नई दिल्ली: राजनीति के शौकीन लोगों की राजधानी पर तगड़ी नजर थी और आखिरकार एक बहुप्रतीक्षित चुनाव परिणाम का दिन आ गया. बीजेपी 27 साल बाद दिल्ली विधानसभा में वापसी कर रही है. केजरीवाल की पार्टी अब विपक्ष में बैठेगी. इन सबके बीच कांग्रेस की लगातार चौथी हार ने उसे एक बार फिर हाशिए पर डाल दिया है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इस हार के बावजूद कांग्रेस बाजीगर बनकर उभर रही है. पार्टी के भीतर एक अलग तरह की संतुष्टि देखने को मिल रही है. इतना ही नहीं काउंटिंग के बीच अल्का लांबा जैसे नेताओं ने तो इसका खुला इजहार भी कर दिया. संदीप दीक्षित का भी कुछ ऐसा ही मानना है. लेकिम मुख्य बात क्या है इसे बारीकी से समझा जाना चाहिए.
पूरा वोट बैंक खिसक गया
असल में इन सबकी वजह आम आदमी पार्टी का कमजोर प्रदर्शन है. कांग्रेस थिंक टैंक का लंबे समय से मानना रहा है कि अगर उसे दिल्ली में खुद को फिर से स्थापित करना है, तो इसके लिए AAP का पतन जरूरी है. दिल्ली में कभी कांग्रेस का ही वर्चस्व था लेकिन 2013 के बाद AAP ने उसकी जगह ले ली. कांग्रेस का पूरा वोट बैंक AAP की तरफ खिसक गया और वह लगातार चुनावों में कमजोर होती गई. लेकिन अब AAP के प्रदर्शन में गिरावट ने कांग्रेस को यह उम्मीद दी है कि वह लंबे समय में खुद को फिर से स्थापित कर सकती है.
पुराने मतदाता लौट सकते हैं
दिल्ली में कांग्रेस की रणनीति भी यही रही है कि अगर AAP कमजोर होती है तो उसके पुराने मतदाता फिर से उसकी तरफ लौट सकते हैं. इसीलिए प्रचार में राहुल ने सीधे केजरीवाल को अटैक किया. हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम से विपक्षी गठबंधन INDIA के भीतर मतभेद उभर सकते हैं. कई गठबंधन दलों को लगता है कि अगर कांग्रेस और AAP एक साथ आते तो बीजेपी को हराया जा सकता था. कांग्रेस ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि AAP ने खुद गठबंधन में दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. अरविंद केजरीवाल ने पहले ही सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए थे जिससे कांग्रेस के लिए रास्ते बंद हो गए.
जीत तो बीजेपी की लेकिन विपक्ष की चिंता भी है..
बीजेपी की यह जीत उसे दिल्ली में एक राजनीतिक ताकत दे रही है. हरियाणा और महाराष्ट्र में सफल प्रदर्शन के बाद दिल्ली में जीत बीजेपी के लिए 2024 लोकसभा चुनाव के बाद की हार से उबरने में मददगार साबित हो सकती है. इससे बीजेपी अपने ‘अजेय’ होने का नैरेटिव फिर से मजबूत कर सकती है जो बिहार और पश्चिम बंगाल में विपक्ष के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. लेकिन कई एक्सपर्ट्स इस पर सहमत नहीं होंगे.
फिर क्या रहेगी दिल्ली में कांग्रेस की रणनीति
दिल्ली में कांग्रेस का वोट शेयर 2015 में 10% से भी नीचे चला गया था और 2020 में केवल 4.26% रह गया था. शुरुआती आंकड़े बताते हैं कि इस बार भी कांग्रेस ने AAP के वोट बैंक पर खास असर नहीं डाला. अब पार्टी यह विश्लेषण करेगी कि जिन सीटों पर AAP बीजेपी से हारी है, वहां उसके उम्मीदवारों ने कितने वोट हासिल किए. कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि उन्होंने AAP के खिलाफ आक्रामक प्रचार सही समय पर शुरू किया था क्योंकि जनता में AAP के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही थी. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में AAP पर हमला बोला था.
भविष्य की राजनीति और कांग्रेस की उम्मीदें भी तो होंगी..
कांग्रेस के समर्थकों का यह भी मानना है कि बीजेपी का एक स्थायी वोट बैंक है. जो 32% से 38% के बीच रहता है और वह कांग्रेस के वोट बैंक से ज्यादा ओवरलैप नहीं करता. लेकिन कांग्रेस के समर्थक AAP में शिफ्ट हो गए हैं. इसलिए अगर कांग्रेस को दिल्ली में वापस आना है तो उसे AAP को कमजोर करना ही होगा. और इस चुनाव में यही हुआ है. इससे कांग्रेस कम से कम खुद को खुश मान सकती है. अलका लांबा ने तो कह दिया कि जिसने दिल्ली को कमजोर किया वो अब कमजोर हो रहा है. संदीप दीक्षित ने भी बीजेपी की जीत मान ली.
तो क्या AAP का अस्तित्व संकट में?
एक्सपर्ट्स का तर्क यह भी है कि AAP एक आंदोलन से निकली पार्टी है जिसका कोई ठोस कैडर नहीं है. अगर वह सत्ता से बाहर होती है तो उसका टिके रहना मुश्किल हो सकता है. यह भी सही है कि मुस्लिम वोटर्स ने इस चुनाव में उसका साथ नहीं दिया लेकिन AAP के कमजोर होने पर वे वापस कांग्रेस की ओर लौट सकते हैं. फिलहाल दिल्ली की हार कांग्रेस के लिए एक झटका जरूर है लेकिन AAP के कमजोर प्रदर्शन ने उसे भविष्य के लिए उम्मीद दी है. लेकिन यह सिर्फ दिल्ली के लिए ही है.