नई दिल्ली। ईरान ने शनिवार आधी रात में 300 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन के जरिए इजरायल पर हमला कर दिया. इजरायल का दावा है कि उसकी रक्षा प्रणाली आयरन डोम ने सभी मिसाइलों को नष्ट कर दिया. वहीं अमेरिका और ब्रिटेन ने भी कुछ ईरानी मिसाइलों को मार गिराया. ईरान के इस कदम के बाद दुनिया में जंग के विभिन्न मोर्चे खुल गए हैं और वैश्विक जगत जंग के इस दौर में अलग-अलग हिस्सों में बंटता दिख रहा है.
विश्व में जंग के चार मोर्चे खुल गए हैं जिनमें रूस और यूक्रेन में पहले से ही जंग चल रही है, तो वहीं इजरायल एक तरफ हमास से लड़ रहा है तो दूसरी तरफ अब ईरान सामने है. वहीं यमन में सऊदी अरब की ईरान से अलग लड़ाई है. युद्ध के इस दौर में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि जिस शांति की स्थापना के लिए वैश्विक निकाय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की स्थापना हुई थी, वो इस युद्ध के दौर में क्या कर रहा है, और उसकी भूमिका कितनी असरदारक रही है? इस सवाल का जवाब समझने से पहले यह जान लेते हैं कि विश्व में जंग के चार मोर्चे कैसे खुल गए हैं.
जंग के चार मोर्चे
1-रूस-यूक्रेन युद्ध: यह युद्ध फरवरी 2022 में शुरू हुआ था, जिसमें दोनों पक्षों से अभी तक हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. इस युद्ध में यूक्रेन के कई शहर तबाह हो गए वहीं रूस को भी इस दौरान काफी नुकसान का सामना करना पड़ा. इस युद्ध ने लाखों लोगों की जानें ली हैं और दुनियाभर की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है. यूक्रेन में लाखों लोगों को बेघर भी होना पड़ा और शहर-के-शहर तबाह कर दिए गए लेकिन युद्ध अभी तक जारी है.
दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच तनाव संबंधों में तनाव 2021 से आना शुरू हो गए थे जिसके बाद साफ हो गया था कि पुतिन कभी भी यूक्रेन पर सैन्य आक्रमण कर सकते हैं. फरवरी 2022 में संकट गहरा गया जब रूस-यूक्रेन की वार्ता विफल हो गई. पुतिन ने 21 फरवरी को यूक्रेन के 2 राज्यों डोनेट्स्क और लुहांस्क को आजाद घोषित कर दिया और दोनों देशों में इससे तनातनी बढ़ गई. यूक्रेन ने तो विरोध किया और उसके साथ में ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, अमेरिका समेत कई देश आ गए. परिणाम यह हुआ कि दोनों देशों में जंग छिड़ गई.
2- इजरायल-हमास युद्ध: इजरायल और हमास के बीच जंग 7 अक्टूबर, 2023 को उस समय शुरू हुई थी जब हमास ने इजरायल के अंदर घुसकर सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था और 200 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया. इसके बाद इजरायल ने हमास के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया जो अभी तक जारी है. अभी तक इस युद्ध में हजारों लोगों की मौत हो गई है जबकि गाजा पट्टी में सैकड़ों इमारतें जमीदोंज हो गईं.
3- सऊदी बनाम ईरान: सऊदी अरब और ईरान के बीच विवाद की असली वजह इस्लामी संप्रदायवाद है. ईरान शिया बहुल देश है, जबकि सऊदी अरब को सुन्नी इस्लाम का धार्मिक घर माना जाता है. सांप्रदायिक प्रतिद्वंद्विता बाद में दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय आधिपत्य के लिए संघर्ष में बदल गया. एक तरफ जहां सऊदी अरब के पक्ष में अमेरिका, ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश हैं जो वहीं ईरान को चीन और रूस लगातार समर्थन करता रहा है. 2016 में सऊदी अरब ने शिया धर्मगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया था जिसके बाद दोनों देशों ने अपने राजनयिक रिश्ते खत्म कर दिए थे. फांसी दिए जाने के बाद से सऊदी और और ईरान के बीच भारी तनाव रहा है. सऊदी अरब अक्सर आरोप लगाता रहा है कि हूती विद्रोही उस पर ईरान की मदद से हमले करते रहे हैं.
4- इजरायल-ईरान युद्ध: ईरान ने शनिवार आधी रात को इजरायल पर क्रूज और 300 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलों के अलावा ड्रोन से बड़े पैमाने पर हमला कर दिया. सीरिया में ईरानी वाणिज्य दूतावास भवन पर इजरायली हमले में तेहरान के दो शीर्ष कमांडरों के मारे जाने के के कुछ हफ्ते बाद यह जवाबी हमला हुआ है. ईरान के इस हमले के बाद अब ईरान और इजरायल में जंग का एक नया मोर्चा खुल गया.
सिक्योरिटी काउंसिल का काम क्या है
एक मोर्चे पर जंग थमती नहीं है कि दूसरा मोर्चा खुल जाता है. जंग के इस दौर में सवाल उठता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या कर रहा है? यूएन सिक्योरिटी काउंसिल भी शांति बनाने में मदद करती है. ये डिप्लोमेटिक वार्ताएं रखती हैं, जिसमें दो देश एक साथ आकर बातचीत कर सकें. इसके पास नेगोशिएशन के अलावा पाबंदियां लगाने का भी पावर है. पीसकीपिंग मिशन के दौरान ये संस्था फोर्स का इस्तेमाल भी कर सकती है, लेकिन इन सबके बावजूद भी ऐसा लग रहा है कि यूएन कुछ करने की हालत में नहीं है.
यूएनएसी की भूमिका पर सवाल
ईरान द्वारा इजरायल पर हमले के बाद यूएनएसी ने एक आपात बैठक बुलाई जो करीब डेढ़ घंटे तक चली लेकिन शांति की अपील करने के अलावा इस बैठक से कुछ खास नहीं निकल सका. इसी तरह की हालत इजरायल-हमास युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध के समय भी दिखी थी जब यूएन एकदम लाचार दिखा, परिणाम ये है कि युद्ध अभी तक चालू है. इसी तरह इराक-ईरान युद्ध के दौरान भी यूएनएसी कुछ खास नहीं कर सका था.
भारत ने भी उठाए सवाल
रूस यूक्रेन यूएन की भूमिका को लेकर भारत मुखर रहा है. इसी साल फरवरी में भारत ने सुधारों की मांग करते हुए कहा था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में आवश्यक सुधारों की तत्काल जरूरत है. भारत ने कहा कि हमें अफ्रीका सहित युवा और भावी पीढ़ियों की आवाज पर ध्यान देते हुए सुधार को आगे बढ़ाना चाहिए, जहां ऐतिहासिक अन्याय में सुधार करने की मांग और भी मजबूत हो रही है. ऐसा नहीं किया गया तो हम परिषद को गुमनामी और अप्रासंगिक होने के रास्ते पर भेज देंगे.
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा कि अधिक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने का प्रस्ताव दिया, जिसमें सुझाव दिया कि यूएनएसी के विस्तार को केवल गैर-स्थायी सदस्यों तक सीमित करने से इसकी संरचना में असमानताएं बढ़ने का खतरा होगा. उन्होंने परिषद की वैधता में सुधार के लिए इसकी संरचना में प्रतिनिधियों और समान भागीदारी की जरूरत पर जोर दिया.
वैश्विक जगत ने किया भारत का समर्थन
गौर करने वाली बात ये है कि भारत के इस प्रस्ताव को अन्य वैश्विक देशों का भी समर्थन मिला. भारत के G4 सहयोगियों- ब्राज़ील, जापान और जर्मनी ने 193 सदस्य देशों के विचारों की विविधता और बहुलता के महत्व पर जोर देते हुए नॉन परमानेंट केटेगरी में ज्यादा प्रतिनिधित्व के लिए भारत के आह्वान को दोहराया. यूनाइटेड किंगडम, जो परिषद का स्थायी सदस्य है, उसने भी ट्वीट कर भारत के सुधार सुझावों का समर्थन किया है.
कब हुआ था यूएन का गठन
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भविष्य के युद्धों को रोकने के उद्देश्य से की गई थी.25 अप्रैल 1945 को 50 सरकारें सैन फ्रांसिस्को में एक सम्मेलन के लिए मिलीं और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का मसौदा तैयार करना शुरू किया. इसको से 25 जून 1945 को अपनाया गया और 24 अक्टूबर 1945 को प्रभावी हुआ . चार्टर के अनुसार, संगठन के उद्देश्यों में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना, मानवाधिकारों की रक्षा करना, मानवीय सहायता प्रदान करना, सतत विकास को बढ़ावा देना और अंतर्राष्ट्रीय कानून को बनाए रखना शामिल है.
इसकी स्थापना के समय, संयुक्त राष्ट्र में 51 सदस्य देश थे. 2011 में दक्षिण सूडान के जुड़ने के साथ ही अब इसके सदस्यों की संख्या 193 हो गई है. यह दुनिया के लगभग सभी संप्रभु राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है. यूएन के 6 प्रमुख अंगों में से एक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) भी है जिसमें अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन, 5 देश स्थायी सदस्य हैं. इन देशों के पास वीटो पावर रहती है और आरोप लगता रहा है कि इन देशों की वजह से यूएन या यूएनएसी में जरूरी सुधार नहीं हो पाते हैं, क्योंकि अगर एक भी सदस्य कोई प्रस्ताव पर वीटो कर देता है तो वह पारित नहीं हो पाता है.