हिन्दू धर्म की शादियों में हर रस्म का एक विशेष महत्व होता है. इन रस्मों में एक सात फेरों और 7 वचन लेने की रस्म ऐसी है जो शादी के दौरान दो आत्माओं को आपस में जोड़ने का काम करती है. शादी के रीति-रिवाजों की बात करें तो ये न सिर्फ दो लोगों को जोड़ती है, बल्कि उन्हें वचनों के साथ जीवन की हर एक जिम्मेदारी को निभाना भी सिखाती है. हिंदू धर्म में सात फेरे और 7 वचन के बिना शादी अधूरी मानी जाती है. इसलिए शादी के दौरान सात फेरे के साथ ही 7 बचन लिए जाते हैं.
पंडित राजेन्द्र तिवारी ने टीवी9 डिजिटल से बातचीत में बताया कि हिंदू धर्म में शादी के दौरान सात फेरे लेने की परंपरा को सात जन्मों का बंधन माना गया है. दूल्हा-दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं और साथ ही हर फेरे के साथ 7 वादे निभाने की कस्में भी खाते हैं. ताकि वे अगले सात जन्मों तक साथ-साथ रह सकें. साथ ही वह पति-पत्नी के रिश्ते को मन, शरीर और आत्मा से निभाने का वादा भी करते हैं.
सनातन धर्म में, सात फेरे और सात वचनों का महत्व दो लोगों की आत्मा और शरीर को एक साथ जोड़ना है. ऐसी मान्यता है कि इन सात फेरों और सात वचनों की वजह से दूल्हा-दुल्हन सात जन्मों तक साथ रहते हैं और एक दूसरे का साथ निभाते हैं.
जानें क्या है 7 संख्या का महत्व?
हिंदू शास्त्रों के मुताबिक, धरती पर पाई जाने वाली सभी महत्वपूर्ण वस्तुओं की संख्या 7 मानी जाती है. जैसे- इंद्रधनुष के सात रंग, सात तारे, सात सुर, सात दिन, सात चक्र, मनुष्य की सात क्रियाएं आदि. इसी वजह से पौराणिक मान्यताओं में 7 अंक को बहुत ही शुभ माना गया है. इसलिए शादी के दौरान भी सात फेरे लेने की मान्यता है और इन फेरों के बाद पति-पत्नी जीवनभर के लिए एक हो जाते हैं.
ये हैं 7 फेरों के मायने
शादी में सात फेरों में पहला फेरा भोजन व्यवस्था के लिए, दूसरा शक्ति, आहार तथा संयम के लिए, तीसरा धन प्रबंधन के लिए, चौथा आत्मिक सुख के लिए, पांचवां पशुधन संपदा के लिए, छटा हर ऋतुओं में सही रहन-सहन के लिए तथा अंतिम सातवें फेरे में पत्नी अपने पति का अनुसरण करते हुए जीवनभर साथ चलने का वचन लेती है.