नई दिल्ली : हर साल ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ धूमधाम से निकाली जाती है, जिसमें शामिल होने देश-दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं. इस बार भगवान जगन्नाथ की 146वीं रथयात्रा निकाली जा रही है. ओडिशा के पुरी शहर में लाखों लोगों की भीड़ पहुंच चुकी है. यह वैष्णव मंदिर श्रीहरि के पूर्ण अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है. पूरे साल इनकी पूजा मंदिर के गर्भगृह में होती है, लेकिन आषाढ़ माह में तीन किलोमीटर की अलौकिक रथ यात्रा के जरिए इन्हें गुंडिचा मंदिर लाया जाता है.
कई लोगों के मन में अक्सर सवाल होता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है और इसका क्या महत्व है. अगर आप भी यह जानना चाहते हैं तो आगे पढ़ें.
भगवान जगन्नाथ के रथ से जुड़ी ये बातें जान रह जाएंगे हैरान
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपनी मौसी के घर जाते हैं. रथ यात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से तीन दिव्य रथों पर निकाली जाती हैं. सबसे आगे बलभद्र का रथ, उनके पीछे बहन सुभद्रा और सबसे पीछे जगन्नाथ का रथ होता है. इस साल जगन्नाथ यात्रा 20 जून से शुरू होगी और इसका समापन 1 जुलाई को होगा.
क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा?
पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई. तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े. इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन ठहरे. तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है. नारद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इसका जिक्र है.
मान्यताओं के मुताबिक, मौसी के घर पर भाई-बहन के साथ भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर वह बीमार पड़ जाते हैं. उसके बाद उनका इलाज किया जाता है और फिर स्वस्थ होने के बाद ही लोगों को दर्शन देते हैं.