Sunday, June 8, 2025
नेशनल फ्रंटियर, आवाज राष्ट्रहित की
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
No Result
View All Result
नेशनल फ्रंटियर
Home राजनीति

परिसीमन पर क्यों है दक्षिणी राज्यों को संदेह?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
27/02/25
in राजनीति, राष्ट्रीय, समाचार
परिसीमन पर क्यों है दक्षिणी राज्यों को संदेह?
Share on FacebookShare on WhatsappShare on Twitter

नई दिल्ली। ‘परिसीमन के नाम पर भारत के दक्षिणी राज्यों पर एक तलवार लटक रही है. हमारी लोकसभा सीटों में कटौती होने जा रही है और तमिलनाडु की 8 लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी.’ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और केंद्र की NDA सरकार के धुर राजनीतिक विरोधी एमके स्टालिन ने 25 फरवरी को ये बयान देकर भारत में उत्तर बनाम दक्षिण की नई बहस छेड़ दी.

एमके स्टालिन ने परिसीमन से पैदा होने वाली संभावित चुनौतियों पर 5 मार्च को तमिलनाडु के राजनीतिक दलों की एक मीटिंग बुलाई है. आगे बढ़ने से पहले ये गौर कर लिया जाना चाहिए कि स्टालिन का ये बयान तब आया है जब राज्य में अगले ही वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं.

केंद्र पर निशाना साधते हुए एमके स्टालिन ने जनता को ये बताना चाहा कि राज्य ने जनसंख्या नियंत्रण में कामयाबी पाई है लेकिन इसका ये नतीजा हो सकता है कि अगले परिसीमन के बाद तमिलनाडु की लोकसभा सीटें कम हो जाएगी. उन्होंने कहा, “हम 8 सीटें खो देंगे और परिणामस्वरूप, हमारे पास केवल 31 सांसद होंगे, न कि 39.” अभी तमिलनाडु से 39 सांसद चुनकर लोकसभा जाते हैं.

चुनावी लक्ष्य को साधकर दिया गया स्टालिन का ये बयान इतना अहम था कि गृहमंत्री अमित शाह ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा कि दक्षिणी राज्यों का ‘एक सीट भी नहीं’ कम होगा. अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में स्पष्ट किया है कि परिसीमन के बाद भी दक्षिण के किसी भी राज्य की सीटें कम नहीं होंगी.

आखिर परिसीमन का मुद्दा है क्या? भारत के दक्षिण के राज्य इस मसले को क्यों उठा रहे हैं? सीएम स्टालिन क्यों कह रहे हैं कि हमें एक मिशन में सफल रहने का यही प्रतिफल दिया जा रहा है.

परिसीमन है क्या?

बहुत आसान शब्दों में कहें तो परिसीमन भारत में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की प्रक्रिया है, ताकि जनसंख्या के आधार पर हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व समान और निष्पक्ष हो सके. इसका उद्देश्य सभी नागरिकों और क्षेत्रों का संसद और विधानसभा समान  प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है. परिसीमन जब भी होता है जनगणना के नए आंकड़ों के आधार पर होता है.

दक्षिण के राज्यों का डर क्या है?

देश के दक्षिणी राज्य परिसीमन प्रक्रिया को लेकर इसलिए आशंकित है क्योंकि उन्हें डर है कि 2026 में प्रस्तावित लोकसभा सीटों का परिसीमन अगर जनसंख्या के आधार पर हुआ तो उनके क्षेत्र का संसदीय प्रतिनिधित्व कम हो सकता है. इससे संसद में उनकी ताकत कम होगी और नतीजतन देश की राजनीति में भी उनका प्रभाव भी कम होगा.

अगर परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होता है, तो स्वाभाविक रूप से ज्यादा आबादी वाले राज्यों को अधिक सीटें मिलेंगी, जिसका मतलब है कि उत्तर भारत की सीटें बढ़ सकती हैं, जबकि दक्षिण भारत की सीटें या तो स्थिर रहेंगी या कम हो सकती हैं. अभी दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु (39), केरल (20), कर्नाटक (28), आंध्र प्रदेश (25), तेलंगाना (17) से कुल 129 सांसद लोकसभा में हैं, जबकि सिर्फ उत्तर प्रदेश (80), बिहार (40) और झारखंड (14) से ही 134 सांसद लोकसभा में हैं. जनसंख्या के मौजूदा रुझानों को देखते हुए यह अंतर और बढ़ सकता है.

गौरतलब है कि परिसीमन की प्रक्रिया आखिरी बार 1976 में हुई थी. 1976 में भारत की जनसंख्या लगभग 63 करोड़ थी अब भारत की आबादी लगभग 145 करोड़ हो चुकी है, यानी कि 50 सालों में हमारी आबादी दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गई है.

आबादी में छिपा है प्रतिनिधित्व का पेंच

लेकिन देश में आबादी एक समान अनुपात में नहीं बढ़ी है. दक्षिणी राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, और तेलंगाना ने परिवार नियोजन और स्वास्थ्य सुधारों के जरिए अपनी जनसंख्या वृद्धि दर को काफी हद तक नियंत्रित किया है. दूसरी ओर हिंदी पट्टी के राज्य जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में जनसंख्या तेजी से बढ़ी है.

दक्षिण के राज्यों की यही वाजिब शिकायत केंद्र से हैं. दक्षिणी राज्य मानते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण में उनकी सफलता की “सजा” उन्हें कम सीटों के रूप में मिलेगी. इससे संसद में उनकी आवाज और प्रभाव कमजोर हो सकता है.

दक्षिण भारत के राज्यों को लगता है कि ज्यादा सीटों का मतलब देश की राजनीति में हिंदी भाषी क्षेत्रों का वर्चस्व बढ़ेगा, जो पहले से ही संसद में ज्यादा सीटों के जरिए प्रभावी हैं. इससे क्षेत्रीय असमानता और गहरी हो सकती है.

दक्षिणी राज्य अक्सर बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और औद्योगिक विकास के लिए जाने जाते हैं, और वे इसे अपनी ताकत मानते हैं, लेकिन परिसीमन के बाद यह ताकत कथित तौर पर कमजोरी में बदल सकती है.

दक्षिण की क्षेत्रीय पार्टियां, जैसे तमिलनाडु की DMK और आंध्र प्रदेश की YSRCP, इसे अपने राजनीतिक भविष्य के लिए खतरे के रूप में देखती हैं. इन्हें लगता है कि कम सीटों से उनकी राष्ट्रीय स्तर पर सौदेबाजी की क्षमता प्रभावित हो सकती है.

क्या दक्षिण के राज्यों की सीटें घटेंगी?

यह इस बात पर निर्भर करता है कि परिसीमन का आधार क्या होगा. अगर सिर्फ जनसंख्या को आधार बनाया गया तो निश्चित रूप से उनकी सीटें घटेंगी.

उदाहरण के लिए, तमिलनाडु की आबादी करीब 7.6 करोड़ है और वहां 39 लोकसभा सीटें हैं, जबकि उत्तर प्रदेश की आबादी 22 करोड़ से ज्यादा है और वहां 80 सीटें हैं. नए परिसीमन में उत्तर प्रदेश की सीटें बढ़ सकती हैं, लेकिन तमिलनाडु की बढ़ने की गुंजाइश कम है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक स्टडी के अनुसार 2025 तक यूपी-उत्तराखंड की आबादी 25 करोड़ तक  पहुंचने का अनुमान है, अगर 20 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट को आधार बनाया गया तो यूपी-उत्तराखंड के हिस्से में 126 लोकसभा सीटें आएंगी, बिहार-झारखंड के हिस्से में 85 सीटें आएंगी, जबकि तमिलनाडु की सीटें 39 ही रहेंगी और केरल की सीटें 20 से घटकर 18 हो जाएंगी. गौरतलब है कि ये निजी आकलन है.

अगर 1976 की तरह 10 या 11 लाख की आबादी पर एक सांसद का प्रतिनिधित्व स्वीकार किया गया गया तो यूपी-उत्तराखंड, बिहार-झारखंड की लोकसभा सीटों में बंपर इजाफा होगा. ऐसी स्थिति में यूपी-उत्तराखंड की लोकसभा सीटें 250, बिहार-झारखंड की 169, राजस्थान की 82, तमिलनाडु की 76 और केरल की 36 सीटें हो जाएगी.

हालांकि, अगर क्षेत्रफल या अन्य मापदंडों को भी शामिल किया गया, तो दक्षिणी राज्यों नुकसान कम हो सकता है. लेकिन जैसा कि गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को स्पष्ट कहा है कि किसी भी राज्य की एक भी सीट नहीं घटेगी तो इसका मतलब है कि केंद्र अलग पॉलिसी पर काम कर रही है. दरअसल अभी परिसीमन का फॉर्मूला अभी स्पष्ट नहीं है.

बता दें कि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना देश के वो राज्य हैं जहां कर्नाटक को छोड़कर किसी भी राज्य में बीजेपी की दमदार मौजूदगी नहीं है. परिसीमन को लेकर दक्षिणी पार्टियों की बेचैनी का एक कारण यह भी है कि वे मानती हैं कि हिंदी बेल्ट में बीजेपी का दबदबा है, और हिंदी पट्टी में सीटें बढ़ने से उसकी ताकत और बढ़ सकती है. इससे सत्ता का संतुलन और भी प्रभावित होगा.

दक्षिण के नेताओं का क्या कहना है?

सिर्फ तमिलनाडु ही नहीं दक्षिण के दूसरे राज्य भी परिसीमन पर संदेह व्यक्त कर रहे हैं और बैचेनी जाहिर कर रहे हैं. NDA का हिस्सा होने के बावजूद TDP नेता और केंद्रीय उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने कहा कि हम नीति आयोग से बात करेंगे. हम किसी राज्य के साथ नाइंसाफी नहीं होने देना चाहते हैं.

DMK नेता और सांसद A राजा ने कहा कि क्या तमिलनाडु को जनसंख्या नियंत्रण पर सरकार की सलाह मानने पर दंडित किया जा रहा है. उन्होंने यूपी-बिहार की ओर इशारा करते हुए कहा कि हो सकता है कि तमिलनाडु की सीटें घटें नहीं लेकिन परिसीमन की वजह से अन्य राज्यों की सीटें बढ़ जाएगी.

परिसीमन की चिंताओं की ओर इशारा करते हुए आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि उनकी सरकार जनसंख्या बढ़ाने वाले परिवारों को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनाने की कोशिश में जुटी हैं. तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने भी बाद में ऐसा ही बयान दिया था.

तेलंगाना की पार्टी भारत राष्ट्र समिति (BRS) के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव ने कहा है कि केवल जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण तेलंगाना और आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल सहित अन्य दक्षिणी राज्यों के लिए “अभिशाप” होगा.

परिसीमन का कानूनी आधार क्या है?

परिसीमन एक स्वतंत्र निकाय, जिसे परिसीमन आयोग कहते हैं, द्वारा किया जाता है. इस आयोग का गठन केंद्र सरकार करती है. लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं के निर्धारण हेतु संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रत्येक जनगणना के पश्चात परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है. राज्य विधानसभाओं का परिसीमन अनुच्छेद 170 के तहत किया जाता है.

परिसीमन मुख्य रूप से नवीनतम जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होती है. परिसीमन आयोग हर निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या को देखता है और यह सुनिश्चित करता है कि सीटों का बंटवारा इस तरह हो कि हर क्षेत्र में लगभग बराबर लोग हों.

परिसीमन अबतक कब-कब हुआ है?

  • भारत में अब तक चार बार परिसीमन हुआ है: 1952, 1963, 1973, और 2002.
  • स्वतंत्र भारत में पहली बार 1952 में परिसीमन हुआ. इस समय लोकसभा सीटों की कुल संख्या 494 थी.
  • 1963 में दूसरा परिसीमन हुआ. इस समय लोकसभा सीटों की संख्या 522 हो गई.
  • 1973 में तीसरा परिसीमन हुआ. ये परिसीमन 1973 की जनगणना के आधार पर हुआ. इस समय लोकसभा सीटों की संख्या 542 निर्धारित की गई.

2002 में भारत में चौथा परिसीमन हुआ, लेकिन यह 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया. इसका कारण यह था कि 1976 में संविधान में संशोधन करके 2001 तक जनसंख्या के आधार पर सीटों के निर्धारण पर रोक लगा दी गई थी. इसका मकसद ये था कि जनसंख्या नीति को सफलतापूर्वक लागू करने वाले राज्यों को नुकसान न उठाना पड़े.  2002 के परिसीमन में सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया, बल्कि केवल सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया गया.

अब 2026 में भारत में परिसीमन प्रस्तावित है, लेकिन इससे पहले सरकार को जनगणना करानी पड़ेगी. यूं तो देश में जनगणना 2021 में ही होनी थी लेकिन कोरोना की वजह से ये काम नहीं किया जा सका.

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About

नेशनल फ्रंटियर

नेशनल फ्रंटियर, राष्ट्रहित की आवाज उठाने वाली प्रमुख वेबसाइट है।

Follow us

  • About us
  • Contact Us
  • Privacy policy
  • Sitemap

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.

  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.