शिवरात्रि का दिन शिव पूजन के लिए अत्यंत विशेष होता है. इस दिन का हर क्षण शिव कृपा से भरा होता है. वैसे तो ज्यादातर लोग प्रातःकाल पूजा करते हैं. लेकिन शिवरात्रि पर रात्रि की पूजा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है. उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है चार पहर की पूजा. यह पूजा संध्या से शुरू करके ब्रह्ममुहूर्त तक की जाती है. इस पूजा में रात्रि का सम्पूर्ण प्रयोग किया जाता है. यह पूजा मुख्यतः जीवन के चारों अंगों को नियंत्रित करती है. इससे धर्म अर्थ काम और मोक्ष, सब प्राप्त हो जाते हैं. हर पहर की पूजा का विशेष विधान है, जिसका पालन करने से विशेष लाभ होता है.
पहले पहर की पूजा
यह पूजा आम तौर पर संध्याकाळ को की जाती है. यह लगभग प्रदोष काल में सायं 06.00 से 09.00 तक की जाती है. इस पूजा में शिव जी को दूध अर्पित करते हैं. साथ ही जल की धारा से उनका अभिषेक किया जाता है. इस पहर की पूजा में शिव मंत्र का जप कर सकते हैं. चाहें तो शिव स्तुति भी की जा सकती है. इस पूजा से व्यक्ति को शिव कृपा अवश्य प्राप्त होती है.
दूसरे पहर की पूजा
यह पूजा रात्रि में शुरू होती है. यह लगभग रात्रि 09.00 से 12.00 के बीच की जाती है. इस पूजा में शिव जी को दही अर्पित की जाती है. साथ ही जल धारा से उनका अभिषेक किया जाता है. दूसरे पहर की पूजा में शिव मंत्र का अवश्य जप करें. इस पूजा से व्यक्ति को धन और समृद्धि मिलती है.
तीसरे पहर की पूजा
यह पूजा मध्य रात्रि में होती है. यह लगभग रात्रि 12.00 से 03.00 के बीच की जाती है. इस पूजा में शिव जी को घी अर्पित करना चाहिए. इसके बाद जल धारा से उनका अभिषेक करना चाहिए. इस पहर में शिव स्तुति करना विशेष फलदायी होता है. शिव जी का ध्यान भी इस पहर में लाभकारी होता है. इस पूजा से व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है.
चौथे पहर की पूजा
यह पूजा लगभग भोर के समय में होती है. यह देर रात 03.00 से प्रातः 06.00 के बीच की जाती है. इस पूजा में शिव जी को शहद अर्पित करना चाहिए. इसके बाद जल धारा से उनका अभिषेक होना चाहिए. इस पहर में शिव मंत्र का जप और स्तुति दोनों फलदायी होती है. इस पूजा से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी हो जाता है.