नई दिल्ली: राजस्थान में कांग्रेस के करीब 100 उम्मीदवारों की पहली सूची कभी भी जारी हो सकती है. जयपुर से लेकर दिल्ली तक दावेदारों की धड़कनें तेज है. इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के एक बयान ने सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है. गहलोत ने ऑपरेशन लोटस का जिक्र करते हुए 101 विधायकों के पक्ष में बयान दिए.
पत्रकारों से बात करते हुए अशोक गहलोत ने 10 करोड़ का राग फिर से छेड़ा है. गहलोत ने कहा कि जब 2020 में राजस्थान में सरकार गिराने की साजिश चल रही थी, तब निर्दलीय विधायकों को 10-10 करोड़ रुपए का ऑफर दिया गया था. विधायकों ने उसे लेने से मना कर दिया.
गहलोत ने यह भी कहा कि अगर वे ले लेते, तो कौन क्या कर लेता? जिन विधायकों ने पैसे लिए, उनसे कौन पूछने जा रहा है? जानकारों का मानना है कि गहलोत का यह बयान प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा है. गहलोत निर्दलीय और बीएसपी से आए विधायकों को कांग्रेस से टिकट दिलाने की पैरवी में जुटे हैं. पिछले 2 दिनों में कई निर्दलीय विधायकों ने गहलोत से मुलाकात की है.
पहले जानिए 10 करोड़ का मामला क्या है?
राजस्थान 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 100, बीजेपी को 73, बीएसपी को 6, आरएलपी को 3, सीपीएम-बीटीपी को 2-2 और आरएलडी को 1 सीटों पर जीत मिली. 13 निर्दलीय भी जीतने में कामयाब रहे, जिसमें से 11 कांग्रेस के बागी थे.
चुनाव के बाद कांग्रेस ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी. उनके करीबी दावेदार सचिन पायलट को उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली, लेकिन यह जोड़ी ज्यादा दिनों तक नहीं चली. जून 2020 में सचिन पायलट ने बगावत का बिगुल फूंक दिया.
पायलट अपने 25 विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर चले गए, जिसके बाद सरकार खतरे में आ गई. गहलोत ने सचिन पायलट के मानेसर जाने को बीजेपी का साजिश बताया और पूरे घटना को ऑपरेशन लोटस से जोड़ा. गहलोत ने कहा कि विधायकों को पैसे के बल पर ले जाया गया है.
पायलट के प्लान को फेल करने के लिए गहलोत ने बीएसपी, सीपीएम, बीटीपी और निर्दलीय विधायकों को अपने साथ जोड़ा. सभी विधायकों को मिलाकर गहलोत 101 का आंकड़ा पार करने में सफल रहे, जिसके बाद सरकार नहीं गिरी. इधर, कांग्रेस हाईकमान सचिन पायलट को भी मनाने में कामयाब रहा.
पूरे प्रकरण में 10 करोड़ रुपए की गूंज रही. गहलोत के मुताबिक बीजेपी के बड़े नेताओं ने सरकार गिराने के लिए विधायकों को 10-10 करोड़ रुपए का ऑफर किया. कुछ विधायकों ने पैसे भी लिए.
एक कार्यक्रम में गहलोत ने कहा था कि बीजेपी से हमारे कुछ विधायकों को 10-10 करोड़ रुपये मिले. मैंने उन विधायकों से कहा है कि उसके पैसे वापस कर दें. अगर किसी ने पैसे खर्च कर दिए हैं, तो उसे मैं दे दूंगा या कांग्रेस हाईकमान से दिलवा दूंगा.
2 दर्जन विधायकों के टिकट पर संकट
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक करीब 2 दर्जन विधायकों के टिकट पर खतरा बरकरार है. इनमें 4 दिग्गज मंत्री भी है. कांग्रेस हाईकमान ने कर्नाटक चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाली एक कंपनी से 200 सीटों का सर्वे कराया है. कंपनी ने हर सीट पर 3 नामों का पैनल कांग्रेस हाईकमान को सौंपा है. इस सर्वे में सबसे मजबूत दावेदार के नाम हरा तो सबसे कमजोर दावेदार के नाम लाल अक्षरों में लिखा गया है. क्षेत्रीय समीकरण का भी जिक्र सर्वे में किया गया है.
सबसे ज्यादा संकट निर्दलीय और बीएसपी से आए विधायकों पर है. अशोक गहलोत निर्दलीय विधायकों के टिकट काटे जाने के खिलाफ हैं. गहलोत का तर्क है कि इन सबने सरकार बचाई है. ऐसे में अगर उनका टिकट कटता है, तो गलत मैसेज जाएगा.
निर्दलीय विधायकों के टिकट पर पेंच, ये वजहें…
- सचिन पायलट खेमा का विरोध- 2018 में संयम लोढ़ा, आलोक बेनीवाल, कांति प्रसाद मीणा, खुशवीर सिंह जोजावर, बलजीत यादव, महादेव सिंह खंडेला, रमिला खड़िया, रामुकमार गौड़, रामकेश मीणाा, लक्ष्मण मीणा, ओम प्रकाश हुडला और सुरेश टाक निर्दलीय जीते थे.
- सुरेश टाक और ओम प्रकाश हुडला बीजेपी से बागी होकर चुनाव जीते थे. बाकी के 11 कांग्रेस के बागी थे. कांग्रेस के 11 बागी विधायक उन सीटों से जीतकर आए थे, जहां पार्टी ने सचिन पायलट के करीबियों को टिकट दिया था. पायलट खेमा का आरोप था कि यह सभी अशोक गहलोत के कहने पर चुनाव मैदान में उतरे थे. पायलट इस बार भी अपने समर्थकों के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे हैं.
- पायलट गुट शाहपुरा, श्रीगंगानगर और बेहरोर किसी भी स्थिति में छोड़ने को तैयार नहीं है. शाहपुरा और बेहरोर में कांग्रेस उम्मीदवार सिर्फ 3 हजार वोट से चुनाव हारे थे. कांग्रेस के भीतर ओम प्रकाश हुडला का भी विरोध हो रहा है. हुडला के खिलाफ दावेदारों ने दिल्ली में डेरा भी डाल रखा है. इन नेताओं का कहना है कि बाहरी हुडला को टिकट देने से संगठन कमजोर होगा.
- डमी कैंडिडेट की चाहत भारी- सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि अधिकांश विधायक फिर से निर्दलीय लड़ना चाहते हैं. इन विधायकों की मांग है कि उनके सामने कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव लड़े, लेकिन डमी के तौर पर. निर्दलीय विधायक बलजीत यादव ने तो खुद की पार्टी भी बना ली है. बलजीत बेहरोर से विधायक हैं और अशोक गहलोत के काफी करीबी माने जाते हैं.
- कांग्रेस सर्वे में मजूबत निर्दलीय को टिकट दे सकती है, लेकिन पहली शर्त पार्टी ज्वॉइन करने की ही है. वहीं कुछ निर्दलीय उम्मीदवार अपने बेटे के लिए ही टिकट मांग रहे हैं. इनमें महादेव खंडेला का नाम प्रमुख हैं. खंडेला अपने प्रधान बेटे के लिए टिकट मांग रहे हैं.
- सचिन पायलट कैंप के सुभाष मील इसका विरोध कर रहे हैं. मील की रैली में उमड़ रही भीड़ से कांग्रेस को अपना समीकरण गड़बड़ाने का डर है.
युवा कांग्रेस, छात्र कांग्रेस और भारत यात्री को भी मिलेगा तरजीह?
कांग्रेस के टिकट बंटवारे में युवा कांग्रेस, छात्र कांग्रेस और भारत जोड़ो यात्री को भी तरजीह मिलने की चर्चा है. कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर रंधावा ने दावा किया था कि पार्टी इस बार युवा और महिलाओं को भी ज्यादा तरजीह देगी.
जिन विधायकों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है, उन सीटों पर नए चेहरे को मौका देने की बात चल रही है.
इतना ही नहीं, कई बड़े दिग्गज अपने-अपने बेटे को टिकट दिलाने की भी जुगत में लगे हैं. मंत्री गोविंद राम मेघवाल ने तो अपने परिवार के लोगों के लिए सार्वजनिक तौर पर टिकट की मांग कर चुके हैं. मंत्री जाहिदा खान भी अपनी बेटी के लिए टिकट की मांग कर चुकी हैं.
टिकट बंटवारे के लिए राजस्थान में कांग्रेस ने किया है प्रयोग
कांग्रेस ने पहली बार राजस्थान में टिकट बंटवारे के लिए नया प्रयोग किया है. पार्टी ने सभी दावेदारों से ब्लॉक स्तर पर आवेदन करने के लिए कहा था. इसके बाद जिला स्तर के नेताओं ने नामों की स्क्रूटनी की.
जिला संगठन ने संभावित दावेदारों की सूची प्रदेश कांग्रेस कमेटी को भेजी थी. जिला स्तर पर नामों की स्क्रूटनी में राष्ट्रीय संगठन से भेजे गए नेता भी शामिल थे. पहले टिकट की घोषणा सितंबर में करने की बात कही गई थी, लेकिन पैनल नहीं तय होने की वजह से नाम टलते गए.
कांग्रेस में कैसे बांटा जाता है विधायकी का टिकट?
कांग्रेस में टिकट तय करने की 3 मुख्य प्रक्रिया है. इसके तहत सबसे पहले प्रदेश संगठन जिला स्तर से इनपुट लेकर नामों का एक पैनल तैयार करती है. इसके बाद कांग्रेस हाईकमान स्क्रीनिंग कमेटी का गठन करती है.
स्क्रीनिंग कमेटी सभी दावेदारों की एक सूची तैयार करती है. इसके बाद एक-एक सीट पर बड़े नेताओं के साथ चर्चा किया जाता है. जिन नामों पर ज्यादा विवाद नहीं रहता है, उसे सिंगल पैनल के साथ आगे बढ़ा दिया जाता है.
इसके बाद कांग्रेस चुनाव समिति की बैठक होती है. यह टिकट बंटवारे के लिए सबसे अधिकृत इकाई है. कांग्रेस चुनाव समिति की मुहर लगने के बाद उम्मीदवारों के नाम का ऐलान पार्टी के आधिकारिक हैंडल से किया जाता है.
कांग्रेस चुनाव समिति जिन नामों पर मुहर लगाती है, उन लोगों को ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ए और बी फॉर्म दे सकते हैं. इसी फॉर्म के आधार पर उम्मीदवारों को चुनाव आयोग से पार्टी का अधिकृत चुनाव चिह्न मिलता है.
सर्वे ने बढ़ा रखी है पार्टी की मुश्किलें, इसलिए भी देरी
ओपिनियन पोल के सर्वे ने राजस्थान में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रखी है. एबीपी-सी वोटर सर्वे के मुताबिक बीजेपी को 127-137 सीटें मिल सकती हैं. वहीं कांग्रेस के खाते में 59-69 सीटें जाने का अनुमान व्यक्त किया गया है.
राजस्थान में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं, जिसमें सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी को 101 सीटों की जरूरत होती है.
सर्वे में शामिल 53 प्रतिशत लोगों ने सी-वोटर को बताया कि राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के झगड़े की वजह से चुनाव में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. वोट प्रतिशत में भी इस बार काफी फासला है.
सर्वे के मुताबिक कांग्रेस को 42%, बीजेपी को 47% और अन्य को 11 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं. राहुल गांधी भी राजस्थान में करीबी मुकाबले की बात कह चुके हैं. माना जा रहा है कि टिकट बंटवारे में हो रही देरी की मुख्य वजह यही है.
कांग्रेस उम्मीदवारों के सहारे करीबी मुकाबले वाली सीटों पर बढ़त लेने की रणनीति पर काम कर रही है. कांग्रेस भी बीजेपी की तरह राष्ट्रीय नेताओं को चुनाव में उतारने की तैयारी में है.
चुनाव आयोग के मुताबिक राजस्थान की सभी 200 विधानसभा सीट पर 25 नवंबर को मतदान होगा. मतगणना तीन दिसंबर को होगी. राज्य में उम्मीदवारों के नामांकन की प्रक्रिया 30 अक्टूबर से शुरू होगी.
नामांकन की आखिरी तारीख 6 नवंबर है. 9 नवंबर तक उम्मीदवार अपना नाम वापस ले सकेंगे.