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एकनाथ शिंदे के इन 5 मंत्रियों की कुर्सी पर क्यों हैं संकट?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
15/06/23
in मुख्य खबर, राज्य
एकनाथ शिंदे के इन 5 मंत्रियों की कुर्सी पर क्यों हैं संकट?
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अविनीश मिश्रा | गुलाब राव पाटिल, अब्दुल सत्तार, तानाजी सावंत, संजय राठौड़ और संदीपान भुमरे… शिंदे कैबिनेट के ये वो 5 मंत्री हैं, जिनकी कुर्सी बीजेपी-शिवसेना में आतंरिक कलह की वजह बन गई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन्हीं 5 मंत्रियों की वजह से शिंदे कैबिनेट का विस्तार भी रुका है. दिलचस्प बात है कि इन सभी मंत्रियों ने उद्धव सरकार गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

मराठी अखबार दिव्य भास्कर के मुताबिक महाराष्ट्र में कैबिनेट विस्तार को लेकर एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में अमित शाह से मुलाकात की थी. इसके बाद बीजेपी हाईकमान ने शिंदे से 5 मंत्रियों को हटाने के लिए कहा. इन सभी मंत्रियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट भी सरकार को दी गई है. मंत्रियों के हटाने की खबर के बाद से ही शिवसेना और बीजेपी में सियासी टशन और अधिक बढ़ गई है.

बीजेपी हाईकमान पर निशाना साधते हुए शिंदे गुट के विधायक संजय गायकवाड़ ने कहा कि परफॉर्मेंस छोड़िए, हमारे सभी विधायक शेर हैं और इन्हीं विधायकों की वजह से बीजेपी सरकार में है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी मंत्रियों को परफॉर्मेंस के आधार पर हटाने से इनकार कर दिया है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शिवसेना में परफॉर्मेंस के आधार पर पद से हटाने की कभी परंपरा नहीं रही है.

इधर, बीजेपी हाईकमान का कहना है कि अगर इन पांचों मंत्रियों को नहीं हटाया गया तो आने वाले वक्त में सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती है. आइए इन सभी मंत्रियों और उनकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट के बारे में विस्तार से जानते हैं…

गुलाबराव पाटिल- खांटी शिवसैनिक गुलाबराव पाटिल ने 1992 में पंचायत समिति का चुनाव जीतकर राजनीति में सक्रिय हो गए. कहा जाता है कि बालासाहेब ठाकरे ने एक बार जलगांव के मुलुख मैदान में उनका भाषण सुना था, जिसके बाद उन्हें राजनीति में लेकर आए. बालासाहेब ठाकरे की वजह से गुलाबराव पाटिल राजनीति की सीढ़ियों पर तेजी से छलांग लगाते गए. 1997 में जिलापरिषद के सदस्य और 1999 के चुनाव में जलगांव सीट से विधायक बनने में कामयाब रहे. वर्तमान में नासिक से शिवसेना के सबसे बड़ा चेहरा हैं.

पाटिल फडणवीस सरकार में पहली बार मंत्री बने. किसानों के बीच मजबूत पैठ होने की वजह से उन्हें सहकारिता विभाग दिया गया. उद्धव ने अपनी सरकार में पाटिल को जलापूर्ति और स्वच्छता विभाग दिया था. शिंदे सरकार में भी उन्हें यही विभाग मिला. महाराष्ट्र के ठाणे, मुंबई समेत कई इलाकों में पानी की भीषण संकट सामने है, जिस वजह से लोग प्रदर्शन भी कर रहे हैं. बीजेपी की परफॉर्मेंस रिपोर्ट में भी पाटिल पर जलापूर्ति विभाग में ठीक ढंग से काम नहीं करने का आरोप लगाया गया है.

इसके अलावा पाटिल पर संजय राउत ने 400 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. राउत का कहना है कि जलगांव के मंत्री रहते हुए पाटिल ने कोरोना के दौरान तय से अधिक कीमतों पर सामान की खरीददारी की.

2.अब्दुल सत्तार- अब्दुल सत्तार शिंदे सरकार में कृषि मंत्री और शिवसेना के एकमात्र मुस्लिम चेहरा हैं. सत्तार ने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से की. मराठवाड़ा में मजबूत पकड़ रखने वाले सत्तार को 2019 में पार्टी से निकाल दिया गया.

सत्तार इसके बाद शिवसेना में शामिल हो गए. उद्धव ने उन्हें सिलोड सीट से टिकट दिया, जो बीजेपी का गढ़ माना जाता था. सिलोड से विधायक बनने के बाद सत्तार उद्धव सरकार में मंत्री बने. इससे पहले अशोक और पृथ्वीराज चव्हाण की सरकार में भी मंत्री रह चुके थे.

सत्तार का नाम उन 16 विधायकों की सूची में भी शामिल है, जिनकी सदस्यता रद्द का मामला स्पीकर के पास है. सत्तार सियासी विवादों में भी रह चुके हैं. 2009 में कांग्रेस के जिला मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को पीटते हुए उनका वीडियो वायरल हुआ था, जिसके बाद मंत्री पद से हटाए गए थे.

हाल ही में अकोला में सत्तार के निजी सचिव की ओर से एक टीम बनाकर बीज कारोबारियों के यहां छापा मारा गया था. रेड के बाद टीम ने रिश्वत की भी मांग की थी. विवाद बढ़ने पर सत्तार ने इससे खुद को अलग कर लिया.

इसके अलावा विदर्भ और नासिक में किसानों की नाराजगी भी चरम पर है, जिस वजह से सत्तार की परफॉर्मेंस रिपोर्ट पुअर बताई जा रही है.

संजय राठौड़- फायरब्रांड नेता संजय राठौड़ के पास वर्तमान में खाद्य एवं औषधि विभाग है. राठौड़ ने राजनीतिक करियर की शुरुआत शिवसेना से ही की थी. 2004 में पहली बार विधायकी जीते और इसके बाद से कभी चुनाव नहीं हारे. विदर्भ के बंजारा समुदाय में राठौड़ की मजबूत पकड़ है. इस समुदाय की आबादी महाराष्ट्र में करीब 10% के आसपास है. राठौड़ फडणवीस और उद्धव सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं. फडणवीस सरकार के दौरान शिंदे से उनका विवाद सियासी गलियारों में खूब सुर्खियां बटोर चुका है.

राठौड़ का नाम टिकटॉक स्टार पूजा चौहान सुसाइड केस में भी आया था. बीजेपी ने इस मामले में खूब हंगामा भी किया था. लेकिन राठौड़ के मंत्री बनने के बाद इस मसले पर बैकफुट पर चली गई थी. राठौड़ के खिलाफ दवा विक्रेताओं ने हाल ही में सामूहिक शिकायत की थी. विक्रेताओं का कहना था कि राठौड़ का कार्यालय भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है. दवा विक्रेताओं के संगठन ने महाराष्ट्र में हड़ताल की भी धमकी दी थी.

संगठन का कहना था कि सरकार की ओर से  रकम की मांग की जाती है और नहीं देने पर लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है.

तानाजी सावंत- ठाकरे परिवार के धुर-विरोधी तानाजी सावंत की कुर्सी भी खतरे में है. शिंदे के बाद सावंत ने सरकार गिराने में बड़ी भूमिका निभाई थी. सावंत के पास शिंदे सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय है. सावंत का नाम भी उन 16 विधायकों की सूची में शामिल है, जिनकी सदस्यता रद्द का मामला विधानसभा स्पीकर के पास है. नेतागिरी में आने से पहले सावंत चीनी कारखानों के व्यवसाय में शामिल थे.

सावंत ने राजनीतिक करियर की शुरुआत शरद पवार की पार्टी एनसीपी से शुरू की थी, लेकिन पवार से अनबन के बाद उन्होंने 2015 में शिवसेना ज्वॉइन कर ली. उन्हें शिवसेना ने उपनेता और संपर्क प्रमुख बनाया. 2016 में शिवसेना के टिकट से वे विधानपरिषद के लिए चुने गए. 2019 में उन्होंने औरंगाबाद की भूम परांडा सीट से विधायकी का चुनाव लड़ने मैदान में उतरे. उन्होंने एनसीपी के कद्दावर नेता राहुल मोठे को चुनाव हराया.

उद्धव की महाविकास अघाड़ी सरकार में तानाजी को मंत्री नहीं बनाया गया था. मंत्री पद की महत्वाकांक्षा की वजह से ही उन्होंने शिंदे का साथ दिया था. सावंत की परफॉर्मेंस रिपोर्ट बहुत ही खराब बताई गई है. रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने जन स्वास्थ्य के सुधार में कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया है. इसके अलावा, प्रत्येक जिले में खुद निजी सचिव भी नियुक्त कर लिया.

संदीपान भुमरे- शिवसेना में बगावत के समय विधायकों को एकजुट करने वाले संदीपान भुमरे की परफॉर्मेंस भी खराब है. भुमरे के पास रोजगार गारंटी और बागवानी विभाग का प्रभार है. भुमरे का नाम भी 16 विधायकों की सूची में है. भुमरे ने चीनी मील कर्मचारी यूनियन के नेता से अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत की. 1992 में औरंगाबाद के पैठन में पंचायत समिति के उपाध्यक्ष बने. छगन भुजबल के शिवसेना से बगावत के बाद 1995 में उन्हें पैठन से उम्मीदवार बनाया गया.

1995, 1999 और 2004 में लगातार तीन चुनावों में उन्होंने इस सीट से जीत दर्ज की. 2009 के चुनाव में भुमरे हारे तो उन्हें शिवसेना का उपनेता बनाया गया. 2019 में उन्हें उद्धव सरकार में मंत्री बनाया गया. भुमरे पर उद्यानिकी योजनाओं का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन नहीं करने और अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग में हस्तक्षेप का आरोप है.

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