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बिहार में राजपूत नेता गुस्से में क्यों हैं, जानिए ठाकुर के कुएं पर हंगामे की स्टोरी

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
29/09/23
in बिहार, समाचार
बिहार में राजपूत नेता गुस्से में क्यों हैं, जानिए ठाकुर के कुएं पर हंगामे की स्टोरी
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पटना : राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में प्रसिद्ध कवि ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ क्या पढ़ी, बवाल हो गया। बिहार की राजनीति में एक्टिव ठाकुर यानी राजपूत बिरादरी के नेता एक्टिव हुए, चाहे वह बीजेपी के हों या आरजेडी और जेडीयू के। राजपूत शौर्य गाथा के चैप्टर खंगाले गए। हाल ही में जेल से रिहा हुए आनंद मोहन और उनके बेटा चेतन आनंद ने सांसद मनोज झा को चुनौती दी कि वह अपने सरनेम से झा को हटाकर समाजवाद का सबूत दें। बीजेपी विधायक नीरज बब्लू ने कहा कि अगर वह राज्यसभा में होते तो मनोज झा का मुंह तोड़ देते। जेडीयू एमएलसी संजय सिंह ने धमकी दे डाली कि क्षत्रिय गर्दन कटवा सकते हैं तो काट भी सकते हैं। जेडी यू सांसद ललन सिंह ने बीजेपी की कनफुसिया चरित्र का परिणाम बताकर माहौल शांत करने की कोशिश की।

लालू यादव ने मनोज झा का किया बचाव

हालांकि संसद में मनोज झा ने कविता पढ़ने से पहले साफ किया था कि इस कविता में ठाकुर सामंतवाद का प्रतीक है, जो आज भी हम सभी के अंदर मौजूद है। राज्यसभा में ‘ठाकुर का कुआं’ से समाजवाद का पानी तो नहीं निकला, मगर जातिवाद का पेट्रोल बिखर गया। अब बिहार में राजनीति में आग लगी है। हालांकि राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव ने अपने पार्टी प्रवक्ता मनोज झा का खुलकर समर्थन किया। लालू यादव ने कहा कि मनोज झा ने जो भी कहा, बिल्कुल सही है। उनका इरादा किसी जाति या समुदाय का अपमान करना नहीं था। उन्होंने आनंद मोहन पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि वह पहले अपनी अक्ल और शक्ल देख लें। उन्होंने चेतन आनंद को भी शांत रहने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि जो लोग शोर मचाकर जाति का वोट हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, उससे इनसे बचना चाहिए।

राजपूत समाज के सर्वमान्य नेता बनने की कोशिश

अभी ठाकुर के कुएं से निकली चिंगारी शांत भी नहीं हुई कि लालू प्रसाद के बेटे तेजप्रताप ने एक और बयान देकर हंगामे को भड़का दिया। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि क्षत्रिय ब्राह्मण के रक्षा हेतु अपने प्राण तक न्योछावर कर देते हैं। इसका उदाहरण वेद, पुराण और हमारा इतिहास गवाह है कि जब भी ब्राह्मण पर कोई संकट आई है क्षत्रिय सदैव सबसे पहले आगे रहे हैं और आजकल के क्षत्रिय बस जाति के नाम पर दिखावा करते हैं। उनके निशाने पर भी आनंद मोहन और उनके बेटे चेतन आनंद ही रहे। डीएम कृष्णैया हत्याकांड में सजायाफ्ता आनंद मोहन सिंह हाल में ही जेल से रिहा हुए हैं। वह खुद कई राजनीतिक दलों से जुड़े रहे और सांसद-विधायक चुने गए। बिहार पीपुल्स पार्टी बनाकर उन्होंने 90 के दशक में राजपूत नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई थी। उनकी पत्नी लवली आनंद भी शिवहर से सांसद रहीं। आरजेडी के बड़े नेता रहे रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन के बाद राजपूत समाज का सर्वमान्य नेता नहीं बचा है। नेताओं को ठाकुर विवाद राजपूत बिरादरी का सर्वमान्य चेहरा बनने के मौका भी नजर आ रहा है।

बिहार में जातीय राजनीति को हवा देने का आरोप

बीजेपी सांसद गिरिराज का आरोप है कि राष्ट्रीय जनता दल बिहार में एक बार फिर जातीय राजनीति को हवा दे रहा है। ठाकुर विवाद इस कड़ी का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि आरजेडी और जेडीयू जातीय राजनीति से सनातन को कमजौर करने की कोशिश कर रहे हैं। गौरतलब है कि बिहार सरकार ने हाल ही में जातीय सर्वेक्षण कराया। माना जाता है कि हिंदुत्व की राजनीति के काट के तौर कास्ट पॉलिटिक्स को फिर से बहस के केंद्र में लाने की कोशिश की जा रही है। जातीय सर्वे से ओबीसी कैटिगरी के वोटर दोबारा उसी तरह गोलबंद हो सकते हैं, जैसा 1991 में मंडल कमिशन के प्रस्तावों को लागू करने के बाद हुआ था। सच यह है कि तब भी समाज सवर्ण और ओबीसी के खेमों में बंटा था। जाति का जिन्न निकला तो सवर्ण वोटरों की गोलबंदी भी होगी।

राजपूत वोटर के हाथ में 8 लोकसभा सीट

बिहार में 15 फीसदी आबादी सवर्णों की मानी जाती है, जिनमें राजपूत बिरादरी के 5 प्रतिशत वोटर माने जाते हैं। बिहार में सवर्णों की दूसरी बड़ी जाति भूमिहार है, जिनके 6 फीसदी वोटर हैं। ब्राह्मण चार फीसदी और कायस्थ एक फीसदी वोट पर दखल रखते हैं। कायस्थ वोटरों का प्रभाव बिहार की राजधानी पटना और इसके आसपास सीमित है। राजपूत वोटर 8 लोकसभा सीटों पर प्रभावी माने जाते हैं। श्रीकृष्ण सिंह के दौर से ही अनुग्रह नारायण सिंह और सत्येंद्र नारायण सिंह ने औरंगाबाद राजपूत का सियासी गढ़ बनाया। आरा, वैशाली, छपरा, शिवहर और सहरसा लोकसभा सीटों पर भी राजपूत नेताओं का वर्चस्व रहा। इसके अलावा 40-42 विधानसभा सीटें भी राजपूत बाहुल्य मानी जाती है।

1998 लोकसभा चुनाव के बाद से बिहार में लोकसभा और विधानसभा के कुल 8 चुनाव हुए। इन चुनावों में सवर्णों का वोट एकमुश्त बीजेपी और जेडी यू को मिलता रहा। 2020 के चुनाव के दौरान आरजेडी के खाते में सवर्णों का चार फीसदी वोट ही गया। 2020 में भी 28 राजपूत चुनकर विधानसभा पहुंचे, जिनमें बीजेपी 15, जेडी यू के दो, कांग्रेस के एक और आरजेडी के सात विधायक शामिल हैं । 2024 में राजपूत वोट किधर जाएगा, इसे ठाकुर के कुएं से तय करने कोशिश जारी है। इस विवाद से मिथिलांचल के पांच ब्राह्मण बाहुल्य जिले सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर में भी जाति के आधार पर सवर्ण वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है। फायदा किसे होगा, यह चुनाव में ही पता चलेगा।

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