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होलाष्टक में क्यों नहीं किए जाते शुभ-मांगलिक कार्य? जानें आखिर क्या है वजह

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
06/03/25
in कला संस्कृति, धर्म दर्शन
होलाष्टक में क्यों नहीं किए जाते शुभ-मांगलिक कार्य? जानें आखिर क्या है वजह
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नई दिल्ली। देशभर में होली के पर्व की तैयारियां चल रही हैं. होलिका दहन से 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है. शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा गया है. इस साल होलाष्टक 7 मार्च से शुरू होने जा रहा है. होलाष्टक पर शुभ काम बंद हो जाते हैं. आइए जानते हैं कि आखिरी होलाष्टक का महत्व क्या है और इसमें शुभ कार्यों क्यों वर्जित होते हैं.

होलाष्टक की पौराणिक मान्यता

सनातन परंपरा की मान्यता के अनुसार, होली के पहले आठ दिनों यानी अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक विष्णु भक्त प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थीं. प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को ही हिरण्यकश्यप ने बंदी बनाया था. उसे जान से मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी गईं. यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई. कहते हैं कि प्रह्लाद को मिली यातनाओं के बाद से ही होलाष्टक को मनाने की चलन बन गया.

प्रह्लाद को जलाने के लिए होलिका उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई. लेकिन देवकृपा से वह स्वयं जल मरी, प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ. तभी से भक्त पर आए इस संकट के कारण इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है. होलाष्टक की अवधि में शुभ व मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं.

होलाष्टक में न करें ये काम

  1. इस दौरान किसी भी तरह का कोई भी मांगलिक काम, जैसे शादी, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, या कोई नया व्यवसाय शुरू करना वर्जित है.
  2. होलाष्टक काल में नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार, इत्यादि शुभ संस्कार भी नहीं करने चाहिए.
  3. इस दौरान किसी भी तरह का यज्ञ, हवन इत्यादि भी न करें.
  4. इस दौरान नवविवाहित लड़कियों को अपने मायके में ही रहने की सलाह दी जाती है.

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