नई दिल्ली: प्रयागराज में आस्था के महापर्व महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी को हुई थी, जिसके बाद पहला अमृत स्नान मकर संक्रांति के दिन, दूसरा अमृत स्नान मौनी अमावस्या और तीसरा अमृत स्नान बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर किया गया था. इस दौरान बहुत से साधु-संतों और श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई.
तीसरे स्नान के बाद सभी नागा साधु और संत ने अपने-अपने अखाड़ों के साथ वापसी शुरू कर दी, लेकिन अभी भी दो स्नान और बाकी है, जो कि माघी अमावस्या और महाशिवरात्रि के मौके पर किया जाएंगे, लेकिन इन दो स्नानों को अमृत स्नान नहीं माना गया है. धार्मिक दृष्टि से यह स्नान भी बहुत ही महत्वपूर्ण है. वहीं सवाल ये भी है कि इन दोनों स्नानों को अमृत स्नान क्यों नहीं माना जा रहा है.
माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर अमृत स्नान क्यों नहीं?
महाकुंभ मेले का आयोजन ग्रहों और ज्योतिष गणना के हिसाब से किया जाता है. मुख्य रूप से जब सूर्य मकर राशि में और गुरु वृषभ राशि में होते हैं, तब स्नान को अमृत स्नान माना जाता है. जिसके हिसाब से मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी के दिन यह शुभ योग बन रहे थें. इसलिए इन तिथियों पर अमृत स्नान किया गया.
वहीं माघ पूर्णिमा के दिन गुरु तो वृषभ राशि में होंगे, लेकिन सूर्य कुंभ राशि में आ जाएंगे. इसके अलावा महाशिवरात्रि को भी सूर्य कुंभ राशि में रहेंगे, इसलिए इस दिन का स्नान भी अमृत स्नान नहीं माना जाएगा. हालांकि माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि का स्नान भी बहुत शुभ माना जाता है. इन दोनों तिथियों पर पवित्र संगम में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है.
महाकुंभ के महा स्नान की तिथियां
- महाकुंभ में चौथा महास्नान माघ पूर्णिमा के दिन यानी बुधवार, 12 फरवरी 2025 को किया जाएगा.
- महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर यानी 26 फरवरी 2025 के दिन महाकुंभ का आखिरी महास्नान होगा.
अमृत स्नान का महत्व
हिंदू धर्म में महाकुंभ के दौरान अमृत स्नान का खास महत्व होता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाकुंभ में स्नान करने से व्यक्ति की शरीर शुद्ध होने के साथ सभी पापों छुटकारा मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसके अलावा बसंत पंचमी के दिन संगम तट पर अमृत स्नान करने से मां सरस्वती का आशीर्वाद भी मिलता है और व्यक्ति के जीवन में खुशहाली बनी रहती है.