नई दिल्ली l पति-पत्नी का रिश्ता बहुत कोमल और पवित्र होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह विश्वास की पक्की डोर से बंधा होता है. कहते हैं कि पत्नी, पति का आधा अंग होती है. इसलिए इन्हें आर्धांगिनी कहा जाता है. धार्मिक ग्रथों में महिला को पुरुष का वामांगी कहा गया है. अक्सर आपने सुना होगा कि पत्नी को पुरुष की बाईं ओर बैठना चाहिए. शादी में भी पत्नी को बांई ओर बैठाया जाता है. आखिर ऐसा क्यों होता है? इसे जानते हैं.
स्त्री प्रधान कार्य में पत्नी रहती है बाईं ओर
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा जी के दाएं कंधे से पुरुष और बाएं कंधे से स्त्री की उत्पत्ति हुई. इस कारण से ही महिला को वामांगी कहा गया है. साथ भी शादी के बाद आमतौर पर महिलाएं पति के बाईं ओर बैठती हैं, जबकि किसी विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान पत्नी को पति के दाईं तरफ बैठना होता है. वहीं जब स्त्री प्रधान धार्मिक कार्य किए जाते हैं तो पत्नी पति के बाईं ओर भी बैठती है. हिंदू धर्म ग्रंथ के मुताबिक सिंदूरदान, भोजन, शयन और सेवा में के दौरान पत्नी को अपने पति के बाईं ओर रहना चाहिए.
क्या कहता है ज्योतिष शास्त्र
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक महिला का बायां और पुरुष का दाहिना हिस्सा शुभ होता है. इसके अलावा शरीर विज्ञान के अनुसार इंसान के मस्तिष्क का बायां हिस्सा रचनात्मक होता है. साथ ही दायां हिस्सा कर्म प्रधान होता है. महिलाओं को पुरुष की बाईं ओर बैठने का एक कारण यह भी है.
इन कार्यों के दौरान पत्नी रहती है दाईं तरफ
शास्त्रों के अनुसार कन्यादान, विवाह, पूजा-पाठ और यज्ञ के दौरान पत्नी को पति के दाईं ओर बैठना शुभ है. वहीं विदाई, आशीर्वाद लेते समय, सहवास के दौरान पत्नी को अपने पति की बाईं ओर रहना शुभ माना गया है.
खबर इनपुट एजेंसी से