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दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर किसका होगा नियंत्रण, सुप्रीम कोर्ट में होगा फैसला

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
15/02/22
in राष्ट्रीय, समाचार
दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर किसका होगा नियंत्रण, सुप्रीम कोर्ट में होगा फैसला

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया कि है दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर किसका नियंत्रण होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट 3 मार्च को याचिका पर सुनवाई शुरू करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के अधिकार क्षेत्र को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकारों के बीच जारी विवाद पर तीन मार्च को सुनवाई करेगा।

चीफ जस्टिस एन.वी. रमना और जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की डिविजन बेंच ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी की इस मामले पर शीघ्र सुनवाई की अपील स्वीकार करते हुए मामले को 3 मार्च को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। यह याचिका 2019 के एक खंडित फैसले से उत्पन्न हुई है।

अभिषेक मनु सिंघवी ने चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच के समक्ष आज विशेष उल्लेख के दौरान दलीलें पेश करते हुए शीघ्र सुनवाई किए जाने की आवश्यकता बताई तथा अगले सोमवार को सुनवाई की अपील की थी। दिल्ली की प्रशासनिक सेवाओं पर राज्य मंत्रिमंडल की सलाह के बिना उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण के फैसले को केजरीवाल सरकार ने चुनौती दी है।

इससे पहले विवाद पर 14 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की दो-जजों की बेंच ने दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर GNCTD और केंद्र सरकार की शक्तियों के सवाल पर एक विभाजित फैसला दिया था और मामले को तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया था।

जस्टिस अशोक भूषण ने फैसला सुनाया था कि दिल्ली सरकार के पास सभी प्रशासनिक सेवाओं का कोई अधिकार नहीं है, जबकि जस्टिस एके सीकरी ने कहा था कि नौकरशाही (संयुक्त निदेशक और ऊपर) के शीर्ष क्षेत्रों में अधिकारियों का स्थानांतरण या पोस्टिंग केवल केंद्र सरकार द्वारा किया जा सकता है और अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों के लिए मतभेद के मामले में लेफ्टिनेंट गवर्नर का विचार मान्य होगा।

केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष से संबंधित छह मामलों पर सुनवाई कर रही दो जजों की बेंच ने सेवाओं पर नियंत्रण को छोड़कर शेष पांच मुद्दों पर सर्वसम्मति से आदेश दिया था। 2014 में आम आदमी पार्टी (आप) के सत्ता में आने के बाद से राजधानी दिल्ली के शासन में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता संघर्ष देखा गया है। दिल्ली सरकार का वर्तमान उपराज्यपाल और उनके पूर्ववर्ती के साथ टकराव रहा है।

फरवरी 2019 के फैसले से पहले सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 4 जुलाई 2018 को राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए व्यापक मानदंड निर्धारित किए थे। उस ऐतिहासिक फैसले में बेंच ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन एलजी की शक्तियों को यह कहते हुए काट दिया था कि उनके पास ‘स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति’ नहीं है और उन्हें चुनी हुई सरकार की सहायता और सलाह पर कार्य करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने एलजी के अधिकार क्षेत्र को भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित मामलों तक सीमित कर दिया था और अन्य सभी मामलों में यह माना था कि एलजी को राज्य कैबिनेट की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा।


खबर इनपुट एजेंसी से

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