नई दिल्ली: दुनिया के किसी भी कोने में जब कोई मुस्लिम नेता मरता है, तो हमारे देश में रुदाली गैंग एक्टिव हो जाता है. दिल्ली से बेरुत की दूरी करीब 4 हजार किलोमीटर है. वहां पर हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह मारा गया. उसके मरने की खबर सुनकर भारत के कट्टरपंथी मुस्लिमों का रो रोकर बुरा हाल है. नसरल्लाह का भारतीय मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं था, बावजूद इसके नसरल्लाह की याद में कुछ लोग छाती पीट रहे हैं. अफसोस….जिस कश्मीर में नसरल्लाह के समर्थन में लोग रो रहे हैं, उसी कश्मीर में एक शहीद बशीर अहमद की परिवार को सांत्वना देने तक कोई नहीं पहुंचा. आज हम कट्टरपंथियों के इसी ‘छल’चरित्र का विश्लेषण करेंगे.
नसरल्लाह के मरने पर छाती पीट रहे कट्टरपंथी
आतंकी संगठन हिजबुल्ला का चीफ हसन नसरल्लाह, लेबनॉन में मारा गया. इजरायल ने एक सटीक हमले में उसको मार गिराया. वैसे तो नसरल्लाह के जीने या मरने से, भारत के लोगों का कोई सीधा मतलब नहीं था. लेकिन बावजूद इसके, मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग, नसरल्लाह को अपना मार्गदर्शक बताकर, रुदाली बने हुए है.
लखनऊ हो या कश्मीर, कभी भी आपने आतंकी की गोली से शहीद हुए जवान के लिए, किसी को आंसू बहाते नहीं देखा होगा. लेकिन नसरल्लाह की मौत के बाद, लखनऊ से लेकर कश्मीर तक, कुछ मुस्लिम हाथों में पोस्टर और जुबान पर नसरल्लाह नाम का नारा लिए घूम रहे हैं.
शहीद बशीर अहमद के घर क्यों नहीं पहुंचे मुस्लिम
जम्मू कश्मीर के कठुआ में आतंकी मुठभेड़ में शहीद हुए बशीर अहमद के घर पर परिवार और खास दोस्तों के अलावा, गों की भीड़ नहीं दिखेगी. बशीर ने देश को आतंकियों से बचाने के लिए अपनी जान दे दी. उनका बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा. लेकिन जम्मू कश्मीर में ही, उनकी शहीदत को सलाम करने के लिए बहुत कम लोग पहुंचे हैं.
वहीं कश्मीर में आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के मुखिया नसरल्लाह के मारे जाने पर विरोध प्रदर्शन किया गया. नसरल्लाह के मारे जाने के विरोध सैकड़ों मुस्लिम युवक, युवतियों, बच्चों और बुजुर्गों ने नारेबाजी की. ये लोग तमाम तरह के स्लोगन लिखकर लाए थे. सीधे तौर पर नसरल्लाह का इन लोगों से कोई लेना देना नहीं है. नसरल्लाह ने इन लोगों के लिए कभी कुछ नहीं किया होगा. बावजूद इसके नसरल्लाह के मरने पर, ये लोग आंसू बहा रहे हैं.
आप ये सोचिए कि जिस बशीर अहमद ने देश के लिए अपनी जान दे दी. उसपर आंसू बहाने के लिए परिवार के अलावा कोई नहीं था. लेकिन नसरल्लाह जैसे आतंकी मानसिकता वाले हिजबुल्लाह चीफ के लिए ये लोग आंसू बहा रहे हैं.
लखनऊ में भी कट्टरपंथी कर रहे स्यापा
बशीर अहमद जैसे लोग हैं, जो इन नसरुल्लाह प्रेमियों को मरने से बचाते हैं. बशीर जैसे लोग ही आतंकियों से भिड़ते हैं,
ताकि ये नसरुल्लाह समर्थक, खुलकर सांस ले सकें. लेकिन विडंबना देखिए…आतंकियों के चीफ को ये शहीद बताते हैं,
और बशीर जैसे शरीद भुला दिए जाते हैं.
कश्मीर ही नहीं, लखनऊ में भी यही चल रहा है. यहां भी मुस्लिमों का शिया समुदाय, नसरुल्लाह के शोक में आंसुओं की नदियां बहा रहा है. नसरुल्लाह का इनसे संबंध बस इतना है कि ये लोग भी शिया मुस्लिम हैं और वो भी शिया मुस्लिम था. बस इतना ही..इससे ज्यादा कुछ नहीं
लखनऊ के मुस्लिम इलाको में पोस्टर लगे हैं. हाथों में नसरुल्ला की फोटो लेकर…प्रदर्शन किया जा रहा है. तीन दिन तक दुकानें बंद रखी जाएंगी. एक आतंकी संगठन के चीफ नसरुल्लाह के लिए जो कुछ किया गया है. आपने किसी इस्लामिक आतंकी के विरोध में ऐसा प्रदर्शन नहीं देखा होगा.
नसरल्लाह आतंकी नहीं तो और क्या?
नसरुल्लाह के लिए रोने धोने वालों को देखकर, एक सवाल उठ रहा है. सवाल ये कि नसरुल्लाह, भारती मुस्लिमों के लिए ऐसा क्या कर रहा था, जिसकी वजह से यहां के कुछ मुस्लिम..उसके मरने पर बेहाल हुए जा रहे हैं. सिवाए इसके कि वो एक मुस्लिम नेता था, इसके अलावा…उसका भारत से क्या संबंध था.
हमारी ये रिपोर्ट कई नसरल्लाह समर्थकों को तीर की तरह चुभी होगी. बहुत लोग तो इस बात से नाराज हो सकते हैं, कि हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन क्यों कहा गया. या फिर वो इस बात पर भी नाराज हो सकते हैं कि हसन नसरल्लाह को आतंकी क्यों कहा. तो हम आपको नसरल्लाह और हिजबुल्लाह से जुड़ी कुछ अहम जानकारी देंगे. आप इसे पढ़िए और खुद तय कीजिए.
सबसे पहले हम आपको हिजबुल्लाह के बारे में कुछ बताते हैं. अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, और गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल समेत 60 देशों ने हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन घोषित किया है. इसी तरह से अरब लीग के 22 मुस्लिम देशों ने भी जुलाई 2024 तक हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन ही माना था.
हमारे देश में जिन लोगों को लगता है कि हसन नसरल्लाह बहुत महान आदमी थे. उनको बता दें कि हसन नसरल्लाह के संगठन हिजबुल्लाह ने कई आतंकी हमले किए हैं, जिसमें सैकड़ों लोगों की जानें गई हैं.
ईसाई अपने देश में ही कैसे हो गए अल्पसंख्यक
वर्ष 1980 तक लेबनॉन को मिडिल ईस्ट का स्विट्जरलैंड कहा जाता था. इस देश की अर्थव्यवस्था अच्छी थी. महिलाओं को आज के मुकाबले कहीं ज्यादा आजादी थी. लेबनॉन मिडिल ईस्ट का इकलौता ऐसा देश था, जहां ईसाई समुदाय बहुसंख्यक था. वर्ष 1980 में ईसाई आबादी 54 प्रतिशत से ज्यादा थी. लेकिन वर्ष 1982 में इजरायल-लेबनॉन युद्ध के बाद, लेबनॉन में गृह युद्ध की स्थिति बन गई. इसी गृहयुद्ध का फायदा कट्टर इस्लामिक संगठन हिजबुल्लाह ने उठाया.
हिजबुल्लाह ने लेबनॉन पर नियंत्रण के लिए गृहयुद्ध छेड़ दिया था. हिजबुल्लाह की कट्टर नीतियों से लेबनॉन में ईसाइयों का जीना मुश्किल कर दिया. आज वो अल्पसंख्यक हो चुके हैं, उनकी आबादी 30 प्रतिशत से भी कम हो गई है. हिजबुल्लाह ने लेबनॉन को आर्थिक और सामाजिक रूप से आज भी अस्थिर बनाया हुआ है.
क्या अब भी आपको लगता है कि हिजबुल्लाह कोई समाजसेवी संस्था है , जो लेबनॉन के हित में काम कर रही है? अगर आपको ऐसा लगता है तो हम इस पर अब कुछ नहीं कह पाएंगे.