उज्जैन में पवित्र नदी शिप्रा के तट पर स्थित, महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए तीर्थ स्थलों में से एक है. मध्य प्रदेश के प्राचीन शहर उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर भस्म आरती के लिए मशहूर है. भगवान महाकालेश्वर को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए ये आरती हर रोज सुबह 4 बजे की जाती है, यहां एक ज्योतिर्लिंग मौजूद है. जो परमात्मा ज्योतिस्वरूप माना जाता है. ये ज्योतिर्लिंग देश के प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है. आइए यहां जानें क्यों है यहां कि भस्म आरती दुनियाभर में मशहूर …
भस्म आरती क्या है?
भस्म आरती एक विशेष प्रकार की आरती है जो उज्जैन में ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से लगभग दो घंटे पहले) के दौरान की जाती है. पुजारी पवित्र मंत्रों का उच्चारण करते हुए महादेव को पवित्र राख (भस्म) चढ़ाते हैं. आरती करते समय इस तरह का वातावरण होता है कि भक्तों को उनके सामने परमात्मा की उपस्थिति का एहसास होता है.
भस्म आरती का क्या महत्व है?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को काल या मृत्यु का स्वामी माना गया है. इसी वजह से ‘शव’ से ‘शिव’ नाम बना. महादेव के मुताबिक शरीर नश्वर है और इसे एक दिन भस्म की तरह राख हो जाना है और शिव के अलावा किसी का भी काल पर नियंत्रण नहीं है. भगवान शिव को पवित्र भस्म लगाया जाता है, जो भस्म लगाए हुए ध्यान करते हुए दिखाई देते हैं.
भस्म आरती को लेकर मान्यताएं…
कहा जाता है कि भस्म आरती भगवान शिव को जगाने के लिए की जाती है इसलिए आरती सुबह 4 बजे की जाती है.
वर्तमान समय में महाकाल की भस्म आरती में कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार किए गए भस्म का इस्तेमाल किया जाता है.
ऐसी मान्यता है कि सालों पहले श्मशान के भस्म से आरती होती थी लेकिन अब कंडे के बने भस्म से आरती श्रृंगार किया जाता है.
नियम के अनुसार भस्म आरती को महिलाएं नहीं देख सकती हैं. इसलिए कुछ समय के लिए उन्हें घूंघट करना पड़ता है.
आरती के दौरान पुजारी एक वस्त्र धोती में होते हैं. इस आरती में अन्य वस्त्रों को धारण करने का नियम नहीं है.
भस्म आरती का रहस्य
पौराणिक कहानियों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में उज्जैन में महाराज चंद्रसेन का शासन था, जो शिव भागवान के परमभक्त थे, न केवल चंद्रसेन बल्कि की उज्जैन की प्रजा भी भगवान शिव को बहुत पूजती थी. एक बार राजा रिपुदमन ने चंद्रसेन के महल पर हमला कर दिया और राक्षस दूषण के माध्यम से प्रजा को काफी नुकसान पहुंचाया. ऐसे में प्रजा ने भगवान शिव को याद किया और भगवान शिव ने वहां खुद आकर दुष्ट राक्षस का अंत किया. इसके बाद राक्षस राख से अपना श्रृंगार किया और वे हमेशा लिए वहां बस गए, तभी से ऐसा माना जाता है उस जगह का नाम महाकालेश्र्वर रखा गया और यहां भस्म आरती की जाने लगी.