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Home कला संस्कृति

कौन है भद्रा जिसके डर से बहनें भाई को नहीं बांधती राखी?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
18/08/24
in कला संस्कृति, धर्म दर्शन
कौन है भद्रा जिसके डर से बहनें भाई को नहीं बांधती राखी?

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नई दिल्ली: हर साल सावन पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी यानी एक रक्षा सूत्र बांधती हैं और उसके लिए मंगलकामना करती है. बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है. इस साल रक्षाबंधन का त्योहार 19 अगस्त यानी कल मनाया जाएगा. लेकिन इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा का साया भी रहने वाला है. शास्त्रों में भद्रा काल में भाई को राखी बांधना वर्जित माना गया है. आइए जानते हैं कि भद्रा कौन है और रक्षाबंधन पर भद्रा का साया कब से कब तक रहेगा.

रक्षाबंधन पर कब से कब तक रहेगी भद्रा?

रक्षाबंधन पर भद्राकाल 19 अगस्त की रात 02.21 बजे से दोपहर 01.30 बजे तक रहने वाला है. रक्षा बंधन पर सुबह 09.51 से 10.53 तक पर भद्रा पुंछ रहेगा. फिर 10.53 से 12.37 तक भद्रा मुख रहेगा. दोपहर 01.30 बजे भद्रा काल समाप्त हो जाएगा.

हालांकि इस भद्रा काल का रक्षाबंधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. दरअसल, चंद्रमा के मकर राशि में होने के कारण भद्रा का निवास पाताल लोक में रहेगा. इसलिए धरती पर होने वाले शुभ कार्य बाधित नहीं होंगे. अतः रक्षाबंधन पर आप किसी भी समय भाई को राखी बांध सकती हैं.

कौन है भद्रा?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भद्रा सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन हैं. शनि की भांति इसका स्वभाव भी क्रूर है. वैसे भद्रा का शाब्दिक अर्थ कल्याण करने वाली है. इसके विपरीत भद्रा काल में शुभ कार्य वर्जित है. भद्रा राशिअनुसार तीनों लोको में भ्रमण करती हैं. पृथ्वीलोक में इसके होने से शुभ कार्यों में विघ्न आते हैं.

भद्राकाल बेहद अनिष्टकारी होता है. इस काल में शुभ व मांगलिक कार्य वर्जित हैं. ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी लोक की भद्रा सभी कार्यों का विनाश करने वाली होती है. ऐसे में अगर आप भद्राकाल की अवधि में भाई को राखी बांधने की योजना बना रही हैं तो रुक जाइए. थोड़ा इंतजार कर लीजिए. भद्रा का साया टलने के बाद ही भाई को राखी बांधें.

भद्रा में राखी बांधने के परिणाम

रक्षाबंधन पर भद्रा का साया बेहद अशुभ होता है. कहते हैं सूर्पणखा नेभद्रा नक्षत्र में ही रावण को राखी बांधी थी, जिसके बाद राम-रावण के बीच युद्ध हुआ. रावण को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. द्वापर युग में द्रौपदी ने भी अपने भाई को गलती से भद्रा काल में राखी बांध दी थी. इसके बाद द्रौपदी का सुख चैन सब छिन गया था. द्रौपदी को चीरहरण का दर्द झेलना पड़ा, जिसकी परिणति कुरुक्षेत्र के युद्ध के रूप मे हुई.

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