काठमांडू: नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड अपने भारत के दौरे के बाद स्वदेश लौट आए हैं। प्रचंड के पीएम पद संभालने के बाद यह उनका पहला आधिकारिक विदेशी दौरा था। पीएम प्रचंड के इस दौरे से ठीक पहले नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडयाल ने देश के नागरिकता कानून में बड़े संशोधन को अचानक से मंजूरी दे दी। इससे पहले केपी ओली समर्थक राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी ने कई बार भेजे जाने के बाद भी नागरिकता कानून में बदलाव के बिल को रोक रखा था। नेपाल में वामपंथी राजनीति करने वाले प्रचंड अपने भारत दौरे पर उज्जैन में महाकाल के मंदिर में पूजा की। विश्लेषक इन दोनों ही फैसलों को प्रचंड के भारत और मोदी सरकार को खुश करने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि इसके पीछे प्रचंड का एक बड़ा डर है। आइए समझते हैं…
नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक युबराज घिमिरे इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में कभी नहीं जाने वाले प्रचंड ने भगवा वस्त्र पहनकर भारत के महाकाल में मंदिर पूजा की। वामपंथी प्रचंड एक क्रांतिकारी रहे हैं। उनकी पार्टी के नेताओं ने नेपाल के कई मंदिरों को तोड़ा था और जो लोग पूजा करते थे, उन्हें मारा था। उन्होंने कहा कि प्रचंड ने पूरी रणनीति के तहत महाकाल मंदिर में दर्शन किया और इसके पीछे मोदी फैक्टर है।
प्रचंड के दौरे से ठीक पहले नागरिकता बिल को मंजूरी
घिमिरे ने कहा कि प्रचंड के नेपाल की सत्ता में बने रहने और देश में राजनीतिक सफलता के लिए पीएम मोदी का साथ बहुत ही जरूरी है। प्रचंड पद संभालने के 5 महीने बाद भारत आए हैं। प्रचंड के भारत दौरे की शुरुआत से मात्र 1 घंटे पहले ही नेपाल के राष्ट्रपति ने नागरिकता कानून में संशोधन को मंजूरी दे दी। इसके लिए प्रचंड ने संसद को किनारे कर दिया और कैबिनेट से इसको मंजूरी दिलवाई थी। ऐसा पीएम प्रचंड ने भारत सरकार को खुश करने के लिए किया था।
इस नागरिकता कानून में बदलाव के बाद अब भारत की किसी महिला के नेपाली पति से शादी करने पर उसे तुरंत राजनीतिक अधिकार के साथ नेपाल की नागरिकता मिल जाएगी। इससे बिहार, यूपी और उत्तराखंड की महिलाओं को फायदा होगा। भारत इसकी लंबे समय से मांग कर रहा था जिसका नेपाल के तराई इलाके में रहने वाले मधेशियों को होगा। उन्होंने कहा कि इस कदम के जरिए प्रचंड ने यह दिखाने की कोशिश की कि वह अपनी पुरानी गलती को सुधार रहे हैं और भारत की बात को अब तवज्जो देते हैं।
प्रचंड पर क्यों लटक रही है जेल जाने की तलवार?
घिमिरे ने कहा कि प्रचंड के ऐसा करने के पीछे उनका एक बड़ा डर है। दरअसल, 16 साल पहले नेपाल में एक दशक तक चलने वाले हिंसक माओवादी आंदोलन का अंत हुआ था। साल 1996 से 2006 के बीच हुई इस हिंसा में नेपाल के 17 हजार लोग मारे गए थे। इसके बाद भारत की मध्यस्थता से माओवादियों और लोकतंत्र समर्थक दलों के बीच समझौता हुआ था। पीएम मोदी ने इस डील की प्रशंसा की थी। नेपाली विश्लेषक ने बताया कि साल 2006 में हुई शांति डील में यह कहा गया था कि मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वाली जांच होगी और उन्हें दंडित किया जाएगा।
नेपाल के पूर्व छापामार और प्रचंड के सहयोगी भी इस जांच की मांग कर रहे हैं। अगर यह जांच होती है तो प्रचंड और उनकी पार्टी सीपीएन माओवादी के कई नेता हत्या के आरोप में जेल जा सकते हैं। इन पर मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन का आरोप है। नेपाली सुप्रीम कोर्ट प्रचंड की भूमिका की जांच कर रहा है। वहीं प्रचंड अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी तरह से इस मामले में सभी दोषियों को माफी दे दी जाए। लेकिन इस शांति समझौते में संयुक्त राष्ट्र समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी गवाह था। यही वजह है कि प्रचंड भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रचंड चाहते हैं कि भारत उन्हें बचाए और जरूरी हो तो पश्चिमी देशों से भी बात करे। इसीलिए प्रचंड चीन से दूरी और खुद को हिंदुत्व के करीब दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। घिमिरे ने कहा कि प्रचंड दिल्ली से जो चाहते थे, उन्हें इस यात्रा से मिल गया है।