नई दिल्ली: सावन महीना में शिव भक्त कंधों पर कांवड़ लेकर निकलते हैं और पवित्र नदियों के जल से शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. इस साल भी 22 जुलाई से सावन महीना शुरू हो गया है. उत्तर भारत में कांवड़ यात्रा को लेकर सरकार ने जबरदस्त व्यवस्थाएं की हैं. साथ ही कांवड़ यात्रा को लेकर यात्रा मार्ग की खाने-पीने की दुकानों पर नाम लिखने को लेकर जो नया नियम जारी हुआ है, उसे लेकर विवाद भी हुआ. इसके अलावा कांवड़ यात्रा के मद्देनजर ट्रैफिक एडवाइजरी भी जारी की जा रही हैं, ताकि कांवड़ यात्रियों और आमजनों को समस्या ना हो. ऐसे में कई लोगों के मन में यह जानने की जिज्ञासा है कि हर साल सावन में बड़ी संख्या में शिव भक्त केसरिया रंग के कपड़े पहनकर कांवड़ यात्रा क्यों निकालते हैं, कांवड़ यात्रा का महत्व क्या है, इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई थी? जानिए इन सभी के जवाब.
कांवड़ यात्रा 2024 की तारीख
साल 2024 में सावन महीने में निकाली जाने वाली कांवड़ यात्रा 22 जुलाई सोमवार से शुरू हो गई है. सावन में शिव भक्त कई किलोमीटर की यात्रा करके पवित्र नदियों का जल लाते हैं और शिवलिंग का उससे अभिषेक करते हैं. मुख्य तौर पर गंगा नदी का जल लाकर शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है. सावन शिवरात्रि के दिन कांवड़िए गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं. इस साल सावन शिवरात्रि 2 अगस्त 2024 को है.
… इसलिए निकाली जाती है कांवड़ यात्रा
कांवड़ यात्रा निकालने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं. इसमें एक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने पहली बार कांवड़ यात्रा निकाली थी और वे ही पहले कांवड़िया थे. भगवान शिव के भक्त भगवान परशुराम ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल ले जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक किया था, तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.
वहीं एक अन्या कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को पीने के कारण भगवान शिव का गला जलने लगा, तब शिवजी के परम भक्त रावण ने कांवड़ से जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया. इससे शिवजी को राहत मिली थी, तब से ही शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा निकाली जाती है.