नई दिल्ली: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर तारीखों की घोषणा बस होने ही वाली है. चुनाव आयोग ने अपनी तैयारियां लगभग पूरी कर ली है. वहीं, राजनीतिक पार्टियों ने भी सारी सियासी गोटियां सेट कर रखी हैं. इस बीच सत्तारुढ़ भाजपा एक अहम सवाल से जूझ रही है कि उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए आगे क्या प्लान किया जाए?
फडणवीस पर आरएसएस का भरोसा, पीएम मोदी के भी करीबी
इस बात पर शायद ही कोई विवाद है कि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस मौजूदा समय में भाजपा के सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं. उन्हें एक ऐसे युवा नेता के रूप में देखा जाता है जो काम करके दिखाते हैं. माना जाता है कि भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उन पर भरोसा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें पसंद करते हैं. इसके बावजूद भाजपा में फिलहाल देवेंद्र फडणवीस की आगे की भूमिका को लेकर असमंजस बढ़ रहा है.
चुनावों के रिजल्ट ने फडणवीस और भाजपा दोनों को उलझाया
फडणवीस को लेकर जो बात और भी ज्यादा उलझी है, वह है उन पर लगाए गए गलत दांवों की एक पूरी सीरीज. इसके कारण महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को बहुमत नहीं मिला और 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा 2019 में महाराष्ट्र में मिले 23 सीटों से गिरकर नौ सीटों पर आ गई. इन सबके बीच फडणवीस के समर्थकों का कहना है कि उनकी इस स्थिति के पीछे भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का हाथ है, जिसने उन्हें सीएम पद देने से मना कर दिया और उपमुख्यमंत्री बना दिया.
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए भी फडणवीस की चर्चा
अब जबकि महायुति गठबंधन खुद शिवसेना और एनसीपी गुटों के टूटने के बाद कमजोर हो गया है तो फिर से चर्चा शुरू हो गई है कि फडणवीस को भाजपा द्वारा केंद्र में लाया जाना चाहिए. कुछ लोगों ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए देवेंद्र फडणवीस का नाम सुझाया है. इस महत्वपूर्ण पद के लिए लंबे समय से नए नाम का इंतजार किया जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक, मुख्य रूप से आरएसएस खेमे से इस तरह की आवाज, सिफारिश और सुझाव की शक्ल में आ रही हैं.
महायुति जीती तो दोबारा डिप्टी सीएम ही बनेंगे फडणवीस?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र में इन दिनों यह चर्चा जोरों पर है कि अगर महायुति विधानसभा चुनाव जीतती है तो देवेंद्र फडणवीस को फिर से मुख्यमंत्री पद से वंचित किया जा सकता है. एक भरोसेमंद सूत्र के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा आलाकमान की ओर से शिवसेना नेता और सीएम एकनाथ शिंदे को आश्वासन दिया गया है कि अगर उनकी पार्टी राज्य विधानसभा में कुल 288 में से 40 से ज़्यादा सीटें जीतती है, तो भी वह पद पर बने रहेंगे.
आरएसएस की ‘सलाह’ से और बढ़ी भाजपा की उलझन
वहीं, दूसरी तरफ के लोगों का तर्क है कि देवेंद्र फडणवीस को हटाने से महाराष्ट्र चुनावों से पहले गलत संकेत जाएगा, क्योंकि पूरे राज्य में उनकी स्वीकार्यता है. उनके आलोचक इससे भी आगे बढ़कर यह देखते हैं कि अगर महाराष्ट्र चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा, तो फडणवीस को किसी भी तरह के विरोध से बचाने के लिए यह एक गेम प्लान भी है. इसके पीछे साफ तौर पर आरएसएस का नाम लिया जाता है. महाराष्ट्र चुनावों के लिए आरएसएस ने सह सरकार्यवाह अतुल लिमये को समन्वयक के रूप में नियुक्त किया है. संयोग से, उन्होंने भाजपा की राज्य इकाई को सलाह दी हैं कि विधानसभा चुनावों में एक चेहरे के बजाय ‘सामूहिक नेतृत्व’ पेश किया जाए.
फडणवीस के आलोचकों की मजबूत दलीलें क्या हैं?
कुछ लोगों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में फडणवीस के प्रदर्शन की आलोचना होनी चाहिए. उनका कहना है कि पार्टी के उम्मीदवारों के चयन और चुनाव रणनीति में उनकी अहम भूमिका रही है. इसलिए, इन नेताओं का कहना है कि उन्हें इतनी जल्दी राष्ट्रीय स्तर पर ‘पुरस्कृत’ नहीं किया जाना चाहिए. यह समूह फडणवीस पर पार्टी की कीमत पर राज्य के भाजपा नेताओं को दरकिनार करने का भी आरोप लगाता है. एकनाथ खडसे जहां भाजपा छोड़कर एनसीपी में शामिल हो गए, वहीं पंकजा मुंडे ने ‘दरकिनार किए जाने’ पर कई बार खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की, जबकि पूर्व सांसद पूनम महाजन लोकसभा टिकट नहीं जीत पाईं.
ब्राह्मण फडणवीस पर मराठा आरक्षण आंदोलन बढ़ाने का आरोप
सूत्रों ने कहा कि ब्राह्मण समुदाय के देवेंद्र फडणवीस पर मराठा आरक्षण आंदोलन को हवा देने का भी आरोप है, क्योंकि प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने गोलीबारी की. गृह विभाग फडणवीस के पास है. इसके उलट, सरकार में उनके समकक्ष शिवसेना प्रमुख और सीएम एकनाथ शिंदे और एनसीपी प्रमुख और डिप्टी-सीएम अजित पवार, दोनों ही मराठा हैं. उन्हें समुदाय के गुस्से से काफी हद तक बचा लिया गया है. भाजपा के एक नेता ने कहा, “ऐसे समय में जब राज्य में चुनाव होने वाले हैं, उन्हें भाजपा या सरकार की कमान सौंपने से मराठा समुदाय को गलत संदेश देगा.”
देवेंद्र फडणवीस को केंद्र में भेजा गया, तो महाराष्ट्र में कौन?
इसके बाद भाजपा के सामने सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो जाता है कि अगर देवेंद्र फडणवीस को केंद्र में भेजा जाता है, तो महाराष्ट्र में उनकी जगह कोई और व्यक्ति कैसे आएगा. भाजपा के ज्यादातर नेताओं ने अलग-अलग मौकों पर साफ माना है कि भाजपा को राज्य भर में उनके जैसा “स्वीकार्यता और विश्वसनीयता” वाला कोई व्यक्ति नहीं मिल पाएगा.
एक दूर की संभावना भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े की है. उन्हें भी फडणवीस ने दरकिनार कर दिया था, लेकिन बाद में केंद्रीय भाजपा ने उन्हें आगे बढ़ाया. वह एक प्रमुख ओबीसी नेता हैं. हालांकि, आरक्षण आंदोलन में मराठा ओबीसी के खिलाफ लामबंद हो गए हैं. क्योंकि उन्हें अपने आरक्षण के कोटे के कम होने का डर है.
महाराष्ट्र से अपना बेस बदलना नहीं चाहते देवेंद्र फडणवीस
इस बीच, देवेंद्र फडणवीस के करीबी नेताओं का कहना है कि वह खुद महाराष्ट्र से अपना बेस बदलने के इच्छुक नहीं हैं. महाराष्ट्र भाजपा के एक नेता ने कहा, “एक बार केंद्र में चले जाने के बाद, वह राज्य में वापस नहीं आ पाएंगे. जबकि वह महाराष्ट्र में अधिक सहज हैं. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिर से काबिज होने का उनका सपना अधूरा रह जाएगा.”
नए सहयोगियों के चलते लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन
फडणवीस के खेमे के नेताओं ने महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बारे में कहा कि जिम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के नए सहयोगियों को मिलना चाहिए. वे बताते हैं कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सेना ने केवल पांच सीटें जीतीं, और अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने केवल एक सीट जीती. इस बीच, फडणवीस के अभियान की पहली झलक यहां दिखी है.
फडणवीस को “आधुनिक अभिमन्यु” बताते हैं खास समर्थक
फडणवीस के समर्थक उन्हें “आधुनिक अभिमन्यु” के रूप में चित्रित करते हैं. महाभारत में, अभिमन्यु दुश्मन की अभेद्य रक्षा में प्रवेश करता है, लेकिन लड़ते हुए मर जाता है क्योंकि उसे बाहर निकलने का रास्ता नहीं पता होता है. फडणवीस का अभियान संकेत देता है कि वह दुश्मनों से घिरा हुआ है, और उसके अपने लोग उसके साथ नहीं खड़े हैं. सूत्रों के मुताबिक, फडणवीस का अगला कदम अपनी छवि को एक प्यारे “मोटा भाऊ (बड़े भाई)” के रूप में चमकाना होगा.