नई दिल्ली : जहां राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा चल रही है, वहीं बिहार में चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर जनसुराज यात्रा कर रहे हैं। साल भर चलने वाली यह पदयात्रा बिहार के हर इलाके से गुजरेगी। न सिर्फ बिहार के लोगों में, बल्कि तमाम राजनीतिक दलों में भी इस यात्रा को लेकर बहुत उत्सुकता है। चुनावी राजनीति की नब्ज समझने वाले प्रशांत किशोर ने संकेत दिया है कि वह यात्रा के बाद राजनीतिक दल लॉन्च करेंगे, जिसके बैनर तले वह 2025 में राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसे में अभी राज्य में सबसे बड़ी उत्सुकता इसी बात को लेकर है कि अगर प्रशांत राजनीतिक दल लॉन्च करते हैं तो उसकी दिशा क्या होगी? क्या वह किसी राजनीतिक दल से गठबंधन करेंगे? अभी तक की यात्रा में उन्होंने जो संकेत दिया है उससे साफ लग रहा है कि फिलहाल महागठबंधन से वह दूरी बनाए रखेंगे। लेकिन बीजेपी के करीब जाने के भी कोई संकेत वह नहीं दे रहे हैं। वह खुद को बिहार में एक नए विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं, जिसकी तलाश राज्य को सालों से है। उन्हें पता है कि यह आसान नहीं है। लेकिन उनकी पहले की क्षमता को देखते हुए कोई भी दल उन्हें हल्के में नहीं ले रहा है। भले सार्वजनिक रूप से सभी दल यात्रा को इग्नोर करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सचाई यह है कि वे सभी इससे जुड़ी हर गतिविधि को पल-पल ट्रैक कर रहे हैं, इसकी ताकत को आंक रहे हैं।
नीतीश का उत्तर-पूर्व प्लान
नीतीश कुमार इन दिनों विपक्षी एकता की योजनाओं पर सुस्त पड़े हुए हैं। वैसे उनके करीबी बताते हैं कि 8 दिसंबर को जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव हो जाएंगे, उसके बाद उनकी विपक्षी एकता बनाने की रणनीति में तेजी आएगी। लेकिन परदे के पीछे का खेल तो कुछ और ही है। असल में इन दिनों नीतीश कुमार अलग-अलग राज्यों में अपने मिशन को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। अभी उनकी कोशिश बीजेपी के खिलाफ उत्तर-पूर्व में एक व्यापक गठबंधन बनाने की है। इसके लिए वह बदरुद्दीन अजमल के अलावा टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के संपर्क में हैं। यही नहीं, वह त्रिपुरा में भी बीजेपी के खिलाफ गठबंधन बनाने की कोशिश में लगे हैं। उनका मानना है कि अगर सही तरीके से गठबंधन हो जाए, तो बीजेपी और उसके सहयोगियों को उस उत्तर-पूर्व में भी अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया जा सकता है, जहां पिछले दो आम चुनावों में एनडीए ने लगातार क्लीन स्वीप की है। लेकिन कांग्रेस अभी तक इसे लेकर आशंकित है। पार्टी मान रही है कि 2021 के असम विधानसभा चुनाव में अजमल के साथ गठबंधन के चलते ही उसका प्रदर्शन खराब हो गया था। त्रिपुरा में भी वह लेफ्ट के साथ गठबंधन करने के पक्ष में नहीं है। लेकिन नीतीश कुमार मानते हैं कि अभी सभी विपक्षी दलों को तमाम विकल्प खुले रखने चाहिए।
मोदी के नाम पर
गुजरात चुनाव में बीजेपी अपना सब-कुछ झोंक चुकी है। लेकिन पार्टी की एक अंदरूनी रणनीतिक मीटिंग में एक बीजेपी नेता ने साफगोई से बात कह दी कि ‘जीतेंगे तो बस नरेंद्र मोदी के नाम पर। लोग उनके नाम-काम पर वोट देंगे। बाकी कोई फैक्टर काम नहीं करेगा।’ लगता है, पार्टी ने भी उनकी यह राय मान ली है। 2017 की तरह ही इस बार भी नरेंद्र मोदी को आगे कर चुनाव लड़ने की योजना बनी है। इंडोनेशिया में जी-20 सम्मेलन से भाग लेकर देश लौटने के बाद पीएम मोदी मिशन गुजरात पर लग जाएंगे। अब तक तय कार्यक्रम के अनुसार पीएम मोदी दो दर्जन से अधिक रैलियों के अलावा आधा दर्जन रोड शो भी कर सकते हैं। बीजेपी का मानना है कि इतना काफी होगा और बीजेपी अजेय बनी रहेगी।
कांग्रेस की दुविधा
राजीव गांधी के हत्यारों को सुप्रीम कोर्ट से रिहाई मिलने के बाद राजनीति तेज हो गई है। तमिलनाडु की डीएमके सरकार इस फैसले के पक्ष में है, लेकिन कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर अप्रत्याशित रूप से हमलावर हो गई। पार्टी ने इस फैसले पर बहुत सख्त स्टैंड लिया है। हालांकि पार्टी नेताओं को इस स्टैंड के कारणों पर सफाई देने में कई कठिन सवालों का भी सामना करना पड़ रहा है। इसके पीछे दो वजहें बताई जा रही हैं। पहली वजह तो यही है कि खुद सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी राजीव के हत्यारों के खिलाफ अतीत में नरम और रहम भरा रुख दिखा चुकी हैं। मगर सियासी गलियारों में दूसरी वजह की बड़ी चर्चा है। दूसरी वजह यह है कि तमिलनाडु में डीएमके का कांग्रेस से गठबंधन है। ऐसे में सबका ध्यान इस तरफ है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर दोनों के अलग-अलग रुख का गठबंधन पर कैसा प्रभाव पड़ने वाला है। संभवत: इसीलिए कांग्रेस के अंदर एक राय यह भी बन रही है कि एक बार अपना स्टैंड सामने लाने के बाद अब पार्टी को यह मुद्दा और अधिक नहीं खींचना चाहिए।
नतीजों से पहले का खेल
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव समाप्त हो चुका है। नतीजे 8 दिसंबर को घोषित होंगे। हिमाचल में इन दिनों खूब ठंड है तो उम्मीद थी कि वोटिंग के बाद माहौल में उपजी चुनावी गर्मी कुछ शांति होगी। पर भीषण ठंड के बावजूद वहां का सियासी पारा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। नेताओं का लोगों से वोट मांगने का अभियान जरूर समाप्त हो गया लेकिन 8 दिसंबर के बाद अपना-अपना गणित सेट करने की कवायद अभी से तेज हो रखी है। कांग्रेस और बीजेपी, दोनों अपने आंतरिक आकलन पर आश्वस्त हैं कि सरकार उनकी ही बन रही है। इतना ही नहीं इसी आकलन के आधार पर दोनों दलों के नेता अभी से अपने लिए भूमिका भी तय करने लगे हैं। कांग्रेस के अंदर जीत के बाद सीएम कौन होगा इसे लेकर अभी दो से अधिक खेमे बन चुके हैं। दोनों खेमे संभावित विधायकों से संपर्क कर अपना संख्या बल दुरुस्त करने में जुट गए हैं। कांग्रेस के अंदर माना जा रहा है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो विवाद से बचने के लिए विधायकों की राय ली जा सकती है। वहीं बीजेपी के अंदर राय बन रही है कि इतनी एंटी इंकम्बेंसी के बाद भी अगर जयराम ठाकुर जीत हासिल करते हैं तो उन्हें सीएम पद से हटाना आसान नहीं होगा। ऐसे में नेतागण मंत्रियों की सूची में अपना नाम शामिल कराने के लिए अपने समीकरण को ठीक करने में लगे हैं। शिमला की इस सक्रियता का असर दिल्ली दरबार में भी देखा जा रहा है।