नई दिल्ली: उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक नई जंग छिड़ती नजर आ रही है. दो बड़े दक्षिणी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने पब्लिक से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की है. पहले, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अधिक बच्चे पैदा करने की वकालत की. फिर सोमवार को, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने अपने राज्य के लोगों से यही आग्रह किया. कांग्रेस का भी कहना है कि दक्षिण भारत के राज्यों को परिवार नियोजन की सफलता के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए. आबादी को लेकर यह बहस उन रिपोर्ट्स के बाद छिड़ी है, जिनमें कहा गया है कि जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन की योजना बना रही है.
नायडू के बाद स्टालिन ने भी की अपील
तमिलनाडु सरकार ने चेन्नई में सामूहिक विवाह का अयोजन किया था. इसी दौरान, स्टालिन ने वहां मौजूद नवविवाहित जोड़ों से कहा, ‘तमिल में एक पुरानी कहावत है, ‘पधिनारुम पेत्रु पेरु वझवु वझगा’, जिसका अर्थ है कि लोगों के पास 16 अलग-अलग प्रकार की संपत्ति होनी चाहिए, लेकिन आज, जब लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में कमी आ रही है, तो यह सवाल उठता है: हमें खुद को कम बच्चे पैदा करने तक सीमित क्यों रखना चाहिए? हमें 16 बच्चों का लक्ष्य क्यों नहीं रखना चाहिए?’
इससे पहले, नायडू ने ऐलान किया था कि आंध्र प्रदेश सरकार अधिक बच्चों वाले परिवारों को प्रोत्साहित करने की योजना बना रही है. उन्होंने दक्षिण भारतीय राज्यों के लोगों से अधिक बच्चे पैदा करने पर विचार करने का आग्रह किया. नायडू ने कुछ दिन पहले एक ग्राम सभा में कहा, ‘एक समय मैंने परिवार नियोजन का पालन करने का आह्वान किया था, लेकिन अब मैं लोगों से अधिक बच्चे पैदा करके जनसंख्या बढ़ाने की अपील कर रहा हूं. अगर हम दूरदर्शिता के साथ नहीं सोचेंगे, तो जनसंख्या घटेगी. वृद्ध लोगों की आबादी बढ़ेगी. अगर बच्चे पैदा नहीं होंगे, तो हम किसकी सेवा करेंगे?’
दक्षिणी राज्यों को सजा न दी जाए: कांग्रेस
कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि परिवार नियोजन की सफलता के लिए दक्षिणी राज्यों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए. पार्टी ने कहा कि इसका असर संसद में उनके प्रतिनिधित्व पर नहीं होना चाहिए. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि दक्षिण भारतीय राज्यों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त फॉर्मूले पर काम किया जा सकता है. रमेश ने सोशल मीडिया मंच X पर पोस्ट किया, ‘दक्षिण भारतीय राज्य परिवार नियोजन में अग्रणी रहे हैं. प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर तक पहुंचने वाला पहला स्थान 1988 में केरल था, उसके बाद 1993 में तमिलनाडु, 2001 में आंध्र प्रदेश और 2005 में कर्नाटक ने यह उपलब्धि हासिल की.’
रमेश ने कहा, ‘पिछले कुछ समय से यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि इन सफलताओं से संसद में इन राज्यों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम हो सकता है. इसीलिए 2001 में वाजपेयी सरकार ने संविधान (अनुच्छेद 82) में संशोधन कर लोकसभा में पुनर्समायोजन को वर्ष 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के प्रकाशन पर निर्भर बना दिया.’
रमेश के अनुसार, आम तौर पर, 2026 के बाद पहली जनगणना का मतलब 2031 की जनगणना होती. लेकिन संपूर्ण दशकीय जनगणना कार्यक्रम बाधित हो गया है और यहां तक कि 2021 के लिए निर्धारित जनगणना भी नहीं की गई है. उन्होंने कहा, ‘हम सुनते रहे हैं कि लंबे समय से विलंबित जनगणना जल्द ही शुरू होगी. क्या इसका उपयोग लोकसभा में सीटों के आवंटन के लिए किया जाएगा?” रमेश ने कहा, “सफलता को दंडित कदापि नहीं किया जाना चाहिए. ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त फॉर्मूले पर काम किया जा सकता है.’