देहरादून. देवभूमि उत्तराखंड की हरी-भरी खूबसूरत वादियां आज सुलगते अंगारों की आगोश में आती जा रही है. गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र के जंगल आग की त्रासदी झेल रहे है. वन विभाग सहित प्रशासन सक्रियता से स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं तो वहीं आग लगाने वालों पर भी अब सख्ती बरती जा रही है. वन संपदा को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. भारतीय वन अधिनियम-1927 के तहत राज्य के कुछ इलाकों में मामले दर्ज कर आरोपियों को जेल भेजने की कार्रवाई हुई है.
हाल ही में प्रदेश वन महकमे की कमान संभालने के बाद प्रमुख वन संरक्षक आईएफएस अधिकारी धनंजय मोहन ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए कहा कि भारतीय वन अधिनियम 1927 वनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए बनाया गया था. इसके माध्यम से वनों को आरक्षित और संरक्षित घोषित किया जाता है. एक बार अगर कोई वन क्षेत्र आरक्षित और संरक्षित घोषित किया जाता है तो जंगलों में कई सारी चीजें प्रतिबंधित कर दी जाती है. जैसे वनों का कटान, जंगल में आग लगाना. अगर कोई व्यक्ति इस तरह का कोई भी काम करता है तो उसके खिलाफ भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है और उसके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई की जाती है. वन संपदा को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों पर वनकर्मी मामला दर्ज करते हैं.
भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत होती है कार्रवाई
धनंजय मोहन ने बताया कि पुलिस की तरह ही वनकर्मियों द्वारा ऐसी गतिविधि करने पर मुकदमा दर्ज किया जाता है. इसके बाद विवेचना की जाती है. मामले की गंभीरता के हिसाब से जरूरत पड़ने पर आरोपियों को अरेस्ट भी किया जाता है. सिटी मजिस्ट्रेट के सामने आरोपी को पेश कर कार्रवाई की जाती है. इस तरह जंगलों में अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए के तहत कार्रवाई की जाती है.
अब तक 52 लोगों की हुई गिरफ्तारी
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, अब तक जंगलों में आग के 761 मामले सामने आए हैं और 52 आरोपियों पर मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार किया गया है. अब तक उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने के 761 मामलों में 949 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ हैं.