीसदी हिस्सा निकाल सकते हैं। इस निकासी के लिए आपका एनपीएस खाता कम से कम 3 साल पुराना होना आवश्यक है। NPS अपने सब्सक्राइबर्स को कई तरह के लचीलापन प्रदान करता है। खाताधारक एक वित्त वर्ष में अपनी जरूरत के अनुसार कभी भी एनपीएस फंड में अपना योगदान दे सकते हैं। वह खुद अपने निवेश के विकल्प को चुनकर उसे बदल भी सकते है। इसके साथ ही निवेशकों को अपना खाता ऑनलाइन हैंडल करने की सुविधा मिलती है। रिटायरमेंट पर कोई 60 फीसदी तक राशि निकाल सकता है और बचे फंड से एन्युटी खरीद सकता है। एनपीएस की खासियत यह है कि रिटायरमेंट पर न तो कोई 100 फीसदी फंड निकाल सकता है और न ही 100 फीसदी फंड से एन्युटी खरीद सकता है। कम से कम 40 फीसदी रकम से एन्युटी खरीदना जरूरी है। इस योजना में मंथली पेंशन के लिए एन्युटी खरीदना जरूरी है। यानी यह स्कीम रिटायरमेंट पर पेंशन और एक मुश्त फंड तो देती ही है, एनपीएस में निवेशकों को रिटायरमेंट के पहले टैक्स बेनिफिट मिलते हैं।
अब सवाल है कि तीनों में से किसे चुनें, तो बता दें कि पीपीएफ और ईपीएफ स्थिरता और गारंटीड रिटर्न देते हैं जबकि बाजार में निवेश करने की वजह से इसमें थोड़ा मार्केट रिस्क भी रहता है हालांकि इसमें हायर रिटर्न की संभावना होती है। ऐसे में एक बड़ा रिटायरमेंट कॉर्पस चाहने वाले निवेशकों के लिए एनपीएस एक बेहतर विकल्प भी साबित हो सकता है। एनपीएस में बाकी विकल्पों की तुलना में टैक्स बेनिफिट अधिक मिलते हैं। इसमें न सिर्फ एक वित्त वर्ष के दौरान 1.5 लाख रुपये तक निवेश पर आयकर कानून की धारा 80C के तहत टैक्स में छूट मिलती है, बल्कि सेक्शन 80CCD(1B) के तहत 1.5 लाख रुपये से ऊपर सालाना 50,000 रुपये तक के निवेश पर भी टैक्स बेनिफिट मिलता है। यानी NPS में निवेश पर एक साल में कुल 2 लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स छूट मिलती है, जो किसी भी और निवेश में उपलब्ध नहीं है. ये स्कीम 18 से 70 साल की उम्र के सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध है।